कैप्टन के बाद गहलोत लेकिन कैप्टन नहीं हैं गहलोत

राजस्थान में कांग्रेस करेगी तख्तापलट? गहलोत की पकड़ कैप्टन की तरह केवल पंजाब तक ही सीमित नहीं है!

आनन-फानन में लिए हुए फैसले अक्सर बेचैनियां व फड़फड़ाहट को दर्शाते हैं, कांग्रेस में भी कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है। उत्तराखंड में अचानक भाजपा द्वारा दो मुख्यमंत्रियों की छुट्टी होने और फिर गुजरात में सीएम समेत पूरी कैबिनेट के परिवर्तन के बाद ये सवाल उठने लगे थे कि जिस तरह से भाजपा आलाकमान सख्त फैसले ले सकती है, क्या वैसे ही फैसले कांग्रेस भी ले पाएगी? कांग्रेस आलाकमान के ऊपर मध्य प्रदेश में सरकार गिरने के बाद से ही सवाल खड़े होने लगे थे।

ऐसे में अपनी ताकत दिखाने और पंजाब में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने सीएम अमिरिंदर सिंह को निशाना बनाया। राज्य में चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाने के बाद कांग्रेस आलाकमान का अगला निशाना अब राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत हो सकते हैं। ध्यान देने वाली बात ये है कि ताकत दिखाने की होड़ में कांग्रेस एक बड़ी गलती कर सकती है क्योंकि कैप्टन और अशोक गहलोत में जमीन आसमान का अंतर है।

राजस्थान में भी नेतृत्व परिवर्तन ?

पंजाब में पिछले पांच वर्ष के दौरान सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच टकराव की स्थिति थी। ऐसे में ये माना जा रहा था कि नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस कैप्टन को कमजोर करने की कोशिश करेगी और हुआ भी कुछ ऐसा ही। अंततः कैप्टन ने अपमान से पहले ही इस्तीफा दे दिया। यद्यपि, कैप्टन के साथ बगावत की आशंका भी है। कुछ इसी तरह अब राजस्थान में भी नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट शुरु हो गई है क्योंकि कांग्रेस आलाकमान की छवि को कमजोर दिखाने में राजस्थान की विशेष भूमिका रही है। पायलट और गहलोत की लड़ाई के कारण आए दिन सरकार गिरने का खतरा बना रहता है।

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खबरें बताती हैं कि सचिन पायलट ने राहुल एवं सोनिया गांधी ने मुलाकात कर राज्य की वर्तमान राजनीतिक स्थिति से अवगत कराया है। खास बात ये भी है कि पायलट की इस मुलाकात में पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी भी मौजूद थीं, जिसके चलते इसे विशेष महत्व दिया जा रहा है। कांग्रेस अलाकमान की एक परेशानी ये भी है कि पायलट और गहलोत दोनों ही गुटों के विधायक एक दूसरे पर धड़ाधड़ जुबानी तीर चला रहे हैं। राहुल गांधी ने इसी बीच राज्य के अलग-अलग गुटों के नेताओं से मुलाकात कर रणनीति बनाई है। जिसके बाद इस बात की चर्चा तेज हैं कि राहुल गांधी इस मुद्दे पर जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।

राहुल का आक्रामक रवैया

राहुल गांधी को 2019 में चुनाव हारने के बाद उनके अपने नेता भी ज्यादा भाव नहीं दे रहे थे। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस में बगावती नेताओं का एक गुट खड़ा हो गया और नेतृत्व परिवर्तन की बात तक करने लगा। वहीं, सिंधिया के निकलने के बाद मध्य प्रदेश में गिरी कांग्रेस सरकार के चलते बगावतियों का धड़ा पहले से अधिक मजबूत भी हो गया। इन सभी परिस्थितियों के चलते ही राहुल ने अपनी ताकत दिखाने के लिए पंजाब को चुना।

इसकी पहली वजह कैप्टन से उनकी दुश्मनी थी, तो दूसरी ये कि वहां विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में टिकट मिलने की लालसा के तहत ये तय था कि कांग्रेस विधायक कैप्टन की अपेक्षा कांग्रेस आलाकमान के फैसले को ज्यादा तवज्ज़ो देंगे। अपनी इसी नीति पर चलते हुए राहुल ने बगावती नेताओं को ये संदेश देने की कोशिश की है कि जब वो कैप्टन जैसे नेता का पद छीन सकते हैं तो सुरक्षित कोई नहीं है और सभी को कांग्रेस आलाकमान के आदेश का पालन करना ही होगा।

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कैप्टन नहीं हैं गहलोत

राहुल के इस आक्रामक रुख के बाद ये माना जा रहा है कि कांग्रेस अब राजस्थान में भी बड़ा फैसला ले सकती है। इसके विपरीत सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अशोक गहलोत कैप्टन की भांति नहीं है। कैप्टन केवल पंजाब तक सीमित नेता थे और राज्य को अपने ढंग से चलाते थे। वहीं, गहलोत की पकड़ कैप्टन की तरह केवल पंजाब तक ही सीमित नहीं है बल्कि देश के कई राज्यों के कांग्रेस संगठन में भी हैं। गहलोत की राजनीतिक सूझबूझ को मानते हुए ये कहा जाता है कि राहुल ने गहलोत के साथ मिलकर साल 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को 100 के नीचे ला दिया था। इतना ही नहीं, राहुल गांधी स्वयं अनेक मुद्दों पर गहलोत से सलाह लेते थे। वहीं, राजनीतिक धड़ों में चर्चा ये भी है कि गहलोत यदि कांग्रेस से बगावत के मूड में आ गए तो वो पूर्व कांग्रेस नेता और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से भी बड़ी बगावत कर सकते हैं। ऐसे मे कांग्रेस का ये दांव उल्टा भी पड़ सकता है।

राहुल गांधी अपनी आक्रामकता दिखाने के साथ ही केन्द्रीय आलाकमान को पुनः पावर सेंटर की स्वीकृति दिलाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि गहलोत को यदि उन्होंने कैप्टन की भांति ही समझा तो वो कांग्रेस पार्टी में एक नए आंतरिक टकराव की पटकथा लिख देंगे। जिसके बाद इस बवंडर को संभालना राहुल गांधी के साथ ही सोनिया के लिए भी मुश्किल हो जाएगा।

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