दुनिया में चाहे कुछ भी हो, कंगारू अपनी अलग ही धुन में चलते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अफगानिस्तान के विषय पर देखने को मिला है। जहां कुछ लोग चीन और पाकिस्तान की भांति तालिबानी सरकार को खुलेआम समर्थन दे रहे हैं, और कुछ अमेरिका एवं यूके की भांति शिष्टाचार के नाम पर मुंह छुपाते फिर रहे हैं, ऐसे में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने अपने एक निर्णय से अफगानिस्तान, तालिबान और तालिबान की पैरवी कर रहे वामपंथियों को एक साथ एक स्पष्ट संदेश दिया है – समानता से कोई समझौता नहीं।
असल में नवंबर में टी20 विश्व कप के बाद क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया की एक टेस्ट शृंखला अफगानिस्तान के साथ प्रस्तावित थी। होबार्ट में होने वाले इस एकमात्र टेस्ट को लेकर अब ऑस्ट्रेलिया ने वर्तमान परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में अपना रुख स्पष्ट किया है। तालिबानी शासन द्वारा हाल ही में खेलों में महिलाओं के भागीदारी पर प्रतिबंध लगाने का विरोध करते हुए क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने स्पष्ट किया कि या तो अफगानी प्रशासन समानता लाए, अन्यथा अफगानिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रस्तावित टेस्ट रद्द किया जाएगा –
Cricket Australia will cancel the Australia-Afghanistan Test in Hobart in November if women in Afghanistan are not allowed to play the sport under the Taliban regime.
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— ESPNcricinfo (@ESPNcricinfo) September 9, 2021
क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के आधिकारिक बयान के अनुसार, “हमारे लिए वैश्विक तौर पर महिला क्रिकेट के विकास को बढ़ावा देना अति आवश्यक है। क्रिकेट को लेकर हमारा दृष्टिकोण यही है कि यह खेल सबके लिए है, और इसमें सबको समान अवसर मिलना चाहिए। हम हर स्तर पर महिलाओं की इस खेल में भागीदारी का समर्थन करते हैं।”
हाल ही में जो मीडिया रिपोर्ट्स सामने आई हैं, यदि वे सत्य हैं कि अफगानिस्तान में खेलों में महिलाओं को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा, तो हमारे पास अफगानिस्तान के साथ प्रस्तावित होबार्ट टेस्ट रद्द करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। इस विषय पर हम ऑस्ट्रेलिया और स्थानीय टैसमेनिया सरकार के बहुत आभारी हैं”।
क्या ऐसा संभव है? बिल्कुल है। जब एटलांटा में 1996 में ओलंपिक हुए थे, तो अफगानिस्तान को इसमें भाग लेने से प्रतिबंधित किया गया था, क्योंकि तालिबान ने सत्ता प्राप्त की थी। ये प्रतिबंध सिडनी ओलंपिक 2000 में भी जारी रहा, और एथेंस ओलंपिक 2004 में जाकर ये प्रतिबंध हटा, क्योंकि 2001 में तालिबानी सत्ता को उखाड़कर फेंक दिया गया था।
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ऐसे में यदि ऑस्ट्रेलिया वास्तव में अफगानिस्तान से क्रिकेट में संबंध तोड़ लेता है, तो इसका असर अफगानिस्तान पर पड़ेगा। अफगानिस्तान में खेल एक प्रकार से वहाँ के दम घोंटू वातावरण से राहत पाने का एक साधन हुआ करता था, जिसमें क्रिकेट ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम धीरे-धीरे एक प्रभावशाली टीम में परिवर्तित हो रही थी, जिसके विकास में infrastructure के दृष्टिकोण से भारत ने बहुत सहायता की थी, परंतु अब तालिबान द्वारा पुनः अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने से सारे किए कराए पर पानी फिर गया है, और अफगानिस्तान के खेलों पर ग्रहण सा लग गया है।
एक तरफ बीबीसी जैसी मीडिया संस्था हैं, जो तालिबान के उत्थान में पाकिस्तान के सहयोग पर प्रश्न उठाने वालों को ही अपने शो से प्रतिबंधित कर देता है, और फिर अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट जैसे संस्थाएँ होती है, जो इस बात से अचंभित हैं कि तालिबान की वर्तमान सरकार में महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है। लेकिन वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट बोर्ड जैसी संस्था भी है, जो स्पष्ट करता है कि यदि अफगानिस्तान तालिबानी सत्ता से मुक्त नहीं होता, तो ऑस्ट्रेलिया अफगानिस्तान से क्रिकेट के परिप्रेक्ष्य में कोई संबंध नहीं रखेगा। इसमें यदि बीसीसीआई और आईसीसी जैसी संस्थाओं ने भी सहयोग दिया, तो तालिबान जिस मान्यता के लिए तरस रहा है, वो उससे फिर वंचित हो जाएगा, और ये कहीं न कहीं अफगानिस्तान के निवासियों को तालिबान के बर्बर शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित भी करेगी।