एक समय था जब अन्य भारत की तुलना में महाराष्ट्र, विशेषकर महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई को महिलाओं के लिए सुरक्षित माना जाता था। दिल्ली, कोलकाता और अन्य बड़े शहरों की तुलना में मुंबई की महिला सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में अपनी एक अलग पहचान थी। लेकिन 2013 के शक्ति मिल्स कांड ने पहले इस छवि पर प्रश्न उठाया था, और अब जिस प्रकार से उद्धव ठाकरे के प्रशासन में कुछ ही हफ़्तों में एक के बाद एक नौ दुष्कर्म के मामले सामने आए हैं, उससे मुंबई और महाराष्ट्र दोनों की ही छवि मिट्टी में मिलने को तैयार है।
हाल ही में मुंबई में निर्भया कांड को दोहराया गया, जब मुंबई में अंधेरी ईस्ट के साकीनाका क्षेत्र में एक महिला को अगवा किया और उसके साथ न केवल दुष्कर्म किया गया, अपितु 2012 में जो निर्भया को वीभत्स यातना दी गई थी, वही इस महिला के साथ भी हुआ। फिलहाल एक व्यक्ति को हिरासत में लिया गया, और बाकी अभियुक्तों की तलाश जारी है, लेकिन इसी बीच अपने गहरे घावों के कारण उक्त महिला की मृत्यु की खबर भी सामने आई है।
इस दुष्कर्म कांड पर मुंबई पुलिस और प्रशासन ने ‘कार्रवाई’ का आश्वासन अवश्य दिया है, परंतु इससे मुंबई की ‘महिलाओं के लिए सुरक्षित’ मुंबई वाली छवि पर एक गंभीर प्रश्न चिन्ह लग चुका है। एक सर्वे के अनुसार यह दावा किया जा रहा था कि एकल यात्रियों के अनुसार महिलाओं के लिए मुंबई सर्वाधिक सुरक्षित शहर है, लेकिन ऐसी घटनाओं को देखते हुए अब इस दावे पर ही सवाल उठने लगे हैं।
लेकिन आपको क्या लग रहा है, ये भयावहता केवल मुंबई तक ही सीमित है? मुंबई के अलावा पुणे भी महिलाओं के लिए काफी सुरक्षित स्थान माना जाता था, लेकिन उद्धव प्रशासन की कृपा से अब यह धारणा भी मिट्टी में मिल चुकी है। दो घटनाओं ने केवल इस स्थान के निवासियों, अपितु पूरे देश को झकझोर के रख दिया है। एक ओर पुणे रेलवे स्टेशन के निकट बस स्टैंड के पास सो रही एक छह वर्षीय बच्ची का अपहरण कर एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर ने उसके साथ दुष्कर्म किया। वहीं दूसरी ओर रेलवे स्टेशन पर अपनी एक मित्र की प्रतीक्षा कर रही एक 14 वर्षीय बालिका का न केवल अपहरण किया गया, बल्कि कई दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया। उसे जम्मू ले जाया जा रहा था कि तभी किसी भांति पुलिस के सहयोग से वह बच्ची मुक्त हुई।
इसी भांति अमरावती में एक बालिका के साथ कई दिनों तक दुष्कर्म किया गया। जब उसे आभास हुआ कि वह गर्भवती है, तो उसने आत्महत्या कर ली। कुल मिलाकर देखा जाए तो पूरे महाराष्ट्र में पिछले लगभग तीन से चार हफ्तों में नौ से भी अधिक दुष्कर्म के मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से कई तो इतने डरावने हैं कि उनके उल्लेख मात्र से ही व्यक्ति कांप उठे।
इसके बावजूद न प्रशासन इस विषय पर गंभीर है, और न ही प्रदेश की पुलिस। यहाँ तक कि जो वामपंथियों और बुद्धिजीवियों का गठजोड़ कठुआ जैसे मामलों पर तलवारें निकालने को तैयार हो जाता था, वो भी मौन व्रत धारण किए हुए हैं। क्या उनके ‘प्रिय शासक’ के राज्य में ऐसा हो रहा है, इसलिए चुप रहना अवश्यंभावी है?
लेकिन उद्धव ठाकरे के शासन में महाराष्ट्र की जो बची खुची प्रतिष्ठा थी, वो भी मिट्टी में मिल चुकी है। कृषि और विदेशी निवेश के परिप्रेक्ष्य में वह पहले ही अपनी नाक कटवा चुका है, और अब जिस प्रकार से दिन प्रतिदिन दुष्कर्म के मामले सामने आ रहे हैं, और किसी प्रकार की ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है, उस हिसाब से जल्द ही महाराष्ट्र वामपंथियों की ही भाषा में भारत का ‘रेप कैपिटल’ बन जाएगा, जिसके लिए केवल एक व्यक्ति ही जिम्मेदार होगा – उद्धव ठाकरे।