भारत में व्यापार करना है, तो उत्पाद की मार्केटिंग के साथ उच्च गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखना होगा। ये बात भारतीय उपभोक्ताओं ने पुनः स्पष्ट कर दी है। भारतीय उपभोक्ताओं की नाराज़गी के लपेटे में इस बार अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड आई है, जिसकी कारों की बिक्री भारतीय प्रतिस्पर्धी मार्केट में न के बराबर सीमित हो चुकी है। फोर्ड ने यहां अपने अस्तित्व के लिए करीब तीन दशक तक संघर्ष किया, किन्तु अब फोर्ड कंपनी को भारत में अलोकप्रियता के कारण अपने दो प्लांट्स को बंद करने का ऐलान करना पड़ा है। भारतीय मार्केट को लेकर विशेष उदासीनता उसे इतनी अधिक भारी पड़ी है कि कंपनी अपना सबसे बड़ा मार्केट खो चुकी है। कारों की लॉन्चिंग के मामले में Ford से अच्छे विकल्प भारतीयों को Maruti Suzuki, Tata, Hyundai, Honda, Toyota जैसी कंपनियों ने दिये। नतीजा ये हुआ कि फोर्ड धीरे-धीरे भारतीय मार्केट से अदृश्य होती गई। ये अमेरिकी समेत सभी ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए एक सबक है, कि भारतीय प्रतिस्पर्धी मार्केट में पूर्वाग्रहों से ग्रसित उदासीनता उनके व्यापार को ठप कर देगी।
Ford की घोषणा: दो प्लांट्स बंद करेगी
अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड, जिसको लेकर अमेरिका में एक राष्ट्रवाद की भावना है, फीचर्स चाहें जितने ही घटिया क्यों न हों, किन्तु अमेरिकी होने के चलते लोग उसे ही खरीदतें हैं। वहीं भारत में स्थिति विपरीत है, यहां उपभोक्ताओं की पहली प्राथमिकता गुणवत्ता ही होती है, जिसके मामले में फोर्ड कहीं पीछे रह गई। भारत में लगातार गिरती सेल्स एवं लोकप्रियता के चलते फोर्ड ने घोषणा की है कि वो अपने दो प्लांट्स बंद करेगी। भारत में करीब 2.5 अरब डॉलर का निवेश करने वाली फोर्ड के मुताबिक उसे चेन्नई और साणंद (गुजरात) के संयंत्रों में पिछले 10 वर्षों में 2 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ है। ऐसे में कंपनी इन दोनों ही प्लांट्स को बंद कर रही है।
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वैश्विक व्यापार के लिए साणंद में कंपनी के इंजन निर्माण का प्लांट यथावत जारी रहेगा, शेष सभी प्लांट्स बंद होंगे साथ ही अब भारत में आयात के जरिए ही फोर्ड कारें बेचेगी। इस बड़े ऐलान पर कंपनी के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिम फ़ार्ले ने एक बयान में कहा, “हमारी Ford Plus योजना के हिस्से के रूप में, हम दीर्घकालिक तौर पर टिकाऊ लाभदायक व्यवसाय करने के लिए कठिन लेकिन आवश्यक कार्रवाई कर रहे हैं और अपनी पूंजी को सही क्षेत्रों में बढ़ने और मूल्य सृजित करने के लिए आवंटित कर रहे हैं। भारत में महत्वपूर्ण निवेश के बावजूद, फोर्ड ने पिछले दस वर्षों में दो अरब डॉलर से अधिक का परिचालन घाटा उठाया है। नए वाहनों की डिमांड उम्मीद की तुलना में बहुत कमजोर रही है।”
फोर्ड के इस गिरते ग्राफ को इसी वर्ष भारतीय ऑटोमोबाइल कंपनी महिन्द्रा एंड महिन्द्रा ने भी समझ लिया था, संभवतः यही कारण है कि इस साल जनवरी में फोर्ड मोटर कंपनी और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अपने पूर्व में घोषित वाहन संयुक्त उद्यम को समाप्त करने और भारत में स्वतंत्र परिचालन जारी रखने का फैसला किया था।
इसके विपरीत सवाल यही उठता है कि आख़िर क्यों एक अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड भारत में इस तरह सिकुड़ गई कि उसे अपना बोरिया-बिस्तर ही समेटना पड़ गया। इसकी वजह ये है कि भारत में कंपनी की सेल्स लगातार गिरती ही जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कंपनी का मार्केट शेयर वित्त वर्ष 2020 में 4.9 प्रतिशत तक ही रहा, जबकि उसका मुकाबला 24 प्रतिशत मार्केट शेयर वाली Maruti Suzuki और 18 प्रतिशत वाली Hyundai से था।
फोर्ड की भारतीय मार्केट के प्रति उदासीनता
एक यथार्थ सत्य ये है कि कंपनी ने कभी भारतीय मार्केट पर ध्यान ही नहीं दिया। कंपनी की सोच संभवतः यहां के उच्च वर्ग को आकर्षित करने की थी, जो कि भारत के प्रति उसकी घृणित सोच को दर्शाता है, किन्तु वो अपने उद्देश्य में भी सफल न हो सकी। फोर्ड ने भारतीय मार्केट के प्रत्येक सेगमेंट पर अधिक जोर ही नहीं दिया बल्कि कुछ ही सेगमेंट पर ध्यान केन्द्रित किया जिससे एक बड़ी आबादी को यह कंपनी आकर्षित नहीं कर पाया।
अन्य कंपनियों ने दिए हैं बेहतर विकल्प
हैचबैक रेंज में फोर्ड पहले पापुलर तो हुई, लेकिन Maruti Suzuki और Hyundai जैसी कंपनी फोर्ड से कहीं अच्छे ऑफर एवं विकल्प ले आईं। फोर्ड की जो लोकप्रिय कारें रहीं, उनमें कॉम्पैक्ट SUV के मामले में फोर्ड EcoSport और Suv सेगमेंट में Endeavour ही थीं। कॉम्पैक्ट SUV के मामले में Maruti की विटारा ब्रेजा, Baleno एवं Hyundai की Creta जैसी कारें टक्कर दे रही हैं। ठीक इसी तरह SUV के मामले में Toyota Fortuner एवं Mahindra XUV के अलग-अलग सेगमेंट की कारों ने अपना सिक्का जमा रखा है, जिससे Endeavour को भी अनेकों चुनौतियां मिल रही हैं। आखिर जिसके सामने Fortuner का विकल्प हो वो Endeavour क्यों लेगा?
वहीं विकल्पों के न होने के कारण ही संभवतः भारतीय कैब ड्राइविंग मार्केट में फोर्ड की एक भी कार देख पाना मुश्किल है।
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Sedan मार्केट की बात करें तो Maruti की Ciaz से लेकर Hyundai की Verna, Honda की City/Civic, Toyota की Corola तक ने अपना कब्जा कर रखा है। वहीं इस मार्केट में फोर्ड के पास कोई खास विकल्प नहीं हैं। ये सभी गाड़ियों Ford Aspire के मुकाबले उतनी ही या उससे कम कीमत में बेहतरीन फीचर्स, माइलेज, लुक और सर्विसेज के साथ आती है। वहीं Ford Figo की टक्कर में Maruti ने अनेकों विकल्प दे रखे हैं। वैगनआर से लेकर सिलेरियो, स्विफ्ट, अल्टो 800 इनमें से एक हैं। वहीं Hyundai की ग्रैंड i20 से लेकर Tata की Tiago, Figo के मुकाबले कहीं आगे हैं। Maruti Suzuki की आफ्टर सेल सर्विसेज की उच्च स्तरीय गुणवत्ता के कारण उसका मार्केट शेयर अन्य भारतीय Tata, Mahindra से भी बेहतर है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि फोर्ड ने भारत की जनता को गरीब ही समझा, यही कारण की इस कंपनी अपनी बेस्ट सेल्लेर्स को यहाँ लॉंच ही नहीं किया। अगर फोर्ड की सबसे प्रीमियम कार की ही बात करें तो फोर्ड ने Mustang का V8 छोड़कर अन्य कोई वेरिएंट्स उतारा ही नहीं गया, यद्यपि Mustang के कुल 13 वेरिएंट्स विश्व के अलग-अलग मार्केट में हैं।
आज जब विश्व स्तरीय ऑटोमोबाइल कंपनियां सबसे पहले अपनी कारें भारत में लॉन्च करना चाहती हैं, तो अपनी सबसे लोकप्रिय कार को ही भारतीय मार्केट से बाहर रखकर फोर्ड के प्रबंधकों ने अपनी शून्य मार्केटिंग समझ को उजागर कर दिया था। कोरियन ऑटोमोबाइल कंपनी KIA एक अच्छा उदाहरण हैं, जो कि भारत में धीरे-धीरे अपना निवेश बढ़ाकर संभावनाएं तलाश रही है। नतीजा ये है कि 2020 में कंपनी का मार्केट शेयर 8 प्रतिशत के क़रीब अर्थात फोर्ड से अधिक था। Ford की इसी उदासीनता का एक बड़ा कारण है कि प्रीमियम सेगमेंट की कारों के मामले में BMW, Audi, Mercedes जैसे ब्रांड्स ने अपना दबदबा बना लिया।
अगर ये कहा जाए कि भारत में फोर्ड को असल नुकसान उसकी भारत के प्रति उदासीनता के कारण हुआ, तो संभवतः गलत नहीं होगा, क्योंकि भारत एक प्रतिस्पर्धी मार्केट है, जहां टिकने के लिए एक से एक बेहतर प्रोडक्ट्स उतारने होते हैं, और फोर्ड इस मामले में बेहद पीछे रह गया।