पहले BRICS और अब SCO – वैश्विक मंच पर शी जिनपिंग को लताड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे पीएम मोदी

पीएम मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को दिन में ही तारे दिखा रहे हैं!

SCO के मंच पर मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति के चलते भारत की वैश्विक स्तर पर छवि एक सशक्त राष्ट्र की बन गई है। जब भी किसी वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष रखने का विषय आता है कि तो पीएम मोदी के निशाने पर सर्वाधिक चीन एवं पाकिस्तान ही रहते हैं, क्योंकि इनकी कथनी एवं करनी में धरती व आसमान जैसा अंतर होता है। अपने चिर-परिचित अंदाज में पीएम मोदी ने SCO के मंच पर संबोधन के दौरान अफगानिस्तान के मुद्दे पर तो बात की ही, साथ ही चीन व पाक की वहां चल रही नीतियों के चलते भी इन दोनों को लताड़ा है। पीएम ने चीन की एक तरफा आर्थिक नीति से लेकर विस्तार का जाल बुनने के उसे प्रयासों को फिर उजागर कर दिया है कि कैसे चीन अपने कर्ज देने के रवैए के चलते अनेक देशों की संप्रभुता को नुकसान पहुंचाता है। पीएन मोदी ने चीन का एक बार भी नाम नहीं लिया, लेकिन संकेत स्पष्ट कर दिया कि पड़ोसी देश को अपनी हद में ही रहना होगा।

SCO में आक्रामक पीएम मोदी 

चीन के साथ भारत का टकराव कोई नई बात नहीं है, दोनों देशों की बीच चल रहे शीत युद्ध प्रतीत होने वाले टकराव में सदैव भारत का पलड़ा ही भारी दिखता है क्योंकि वैश्विक मंच पर अपनी कूटनीति के जरिए पीएम मोदी लगातार चीन की मुश्किलों में बढ़ोतरी करते रहते हैं।  कुछ ऐसा ही पीएम ने SCO की वैश्विक बैठक के संबोधन में भी किया। पीएम ने कहा, “भारत मध्य एशिया के साथ अपनी कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारा मानना है कि भूआबद्ध मध्य एशियाई देश, भारतीय बाजारों से जुड़कर लाभान्वित हो सकते हैं। ईरान के चाबहार बंदरगाह में हमारा निवेश और अंतरराष्ट्रीय उत्तरदक्षिण गलियारे में हमारे प्रयास इसका समर्थन करते हैं। कनेक्टिविटी का कोई भी प्रयास वनवे स्ट्रीट नहीं हो सकता। इसे सुनिश्चित करने के लिए ऐसी परियोजनाओं को परामर्शी, पारदर्शी और सहभागी होने की आवश्यकता है।

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अब पीएम मोदी का वन वे स्ट्रीट एवं कनेक्टिविटी का ये बयान चीन को अखर सकता है, क्योंकि चीन लगातार विश्व के अलग-अलग देशों में व्यापार एवं कनेक्टिविटी के नाम पर बीआरआई प्रोजेक्ट लगाता रहता है, किन्तु बदले में उस देश से कुछ नहीं लेता, अर्थात अपना आर्थिक प्रोजेक्ट इन देशों पर कनेक्टिविटी के नाम पर थोप देता है। चीन के इस रवैए से उसे तो लाभ होता है, किन्तु दूसरे देश को इसका नुकसान होता है, क्योंकि आर्थिक रूप से चीन कभी समानता की नीति पर चला ही नहीं है।

विस्तारवाद पर चोट

पीएम मोदी ने SCO के मंच पर बोलते हुए चीन की विस्तारवादी नीति पर भी चोट की है। उन्होंने कहा, “अभिनव दृष्टिकोण और मानसिकता को बढ़ावा देने के लिए हमें अपने उद्यमियों और स्टार्टअप को जोड़ना होगा। इसी सोच के साथ भारत ने पिछले साल पहले SCO स्टार्ट अप फोरम और SCO यंग साइंटिस्ट कॉन्क्लेव का आयोजन किया था।मोदी ने कहा, हम SCO की अध्यक्षता में भारत द्वारा प्रस्तावित गतिविधियों के कैलेंडर में सभी SCO देशों से सहयोग और समर्थन की उम्मीद करते हैं। कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई सिर्फ क्षेत्रीय सुरक्षा और अंतरविश्वास के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, यह हमारे युवाओं के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।

पीएम मोदी का कट्टरपंथ से लेकर विस्तारवाद एवं संप्रभुता संबंधी बयान भी चीन के  लिए ही सबक माना जा रहा है। सर्वविदित है कि चीन जिस भी देश में निवेश करता है, उसे वो अपने कर्ज में इस कदर दबा देता है कि वो देश सांकेतिक रूप से चीन का उपनिवेश बन जाता है। इसका बड़ा उदाहरण भारत के दक्षिणी भाग में स्थित देश श्रीलंका है, जिसने चीन से विकास के नाम पर कर्ज ले लिया था, और कर्ज न चुका पाने की स्थिति में उसे अपने हंबनटोटा पोर्ट को चीन के सुपुर्द करना पड़ा था। कुछ ऐसी ही स्थिति पाकिस्तान के साथ भी है, जहां सीपैक के नाम पर चीन ने हजारों करोड़ का निवेश किया है, किन्तु पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को लेकर ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान उसे नहीं चुका पाएगा। इन संभावनाओं के कारण ही ये कहा जाता है कि पाकिस्तान चीन का उपनिवेश बन ही गया है।

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चौतरफा मुसीबत का जाल बिछाया है जाल

पीएम मोदी चीन के लिए लगातार मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं। QUAD के साथी देश ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मारिसन की तरह ही पीएम मोदी ने ब्रिक्स देशों की बैठक की अध्यक्षता करते हुए कोरोनावायरस की उत्पत्ति के मुद्दे पर कड़ी जांच की मांग कर दी है। इसके चलते उन्होंने चीन के हितैशी माने जाने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी लताड़ दिया है, जो कि वैश्विक स्तर पर चीन के लिए एक बड़ी मुसीबत का सबब हो सकता है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि पीएम मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एवं वहां की सत्ताधारी पार्टी CCP की विस्तारवादी नीति के लिए एक काल बन गए हैं, जो कि चीन को वैश्विक स्तर पर एक दयनीय स्थिति में ला सकता है।

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