ईरान ने सीधे-सीधे तालिबान के पंजशीर हमले की निंदा की है, इसका वैश्विक अर्थ बहुत गंभीर है

ईरान ने न केवल अपेक्षाओं के विपरीत तालिबानी सत्ता को मान्यता देने से मना किया, अपितु आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप की भी बात उठाई!

ईरान पंजशीर

तालिबान ने भले ही आधे से अधिक अफ़ग़ानिस्तान पर आधिपत्य स्थापित कर लिया हो, परंतु पंजशीर घाटी में उनके विरुद्ध विद्रोह अभी भी जारी है। पंजशीर घाटी पर आधिपत्य स्थापित करने में असफल रहे तालिबान को पाकिस्तान की सहायता लेनी पड़ी, और उन्होंने ताबड़तोड़ हमले किए। फिलहाल के लिए उन्होंने पंजशीर पर भी कब्ज़ा जमाने का दावा किया है, परंतु विद्रोहियों ने उनके दावों को सिरे से नकार दिया है। इसी बीच ईरान ने इस प्रकरण पर अपने जो विचार रखे हैं, वो समूचे अफ़ग़ानिस्तान का मानचित्र बदलने के लिए पर्याप्त है।

वो कैसे? आम तौर पर ईरान को तालिबान के मित्र देश के तौर पर देखा जा रहा था, और ये अटकलें लगाई जा रही थी कि वे ‘तालिबानी सत्ता’ को चीन की भांति मान्यता दे देंगे। परंतु, जब पंजशीर घाटी पर पाकिस्तान की सहायता से तालिबान ने हमला किया, तो ईरान ने न केवल अपेक्षाओं के विपरीत तालिबानी सत्ता को मान्यता देने से मना किया, अपितु आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप की भी बात उठाई।

ईरान की आधिकारिक तेहरान टाइम्स से बातचीत के अनुसार, ईरान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खतीबज़ादेह ने कहा, “पंजशीर के कमांडर्स को जिस प्रकार से शहादत देनी पड़ी है, उसके लिए शब्द कम पड़ रहे हैं। ईरान कल रात के हमलों की कड़ी से कड़ी शब्दों में निंदा करता है। हम पंजशीर पर हुए हमलों के परिप्रेक्ष्य में विदेशी हस्तक्षेप की संभावना पर विचार कर रहे हैं।”

जी हाँ, आपने ठीक पढ़ा। ईरान ने न केवल पंजशीर में मारे गए क्रांतिकारियों को ‘शहीदों’ [बलिदानियों / हुतात्माओं] की श्रेणी में गिना, अपितु पाकिस्तान की भूमिका पर प्रश्न उठाते हुए आधिकारिक तौर पर अफ़ग़ानिस्तान के विषय पर हस्तक्षेप की बात भी की।

ईरान का मानना है कि बाहरी हस्तक्षेप का प्रश्न ही नहीं

ईरानी प्रवक्ता वहीं पे नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “ईरान मानता है कि अफ़ग़ानिस्तान की समस्या को केवल अफ़ग़ानिस्तान के पक्षधर ही आपसी बातचीत से सुलझा सकते हैं। इसमें बाहरी हस्तक्षेप का प्रश्न ही नहीं उठता। अफ़गान इतिहास साक्षी है कि प्रत्यक्ष तौर पर या अप्रत्यक्ष तौर पर अफ़गान राजनीति में अनावश्यक हस्तक्षेप से आक्रान्ताओं को केवल पराजय ही प्राप्त हुई है।”

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इस बयान का तात्पर्य क्या है? यहाँ ईरान ने स्पष्ट तौर पर न केवल तालिबानी सत्ता को मान्यता देने से मना किया है, अपितु पंजशीर घाटी पर पाकिस्तान और तालिबान के संयुक्त हमले की सार्वजनिक निंदा करके उसने स्पष्ट कर दिया है कि अब वह मौन नहीं रहेगा और जल्द ही पाकिस्तान और तालिबान को उसके पापों का दंड भुगतना पड़ेगा। सामरिक तौर पर ईरान का अपेक्षाओं के विपरीत जाकर पंजशीर घाटी पर हमलों की निंदा करना, ये जानते हुए भी कि चीन तालिबान को खुलेआम समर्थन दे रहा, अपने आप में बहुत कुछ कहता है।

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भारत के लिए अवसर

ईरान का यह नया रुख एक प्रकार से रूस और भारत के लिए भी एक सुनहरा अवसर है, कि वे एक अनोखा गठबंधन स्थापित करें, और पाकिस्तान एवं तालिबान का सम्पूर्ण विनाश कर दें। अब ये कैसे संभव है? अप्रत्यक्ष तौर पर रूस पहले से ही पंजशीर में लड़ रहे क्रांतिकारियों को अपना समर्थन दे रहा है, क्योंकि रूस समर्थक देश ताजिकिस्तान खुलेआम तालिबान के विरुद्ध मोर्चा खोल चुका है, और पाकिस्तान द्वारा तालिबान को मान्यता देने के प्रयासों को भी ठुकरा चुका है।

इसके अलावा यदि भारत प्रत्यक्ष तौर पर नहीं, तो भी कूटनीतिक तौर पर इस मोर्चे को बढ़ावा देकर पाकिस्तान, चीन और तालिबान के गठजोड़ का विध्वंस कर सकता है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जो पाकिस्तान और चीन से रणनीतिक और कूटनीतिक मोर्चों पर विजयी सिद्ध हुआ है। इन दिनों वह कूटनीतिक तौर पर अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानियों द्वारा हो रहे अत्याचार से सभी को अवगत करा रहा है।

सामरिक तौर पर ईरान का वर्तमान रुख भारत के लिए बेहद सकारात्मक संदेश भी देता है, क्योंकि वह उसके साथ चाबहार पोर्ट के विकास पर भी काम चल रहा है, जो अफ़ग़ानिस्तान से रणनीतिक तौर पर निकट भी था। ऐसे में यदि भारत और ईरान कूटनीतिक तौर पर इस मोर्चे पर एक हो जाएँ, और रूस भी उन्हें अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन दें, तो पाकिस्तान और तालिबान द्वारा पंजशीर घाटी पर आक्रमण उनके ताबूत की कील सिद्ध होगी।

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