भारतीय क्रिकेट को वैश्विक बुलंदियों पर पहुंचाने वाले पूर्व कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी के संन्यास लेने के बाद से भारतीय क्रिकेट एक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। एक तरफ टीम में जहां गुटबाजी ने माहौल खराब कर रखा है, तो दूसरी ओर अनुशासनहीनता टीम में समस्याओं की मुख्य वजह है। ऐसे में भारतीय टीम का प्रदर्शन ICC टूर्नामेंट्स में लगातार गिरता दिखा है, जिसके चलते उठ रहे सवालों के कारण विराट कोहली ने टी-20 क्रिकेट में कप्तानी से इस्तीफा दे दिया है। इसके विपरीत TFI आपको बता चुका है कि कैसे विराट का ये इस्तीफा स्वेच्छा से नहीं, अपितु उनके प्रदर्शन एवं रवैए के आधार पर बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली के इशारे पर आया है। एक तरफ विराट का इस्तीफा आया तो दूसरी ओर अब टीम के मुख्य कोच रवि शास्त्री का BCCI के साथ कांट्रैक्ट भी समाप्त होने जा रहा हैं। ऐसे में अब नई खबर यह आ रही है कि कोच का पद भारतीय क्रिकेट के दिग्गज स्पिन गेंदबाज अनिल कुंबले को मिल सकता है। इसमें BCCI प्रेसिंडेंट सौरव गांगुली का ही हाथ माना जा रहा है।
पर आखिर कैसे… चलिए इसे समझते हैं।
‘दादा की दादागिरी’
धोनी के जाने के बाद अगर भारतीय क्रिकेट टीम के रवैए को देखें तो ये स्पष्ट है, कि टीम में संतुलन नाम की कोई चीज है ही नहीं। रोहित शर्मा से विराट का टकराव इस कदर है कि टीम इंडिया गुटबाजी में फंसकर रह गई है। ये कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि विराट कोहली एक अच्छे बल्लेबाज हैं, जो लसिथ मलिंगा से लेकर मिसेल स्टॉर्क जैसे गेंदबाजों के लिए 22 गज की पिच पर काल बन कर उतरते हैं, किन्तु बल्लेबाजी से इतर एक कप्तान के तौर पर कोहली पूर्णतः असफल हैं। उनके रहते भारतीय टीम ने एक भी आईसीसी का टूर्नामेंट नहीं जीता। वहीं फाइनल जैसे अहम मैचों में टीम फिसड्डी या चोकर्स ही साबित होती है। ऐसे में लगातार हो रही आलोचनाओं के चलते विराट ने टी-20 से इस्तीफे का एलान कर दिया है, लेकिन ये इस्तीफा यकीनन विराट ने BCCI के अध्यक्ष सौरव गांगुली अर्थात दादा की दादागिरी के दबाव के कारण दिया है।
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कुंबले बन सकते हैं अगले कोच
ऐसा नहीं है कि कप्तानी जाने के बाद विराट की मुश्किलें कम हो जाएंगी, बल्कि अब ये माना जा रहा है कि दादा की इस दादागिरी का प्रकोप अनुशासहीन विराट की लगातार मुश्किलें ही बढ़ायेगा। इसकी वजह ये है कि अब रवि शास्त्री का कांट्रैक्ट समाप्त होने के बाद दादा एक बार फिर कोच के लिए भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े मैच जिताऊ खिलाड़ी अनिल कुंबले यानी ‘जम्बो’ की सिफारिस कर सकते हैं।
एक टेस्ट मैच की एक पारी में ही दस विकेट लेने वाले अनिल कुंबले की प्रतिभा का कोई भी सानी नहीं है। यहीं कारण है कि अनिल कुंबले को 2016-17 के एक वर्षीय कार्यकाल के लिए मुख्य कोच बनाया गया था, वह भी CIC की सिफारिस पर। बता दें कि BCCI ने भारतीय क्रिकेट को बेहतर बनाने के लिए CIC अर्थात Cricket Improvement Committee बनाई थी, जिसमें सचिन तेंदुलकर, राहुल द्राविड़, वीवीएस लक्ष्मण के अलावा दादा सौरव गांगुली भी थे। सभी ने मांग की थी कि कुंबले को ही कोच बनाया जाए। तब कुंबले को कोच बनाया भी गया था। परंतु, कुंबले का सख्त एवं अनुशासनात्मक रवैया कप्तान कोहली को रास नहीं आता था। कोहली का मानना था कि कोच कोई Cool एवं नई सोच वाला बने… नतीजा ये कि रवि शास्त्री जैसे एक फ्लॉप पूर्व भारतीय खिलाड़ी को टीम का कोच बना दिया गया, जो कि कुंबले के मुकाबले कहीं नहीं थे।
तब गांगुली समेत कमेटी के सदस्य लोकप्रिय तो थे किन्तु इतने मजबूत नहीं थे, कि इनकी BCCI में कोहली से अधिक सुनवाई होती। वह तुरंत ही CAB से आए थे। सौरव यह जानते हैं कि अनिल कुंबले को एक कुशल नेतृत्वकर्ता माना जाता था। उनको लेकर ये कहा भी जाता था कि वो टेस्ट मैचों में भारत के सबसे बड़े Match Winner हैं। वहीं रवि न ही बेहतर खिलाड़ी थे और न ही कोच।
बावजूद इसके उनके स्थान पर रवि शास्त्री को कोच बनाया गया था। तब से विराट की मनमानी का आरंभ हुआ था। तब से लेकर भारतीय टीम एक भी ICC ट्रॉफी नहीं जीत पायी है। परंतु, अब दादा की दादागिरी भी प्रारम्भ हो चुका है। जिस समय कुंबले को हटाया गया था तब दादा के पास प्रशासनिक शक्ति नहीं थी परंतु अब वह BCCI के प्रेसिडेंट हैं और वह अपने तरीके से फैसले ले सकते हैं जिस तरीके से आज पीएम मोदी ले रहे हैं।
दादागिरी का नया अध्याय आरंभ
कोहली और शास्त्री की जुगलबंदी में बर्बाद हो रहे भारतीय क्रिकेट के भविष्य को लेकर बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली अब अपनी पूरी धाक के साथ उतर आए हैं। ये माना जा रहा है कि उनके कहने पर ही कोहली ने इस्तीफा दिया है। ऐसे में दादा की दादागिरी का नया अध्याय आरंभ हो चुका है क्योंकि कुंबले को वापस लाने का जो काम CIC के सदस्य रहते कमजोर स्थिति के चलते दादा उस वक्त नहीं कर पाए थे, उसे अब अंजाम दे सकते हैं।
दादा की इसी दादागिरी के कारण ये कहा जा सकता है कि अब भारतीय टीम के कोच का पद पुनः अनिल कुंबले के पास जा सकता है। इसके विपरीत ये फैसला कोहली के लिए मुसीबत बन सकता है, क्योंकि जिस तरह से कोहली समेत अन्य युवा भारतीय खिलाड़ी खराब प्रदर्शन के बावजूद मीडिया में दिखते हैं, और कॉफी विद करन जैसे शोज़ पर फूहड़ एवं अश्लील बातें करते दिख जाते हैं, वो सारी अनुशासनहीनता कुंबले एक झटके में समाप्त कर देंगे।
सीधे शब्दों में कहा जाए, तो दादा की दादागिरी के बाद जम्बो, कोहली को अनुशासन सिखा सकते हैं, जो न केवल उनके क्रिकेट के लिए आवश्यक होगा, बल्कि भारतीय क्रिकेट के लिए एक नया उदय भी हो सकता है। कुंबले की वापसी से एक बार फिर से विराट के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी और जिसके बाद उन्हें बाकी format के कप्तानी से इस्तीफा भी देना पड़ सकता है। इससे किसी अन्य खिलाड़ी जैसे ODI में रोहित और टेस्ट में रहाणे के कप्तान बनने के लिए रास्ता भी साफ हो जाएगा।
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CIC के सदस्य के तौर पर दादा समेत सचिन, राहुल एवं लक्ष्मण की इच्छा के अनुसार जो काम नहीं हो पाए थे, वो काम वापसी के बाद दादा अब आक्रामक रवैए से कर सकते हैं। इसका मुख्य कारण ये है कि उनकी ताकत पहले के मुकाबले कहीं अधिक है। राजनीतिक रूप से मजबूत होने के अलावा उनके पास BCCI अध्यक्ष का पद भी है, जो कि कोहली के लिए लगातार चुनौती बन रहा है। कोहली के बेहतरीन खेल के विपरीत उनका रवैया एवं कप्तानी के मुद्दे पर मनमानपन उन्हें सर्वाधिक नुकसान पहुंचा रहा है, और गांगुली कोहली की इस कार्यशैली पर लगातार अपनी दादागिरी से अनुशासन का आवश्यक चाबुक चला रहे हैं।