हाल ही में भारत और इंग्लैंड के बीच विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप के नए संस्करण के अंतर्गत खेले जा रहे टेस्ट सीरीज़ के चौथे सीरीज़ में भारत ने सब की आशाओं के विपरीत इंग्लैंड को 157 रन से पराजित किया, और 2-1 से बढ़त बनाई है। 50 वर्ष के बाद लंदन के केनसिंगटन ओवल के मैदान पर भारत ने एक ऐतिहासिक विजय प्राप्त की है, लेकिन इसका श्रेय कप्तान विराट कोहली को बिल्कुल नहीं जाता है।
ऐसे स्थिति में हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया रहती है कि हम टीम के नेतृत्व की प्रशंसा करें, और टीम के कप्तान को विपरीत परिस्थितियों में विजय प्राप्त करने के लिए बधाई दें। परंतु, इस बार इंग्लैंड में यदि बधाई लॉर्ड्स और ओवल में विजयी हुई है, तो वह विराट कोहली के नेतृत्व के कारण नहीं, अपितु रोहित की बल्लेबाजी, तेज गेंदबाज़ों का धारदार प्रदर्शन और कुछ अन्य खिलाड़ियों की जीवटता के कारण, जो विराट कोहली की भांति अपने निजी हितों को अपने देश से अधिक महत्वपूर्ण नहीं रख पाए। हाल ही में टीम इंडिया के कोच रवि शास्त्री कोविड से संक्रमित पाए गए हैं, और अब सामने आया है कि कोच शास्त्री और कप्तान कोहली ने नियमों का उल्लंघन करते हुए एक बुक लॉन्च अटेंड किया था। यानी न सिर्फ उनकी बल्लेबाजी का प्रदर्शन कम हुआ है बल्कि अनुशासनहीनता भी जारी है। ऐसे में अब समय आ चुका है कि विराट कोहली को कप्तान का पद त्याग देना चाहिए।
अनिल कुंबले ने भी विराट की अनुशासनहीनता पर उठाए थे सवाल
इसके पीछे कई कारण है, जिनके लिए हमें वर्ष 2017 की ओर जाना होगा, जब चैंपियंस ट्रॉफी 2017 में विराट कोहली कप्तान के तौर पर सामने आए थे। अपने आक्रामक व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध विराट को महेंद्र सिंह धौनी के स्थान पर चुना गया था, और उनके बल्लेबाजी के रिकॉर्ड को देखते हुए कई लोग इस बात से बेहद प्रसन्न थे। विवाद तब उत्पन्न हुआ जब तत्कालीन कोच अनिल कुंबले ने अप्रत्यक्ष तौर पर विराट पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाया। इस लड़ाई के पीछे भारत चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल अप्रत्याशित रूप से पाकिस्तान से हार गया, और उसे उपविजेता के पद से संतुष्ट रहना पड़ा।
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इस असफलता से विराट कोहली ने कोई सीख नहीं ली, उलटे उनके तेवर और बढ़ गए। अगले तीन वर्षों में उनका व्यक्तित्व एक आक्रामक बल्लेबाज़ एवं कप्तान से परिवर्तित होकर एक बिगड़ैल और घमंडी कप्तान में परिवर्तित हो गया, जिसके लिए राष्ट्रहित कोई मायने नहीं रखता था। इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका रवि शास्त्री ने भी निभाई, जिन्हें 2017 में ही भारतीय कोच के तौर पर नियुक्त किया गया था। रवि शास्त्री के नेतृत्व में भारतीय टीम एकजुट होकर खेलने के बजाए व्यक्तिगत प्रदर्शन पर निर्भर होने वाली टीम में पुनः परिवर्तित हो गई, जिसके पीछे 90 के दशक में भारतीय टीम काफी कुख्यात रही थी। 2018 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया ने बॉर्डर गावस्कर टेस्ट सीरीज़ अवश्य जीती, परंतु तत्कालीन ऑस्ट्रेलियाई टीम में उनके सर्वश्रेष्ठ प्लेयर ही उपस्थित नहीं थे।
नहीं जीता पाये हैं एक भी ICC फ़ाइनल
इसके अलावा विराट कोहली का सर्वश्रेष्ठ योगदान टीम इंडिया को ‘चोकर्स’ के पद से सुशोभित करने का है, यानि वो टीम जो कागज पर बेहद शक्तिशाली है, परंतु वास्तव में खेलने की बात आए तो दिन में तारे दिखने लगते हैं। चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल से जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह क्रिकेट विश्व कप 2019 और विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप 2021 के फाइनल्स तक अनवरत चलता रहा, जहां टीम को वे सेमीफाइनल या फाइनल तक पहुंचा देते थे, परंतु टूर्नामेंट ही नहीं जिता पाते थे।
यही नहीं, एक कप्तान के तौर पर सबसे आवश्यक होता है कि आप संकट के स्थिति में अपनी टीम का किस तरह से नेतृत्व करते हो। यदि कोई सौरव गांगुली की भांति अपने टीम को अपना सर्वश्रेष्ठ करने के लिए प्रेरित करता था, तो महेंद्र सिंह धौनी जैसे कप्तान स्वयं आगे आकर टीम को विजयश्री के राह पर ले जाते थे, लेकिन विराट कोहली इन दोनों ही मोर्चों पर फिसड्डी सिद्ध हुए हैं।
पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया में जो ऐतिहासिक विजय हमने प्राप्त की, उसका सबसे बड़ा कारण यही था कि पहले टेस्ट के बाद विराट कोहली ने हाथ पीछे खींच लिए थे, क्योंकि उन्हें अपनी पत्नी और बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के संतान के जन्म के समय उपस्थित रहना था। अब इसमें कोई जबरदस्ती नहीं थी कि आप टूर छोड़कर नहीं जा सकते हो, परंतु एक आदर्श महेंद्र सिंह धौनी भी थे, जिनकी संतान का उस समय जन्म होने वाला था, जब वह विश्व कप 2015 में टीम इंडिया का नेतृत्व कर रहे थे, परंतु उन्होंने ये कहकर घर जाने से मना कर दिया कि उनके लिए राष्ट्रसेवा सर्वोपरि है।
निजी हित को दिया अधिक महत्व
वहीं दूसरी तरफ जब भारत ऑस्ट्रेलिया टूर पर पहला टेस्ट हार गई, तो विराट कोहली ने राष्ट्र हित को महत्व न देते हुए निजी हित को महत्व दिया और तुरंत भाग गए। यदि अजिंक्य रहाणे ने स्थिति को नहीं संभाला होता, तो भारत को ऑस्ट्रेलिया टूर पर शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ता। इसके अलावा यदि व्यक्तिगत तौर पर उनके बल्लेबाजी के रिकॉर्ड को देखा गया, तो भी पिछले एक वर्ष में वे एक शतक तक नहीं बना पाए हैं। पिछले दो सीरीज़ से शतक तो दूर की बात, दहाई का आंकड़ा पार करने में भी उनके पसीने छूट रहे हैं।
इसके अलावा जिसकी प्राथमिकताएँ अपने खेल को सुधारने से अधिक इंस्टाग्राम पर रील पोस्ट करना, दीपावली पर हिंदुओं को अनावश्यक ज्ञान देना और फालतू का प्रोपगैंडा फैलाना हो, वो सोशल मीडिया सेलेब के तौर पर ठीक है, परंतु एक क्रिकेटर के तौर, और टीम इंडिया के कप्तान के तौर पर बिल्कुल नहीं। ऐसे में विराट कोहली को अपने स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहिए, और यदि उनसे कप्तानी नहीं संभली जा रही है, तो उन्हे कप्तान का पद त्याग कर किसी योग्य व्यक्ति को देना चाहिए।