‘गाय हमारी माता है’, ये बात हम सभी ने बचपन में सुनी है। हम सबके मन में गाय के लिए एक अपार श्रद्धा है। इसके पीछे हिन्दू धर्म की मान्यताओं का जितना अधिक योगदान है उतना ही इस चीज का योगदान है कि गाय एक कृषि आधारित देश में रोजी-रोटी और भोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और अब तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी यह कहा है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया जाए और गाय का संरक्षण (गौहत्या प्रतिबंध) हिंदुओ के लिए मौलिक अधिकार बना दिया जाए। हाइकोर्ट के इस बयान पर बवाल मचना तो तय था लेकिन कोर्ट ने ऐतिहासिक कारण बताया है और अब जरूरी है कि उन बिंदुओं पर चर्चा हो और गाय को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर काम किया जाए।
भारत में गाय संरक्षण के लिए विभिन्न राज्यों के विभिन्न परियोजनाएं चल रही है लेकिन अब जरूरी है कि एक केंद्र कदम उठाकर गाय के संरक्षण की सारी बहस को खत्म करे।
भारत में आजादी पूर्व से ही गाय को लेकर बहस होती रही है। खुद महात्मा गांधी ने कहा था कि गौहत्या पर प्रतिबंध लगाया जाए। भारत के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने भी कहा था कि देश भर में गाय के संरक्षण के लिए सुझाव आ रहे है, कांग्रेस को जल्द ही इस पर चर्चा करनी चाहिए। संविधान बनने के बाद भारतीय संविधान में अनुच्छेद 48 के तहत राज्यों को यह जिम्मेदारी दी गई कि वह गौहत्या पर प्रतिबंध लगाए। अनुच्छेद 48 के तहत यह नीति बनाने का आदेश दिया गया कि गाय, बछड़े और अन्य दुधारू पशुओं को बचाना राज्य की जिम्मेदारी है। विभिन्न राज्य द्वारा इसी अनुच्छेद को ध्यान में रखकर कानून बनाया गया है। आइए जानते है कि विभिन्न राज्यों में गौरक्षा के लिए क्या प्रावधान है और कैसे इनमें व्यापक अनियमितताएं हैं ।
- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना– 1977 के कानून के तहत गौहत्या पर अपराधियों को छह महीने की जेल और/या 1,000 रुपये के जुर्माने का सामना करना पड़ता है।
- बिहार- बिहार प्रिजर्वेशन एंड इम्प्रूवमेंट ऑफ एनिमल एक्ट 1955 के तहत गाय, बछड़ों के वध पर प्रतिबंध; 15 वर्ष से अधिक पुराने बैल, बैलों की अनुमति है। उल्लंघन करने वालों को 6 महीने की जेल और/या 1,000 रुपये का जुर्माना लगता है।तमिलनाडु– तमिलनाडु एनिमल प्रिजर्वेशन एक्ट, 1958 के तहत गाय, बछड़ा वध प्रतिबंधित है। उल्लंघन करने वालों को 3 साल तक की जेल और/या 1,000 रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है। बीफ खाने और आर्थिक रूप से बेकार जानवरों के वध की अनुमति है।
- गुजरात- बॉम्बे एनिमल प्रिजर्वेशन एक्ट 1954 के तहत गाय, बछड़ा, बैल और बैल का वध; परिवहन, उनके मांस की बिक्री पर प्रतिबंध है। उलंघन करने पर सजा, 50,000 रुपये जुर्माना, 7 साल तक की जेल है। भैंस के मांस, या कैरबीफ की अनुमति है।
- हरियाणा गौवंश संरक्षण और गौसंवर्धन एक्ट, 2015 के तहत “गाय”, जिसमें बैल, बैल, बछिया, बछड़ा और विकलांग / रोगग्रस्त / बंजर गाय शामिल हैं, को 2015 के कानून के अनुसार नहीं मारा जा सकता है। ऐसा करने पर 3-10 साल की जेल और सजा के रूप में 1 लाख रुपये तक का जुर्माना है।
- महाराष्ट्र- महाराष्ट्र एनिमल प्रिजर्वेशन एक्ट 1976 के तहत गौहत्या दंडनीय अपराध है। गाय के 1 से 3 वर्ष तक के बछड़े या बछिया अथवा बैल को इस एक्ट के अंदर संरक्षण नहीं मिला था l हालांकि, मौजूदा कानून में संशोधन के बाद मार्च 2015 से वध अथवा गाय और बैल के मांस की खपत पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। 5 साल की जेल और/या 10,000 रुपये का जुर्माना। हालांकि, भैंसों के वध की अनुमति है।
- उत्तर प्रदेश- उत्तरप्रदेश प्रिवेंशन ऑफ काऊ स्लॉटर एक्ट, 1955 के तहत गाय, बैल, बछड़ो का वध प्रतिबंधित है। बीफ को स्टोर या खा नहीं सकते। 7 साल की जेल और/या 10,000 रुपये का जुर्माना लग सकता है।
- केरल, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मणिपुर, नागालैंड जैसे राज्यों में ही गौहत्या पर प्रतिबंध नही है। इन राज्यों को भी संज्ञान में लेकर अब जरूरी है कि केंद्रीय सरकार गाय, बछड़े, बैल और अन्य दुधारू पशुओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किया जाए।
राष्ट्रीय कानून की आवश्यकता
विभिन्न राज्यों द्वारा बनाए गए गौ-हत्या विरोधी अधिनियमों में स्पष्ट रूप से कई विसंगतियां हैं। विभिन्न परिभाषाएं, वास्तविक प्रावधान और दंड कई बार अनावश्यक अराजकता और भ्रम पैदा करते हैं। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर केवल एक समान कानून ही पर्याप्त रूप से गौ संरक्षण सुनिश्चित कर सकता है। यद्यपि गौहत्या पर प्रतिबंध लगाना राज्य का विषय है, अनुच्छेद 249 संसद को राज्य सूची में किसी मामले के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है।
यदि भारत के राष्ट्रीय नेता गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के संवैधानिक आदेश को लागू करने के बारे में गंभीर हैं, तो इसका एकमात्र समाधान अनुच्छेद 249 द्वारा वर्णित एक प्रस्ताव पारित करना और एक राष्ट्रव्यापी कानून बनाना है जो गायों और अन्य मवेशियों के वध पर व्यापक प्रतिबंध सुनिश्चित करे।