हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह [सेवानिर्वृत्त] को अपने पद से त्यागपत्र देने के लिए बाध्य होना पड़ा। पंजाब कांग्रेस की दलगत राजनीति और पार्टी हाईकमान से तनातनी के चलते कैप्टन अमरिंदर सिंह को ये निर्णय लेने पर विवश होना पड़ा, क्योंकि वे पिछले पाँच छह महीनों से पार्टी में चल रही गतिविधियों से तंग आ चुके थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि इसके पीछे पंजाब कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके बारे में जाते जाते पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को चेतावनी भी दी है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि नवजोत सिंह सिद्धू भी पंजाब के मुख्यमंत्री बनने के प्रबल दावेदारों में से एक हैं। यही नहीं अगर सिद्धू सीएम नहीं बनते हैं तो कोई न कोई उनका ही चमचा ही मुख्यमंत्री बन सकता है। परंतु नवजोत सिंह सिद्धू में ऐसा क्या है जो वे पार्टी और देश के लिए बेहद हानिकारक है? आखिर नवजोत सिंह सिद्धू ने ऐसा भी क्या किया है जिसके पीछे कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रारंभ से ही उनके विरुद्ध आक्रामक रहे हैं? इसके पीछे एक गहन विश्लेषण आवश्यक है।
आखिर क्यों सिद्धू का पंजाब की कमान संभालना पंजाब के साथ-साथ सम्पूर्ण देश के लिए बेहद घातक होगा?
नवजोत सिंह सिद्धू का अराजकतावादी मिज़ाज
सर्वप्रथम तो नवजोत सिंह सिद्धू के राजनीति से पूर्व जीवन के बारे में जानते हैं। राजनीति से पूर्व वे एक चर्चित क्रिकेटर थे, जो मैदान पर भी उतने ही चर्चित थे, जितना कि मैदान के बाहर। लेकिन गरम मिजाज के नवजोत सिंह सिद्धू ने 1988 में पटियाला में पार्किंग विवाद को लेकर एक व्यक्ति को इतना पीटा कि उसकी वहीं मृत्यु हो गई।
यानी प्रारंभ से ही नवजोत सिंह सिद्धू अराजकतावादी किस्म के व्यक्ति थे, जिनका काम पर कम और नौटंकी में ध्यान अधिक लगता था। 2004 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए उन्होंने लगातार दो बार अमृतसर से चुनाव जीता, परंतु 2014 में अमृतसर से चुनाव नहीं लड़ने दिए जाने पर महोदय का मोहभंग हो गया और अंतत: 2016 में नवजोत सिंह सिद्धू ने भाजपा छोड़ दी।
जुलाई में कांग्रेस के राज्य प्रमुख के रूप में पदोन्नति के बाद, सिद्धू ने पंजाब के मुख्यमंत्री की विकास समर्थक और किसान समर्थक नीतियों पर हमलों की झड़ी लगा दी। उन्होंने अमरिंदर को तीन कृषि कानूनों को खत्म करने की चुनौती दी और उन्हें चेतावनी दी कि अगर वह ऐसा नहीं करते हैं, तो कांग्रेस के अन्य विधायक खुद ऐसा करेंगे।
अगस्त में, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिद्धू के दो सलाहकारों को कश्मीर और पाकिस्तान जैसे मुद्दों पर अत्याचारी और गलत टिप्पणियों के खिलाफ चेतावनी दी। यानी पूरी तरह से अस्थिर मिजाज के।
नवजोत सिंह सिद्धू कैबिनेट मंत्री के रूप में किसी आपदा से कम नहीं थे। वह कोई महत्वपूर्ण कार्य करने में विफल रहे। उन्होंने जो सबसे अधिक किया वह कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व के खिलाफ लोगों और नेताओं की भावनाओं को भड़काने वाला काम था। सिद्धू वाक्पटुता कला में माहिर हैं – इसमें कोई शक नहीं है। वह लगातार बोल सकते हैं; हालाँकि, एक नेता और प्रशासक के रूप में, सिद्धू पूरी तरह से विफल हैं।
चाटुकार सिद्धू
मौसम के हिसाब से राजनीतिक दल बदलना उनका शौक ही नहीं आदत है। जिस भी पार्टी में उन्हें सफलता का सबसे आसान रास्ता दिखता, वे उसी पर चल देते हैं। कांग्रेस में सिद्धू ने महसूस किया कि गांधी परिवार की चाटुकारिता सभी सफलताओं की कुंजी है, इसलिए उन्होंने खुद को मां-बेटे की जोड़ी के लिए प्रतिबद्ध कर दिया। अब उसी का परिणाम अब दिखाई दे रहा है।
नवजोत सिंह सिद्धू क्रिकेट से राजनीति में तो आ गए, परंतु वे एक चाटुकार से अधिक कुछ नहीं बन पाए। यही एक प्रमुख कारण था जिसके पीछे वे संभवत: नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही भाजपा से दूरी बनाने लगे। एक चाटुकार होने के नाते कांग्रेस में उन्होंने भरपूर प्रेम मिला, और जैसे-जैसे वे नेहरू गांधी परिवार की जी हुज़ूरी करते गए, उन्हे जल्द ही एक बेहद अहम जिम्मेदारी मिली – पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रभाव को कम करना। सिद्धू ने भी वही किया और अपने चाटुकारिता की बदौलत वे राहुल गांधी और सोनिया गांधी की आँखों के तारे बन गए।
इसलिए कैप्टन जैसे सरदार की जगह गांधी परिवार ने सिद्धू को अधिकार दिया। कैप्टन के सत्ता से बाहर होने के साथ, गांधी परिवार ने कम से कम अगले विधानसभा चुनाव तक पंजाब पर अपना शासन स्थापित कर लिया है।
और पढ़ें : गांधी परिवार ने कैप्टन को ‘बर्बाद’ कर दिया, अब अमरिंदर की बारी है कि कांग्रेस को उखाड़ फेंकें
पाकिस्तान समर्थक सिद्धू
परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं थी। जैसे ही पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार बनी, जिस प्रकार से नवजोत सिंह सिद्धू उन्हे बधाई देने गए, और उनके तारीफ में ‘मेरा यार इमरान’ जैसे कसीदे पढ़ने लगे, उससे स्पष्ट हो गया कि इस व्यक्ति के इरादे बिल्कुल नेक नहीं है।
इसके अलावा इन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख को भी गले लगाया, जो अपने आप में राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है। इतना ही नहीं, नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान में खालिस्तानी नेताओं से गलबहियाँ भी करते दिखाई देते, जिससे संदेश स्पष्ट जा रहा था – उन्हे खालिस्तानी लोगों से कोई समस्या नहीं।
और पढ़ें : सिद्धू के दो सलाहकार, एक पाक समर्थक तो दूसरा अलगाववादी है
ये मानसिकता ‘कृषि आंदोलन’ में स्पष्ट दिखी, जहां नवजोत सिंह सिद्धू ने स्पष्ट तौर पर खालिस्तानी तत्वों को खुलेआम पंजाब में बढ़ावा दिया। अमरिंदर सिंह अराजकतावादियों को आंदोलन पर कब्ज़ा करने देने के मूड में नहीं थे, परंतु सिद्धू चाहते थे कि किसी भी स्थिति में ‘कृषि आंदोलन’ के जरिए अंतर्राष्ट्रीय कवरेज, और कुछ हद तक वे सफल भी हुए।
अब सोचिए, यदि ऐसे प्रवृत्ति का व्यक्ति किसी भी तरह से पंजाब के कमान संभालने के निकट आया, तो न केवल पंजाब, अपितु भारत की सुरक्षा पर भी जबरदस्त संकट आ सकता है। जो समस्या 80 के दशक में पंजाब में उत्पन्न हुई, वह फिर से उत्पन्न हो सकती है। फिलहाल के लिए सुखजिन्दर सिंह रँधावा पंजाब के नए मुख्यमंत्री चुने गए हैं, जो सिद्धू कैंप के नजदीक भी हैं, और शायद इसीलिए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आगाह किया था कि नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब की कमान सौंपना किसी भी स्थिति में विनाशकारी होगा।