घाटी में अलगाववादी राजनीति के जनक और हुर्रियत के कट्टरपंथी नेता सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार देर रात श्रीनगर के हैदरपोरा उनके आवास रात 10:30 पर निधन हो गया। गिलानी की मौत के बाद उनके समर्थन में घाटी में कोई जुलूस देखने को नहीं मिला है परंतु उनके पाकिस्तान से लेकर भारत में रहकर पाक का राग अलापने वाले दुख व्यक्त कर रहे हैं। परंतु आपको जानकर हैरानी होगी कि कैसे गिलानी ने आतंक और कट्टरपंथ की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटी सेकी है। सैयद अली शाह गिलानी अपने भारत विरोधी बयानों के लिए मशहूर थे और पाक परस्ती रग-रग में थी। तभी तो आज गिलानी की मौत पर पाकिस्तान आंसू बहा रहा।
सैयद अली शाह गिलानी, 29 सितंबर 1929 को बांदीपुर में वूलर झील के किनारे बसे एक गांव ज़ुर्मांज़ में जन्म हुआ थाI भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में एक कश्मीरी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी (वरिष्ठ नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) नेता) के संरक्षण में कीI वह पहले जमात-ए-इस्लामी कश्मीर का सदस्य था और बाद में उसने तहरीक-ए-हुर्रियत की स्थापना की, जो जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी पार्टियों का एक समूह था। गिलानी ने ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इसके बाद गिलानी ने जून 2020 में हुर्रियत छोड़ दी। इससे पहले वह 1972, 1977 और 1987 में जम्मू-कश्मीर के सोपोर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक थे। वे कश्मीर के पाकिस्तान के साथ विलय के प्रबल समर्थक थे। फरवरी, 2019 में एनआईए ने एक मामले में उमर फारूक और गिलानी के बेटे नसीम गिलानी के घर पर छापा मारा था। मार्च 2019 में, प्रवर्तन निदेशालय ने विदेशी मुद्रा कानून के कथित उल्लंघन में $10,000 के कथित अवैध कब्जे के 17 साल पुराने मामले में गिलानी पर 14.40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
गिलानी अपने भारत विरोधी कार्यों और वक्तव्यों के लिए कुख्यात थाI वो कितना बड़ा पाक समर्थक और राष्ट्रविरोधी था इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि पिछले साल पाकिस्तान सरकार ने गिलानी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि देश आधिकारिक शोक मनाएगा और देश का झंडा आधा झुका रहेगा। खान ने कहा कि गिलानी ने “अपने लोगों और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार” के लिए जीवन भर संघर्ष किया।
अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने जम्मू-कश्मीर में “भारतीय सशस्त्र बलों की कार्रवाई को आतंक का नाम देकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को पत्र लिखकर कश्मीर के मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी
अमेरिका ने जब पाकिस्तान में अलकायदा के चीफ ओसामा बिन लादेन को ठिकाने लगाया था तब सैयद अली शाह गिलानी ने न सिर्फ इसकी आलोचना की थी, बल्कि ओसामा के लिए अपने समर्थकों के साथ मिलकर दुआ भी की थी।
1981 में उन्होंने अलगाववाद की ओर रुख किया, तब उनका पासपोर्ट पहली बार “भारत विरोधी गतिविधियों” में शामिल होने के लिए जब्त किया गया था। इसके बाद उनका पोसपोर्ट केवल एक बार 2006 में हज यात्रा के लिए उन्हें लौटाया गया था। 2010 में, गिलानी पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था और तब से वह ज्यादातर नजरबंद हैं।
1990 के दशक से ही गिलानी हर बार सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में एक आतंकवादी के मारे जाने पर हड़ताल का आह्वान करते रहे हैं। इसी तरह, वह राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बहिष्कार का आह्वान करते रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में उनकी अपील कम हुई है। उन्होंने 26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज सईद और संसद हमले के दोषी अफजल गुरु का समर्थन किया था।
गिलानी ने यह भी कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह और मूल मुद्दे के अहिंसक समाधान के लिए थे, लेकिन वह अक्सर आतंकवादियों की जमकर तारीफ करते थे। उनका नाम टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में भी सामने आया है जिसकी जांच जारी है।
गिलानी का रिकॉड काफी लंबा है परंतु अब गिलानी के निधन से कश्मीर में पाकिस्तान परस्ती की अलगाववादी आवाज अब खामोश हो गई है।
हालांकि, गिलानी के निधन पर कईयों ने शोक भी जताया है। गिलानी के पाकिस्तान स्थित प्रतिनिधि अब्दुल्ला गिलानी, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती समेत कई बड़े नाम सामने आये। ये वही नाम हैं जिन्हें पाकिस्तान से लगाव है।
कहते है जो अपनी मिट्टी का नहीं हुआ वो किसी का नहीं हो सकताI गिलानी के साथ भी यही हुआI J&K के हालिया विकास की वजह से गिलानी पूर्णतः अप्रासंगिक हो गएI गिलानी के जितने नापाक मंसूबे थे कोई पूरे तो नहीं हुए, उल्टा मोदी सरकार के दौर में गिलानी का रसूख भी गिर गयाI विभिन्न तरह के आपराधिक मामलों में सिर्फ गिलानी ही नहीं, बल्कि उनके बेटों और दामादों पर भी ढेरों सरकारी संस्थों नें सिकंजा कसाI फिर भी, उसके ज़िंदा रहते हुर्रियत टूटा, बेटों को कुकर्मों की सज़ा मिली, अमन की बहाली हुई और वो सारे काम और परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाया गया जो उसके लिए एक बुरा सपना थाI
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