पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम एकता? योगी के खिलाफ वामपंथी मीडिया का एक और प्रपंच

"पता नहीं जी कौन सा नशा करते हैं, जाट-मुस्लिम एकता की बातें करते हैं!"

जाट-मुस्लिम एकता

उत्तर प्रदेश की राजनीति में वामपंथी मीडिया का सदैव एक फॉर्मूला रहा है कि भाजपा के विरुद्ध माहौल बनाने के लिए झूठे राजनीतिक समीकरण खड़े किए जाएं। 2014 से लेकर अब तक प्रत्येक स्तर के चुनाव में कभी दलित-मुस्लिम, तो कभी यादव-मुस्लिम वोट बैंक की कल्पना गढ़ी गईं। वहीं कथित किसान आंदोलन के नाम पर मुजफ्फनगर में जो हालिया किसान पंचायच हुई थी, उसके जरिए जाट-मुस्लिम एकता के वोट बैंक की कल्पना की जाने लगी है। इस एकता का आधार भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत द्वारा अल्लाह-हु-अकबर का नारा बताया गया है। यह सर्वविदित है कि राकेश टिकैत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए किसान आंदोलन की नौटंकी कर रहे हैं, इसीलिए उन्होंने मुस्लिमों को अपने पक्ष में करने के लिए इस तरह का बयान दिया है। अब इसी आधार पर कई मीडिया पोर्टल इस बात को साबित करने के लिए प्रयासरत हैं जिससे यह जाट-मुस्लिम को एक जुट कर BJP को घेरा जा सके।

विपक्ष का नया शिगूफ़ा

इसके विपरीत अगर जमीनी स्तर पर देखें, तो ये कहा जा सकता है कि राज्य में जाट-मुस्लिम एकता नाम की कोई समीकरण है ही नहीं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का समर्थन भाजपा के साथ ही दिखता है, इसलिए ये कहना हास्यासपद होगा कि भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम वोट बैंक के फॉर्मूले से मात दी जा सकती है।

हालांकि, तब भी किसान आंदोलन के जरिए विपक्ष जाट-मुस्लिम एकता गढ़ने की तैयारी कर रहा है। किसान महापंचायत में राकेश टिकैत विपक्ष द्वारा प्रायोजित इस किसान आंदोलन के जरिए इस कल्पना को साकार करने की कोशिश भी कर चुके हैं। राकेश टिकैत द्वारा महापंचायत के मंच से अल्लाह-हु-अकबर का नारा लगाना इसका स्पष्ट उदाहरण है। नारे के साथ ही राज्य में जाट-मुस्लिम एकता का शिगूफा छोड़ दिया गया है। The Print और टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे मीडिया पोर्टल भी इस शिगूफा को बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।

कई मीडिया भी दें रहे हैं साथ

The Print ने इसी मुद्दे पर लेख लिखा जिसमें यह बताया कि बीजेपी को जाट-मुस्लिम एकता का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह TOI ने भी एक मत प्रकाशित किया जिसका हेडलाइन था कि, “नए कृषि कानूनों पर पश्चिमी यूपी में ‘जाट-मुस्लिम एकता’ का बीजेपी के लिए क्या मतलब है?”

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किसान महापंचायत के बाद से ही ये विश्लेषण किए जा रहे हैं, कि जाट मुस्लिम एकता से भाजपा को नुकसान हो सकता है। इसके विपरीत अगर जमीनी असलियत को देखें तो ये कहा जा सकता है, कि टिकैत का ये एक इस्लामिक नारा उनके राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की कल्पनाओं की धज्जियां उड़ा सकता है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय के लोग अभी 2013 के  मुजफ्फरनगर के दंगों को नहीं भूले हैं। इसके विपरीत दंगो में जिन जाटों के खिलाफ मुकदमें हुए उन्हें योगी सरकार ने आते ही वापस ले लिया, जिसके चलते जाट समुदाय में योगी के प्रति एक सकारात्मक रुख है। वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव को योगी सरकार के इस फैसले से आपत्ति है। ध्यान देने वाली बात ये है कि उनकी ये आपत्ति मुस्लिम तुष्टीकरण के आधार पर है, जिसके कारण उनके प्रति जाट समुदाय में आज भी आक्रोश है। इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि सैफई महोत्सव है। बता दें कि जिस वक्त मुजफ्फरनगर में दंगे हो रहे थे, तो अखिलेश अपने पिता के साथ सैफई महोत्सव के रंगारंग कार्यक्रमों का आनंद ले रहे थे।

आंकड़े देते हैं BJP का साथ

इसके चलते ही साल 2014 में जाटों का एक मुश्त वोट बैंक भाजपा के हिस्से आया था, कुछ ऐसी ही स्थिति 2017 के विधानसभा चुनाव में थी, जिसके दम पर भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेस में अपनी बढ़त बनाई थी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 फीसदी जाटों ने भाजपा को वोट दिया था, 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 91 फीसदी हो गया था। इसी तरह विधानसभा चुनावों की बात करें तो, 2012 में भाजपा ने पश्चिमी यूपी की 110 में से केवल 38 सीटें हासिल की थीं और 2017 में उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 88 जा पहुंची। भाजपा का ये उदय दर्शाता है कि जाट-मुस्लिम गंठजोड़ बस एक ढकोसला ही है।

हाल में ही हुए मुजफ्फरनगर निकाय चुनाव में TFI ने भाजपा की जीत का विश्लेषण पहले ही कर रखा  है, जिसमें भाजपा ने न केवल निकाय, ब्लॉक एवं जिला स्तर कें चुनाव जीते, अपितु मुस्लिम बहुल वार्डों में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया। यहां न राकेश टिकैत की पार्टी भारतीय किसान यूनियन के प्रत्याशी को समर्थन मिला और न ही सपा या बसपा को। वहीं जिला पंचायत चुनाव में भाजपा ने अपनी ताकत दिखाई थी। ऐसे में ये तय हो गया है कि राकेश टिकैत का एवं उनके जाट-मुस्लिम एकता की हवा का गुब्बारा फूट चुका है।

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किसान आंदोलन की बात करें, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश को गन्ना बेल्ट कहा जाता है, जिसका मूल्य सरकारा द्वारा ही निर्धारित होता है। फसल तैयार होने से पहले ही खरीददार तय होते हैं। वहीं, पिछले चार सालों में गन्ना किसानों को चीनी मिलों से सही समय पर पैसा भी मिल रहा है, जो कि सपा सरकार में उनकी सबसे बड़ी परेशानी था। ऐसे में उनके लिए किसान आंदोलन का कोई मतलब भी नहीं है। राकेश टिकैत 28 जनवरी को जिस तरह से रोए थे, उसके बाद उन्होंने जाट अस्मिता का मुद्दा बनाकर थोड़ा समर्थन अवश्य मिला था, किन्तु अल्लाह-हु-अकबर का नारा लगाकर उन्होंने मुजफ्फरनगर के दंगों के जख्मों को ही हरा कर दिया है, जिसके चलते उन्हें जो भी समर्थन मिला था, अब उसके हाथ से निकलने की संभावनाएं हैं।

पीएम मोदी की लोकप्रियता

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस जाट समुदाय के लिए 2014 के पहले भाजपा अछूती मानी जाती थी, उसी जाट वर्ग ने 2014 के चुनावों में भाजपा को अपनी पलकों पर बिठा लिया। ये निश्चित रुप से भाजपा के शीर्षस्थ नेता एवं प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का सटीक प्रमाण है। 2017 का विधानसभा चुनाव भी पार्टी ने पीएम मोदी के चेहरे पर ही लड़ा था, एवं उसका परिणाम ये था कि भाजपा गठबंधन 403 सीटों वाली विधानसभा में 325 सीटें लेकर आईं थी, जिसमें 88 सीटें पश्चिमी यूपी की भी थी। वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को सपा-बसपा गठबंधन होने के बावजूद बड़ी सफलता हाथ लगी थी।, जो कि इस क्षेत्र में पीएम मोदी की लोकप्रियता को दर्शाता है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कामकाजों की बात करें तो जेवर एयरपोर्ट से लेकर नोएडा फिल्म सिटी बनाने का ऐलान, गन्ना किसानों को सुविधाएं देने की बात से योगी सरकार की छवि यहां सकारात्मक है। इसके विपरीत बिजली एवं सुरक्षा  व्यवस्था की सुविधाओं के चलते जाटों का समर्थन योगी सरकार के लिए महत्वपूर्ण है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि भाजपा के खिलाफ विधानसभा चुनाव को लेकर जाट-मुस्लिम एकता की परिकल्पना के आधार पर जो एजेंडा चलाया जा रहा है वो खोखलेपन के अलावा कुछ भी नहीं है।

भाजपा के विरुद्ध उत्तर प्रदेश में पहले दलित-मुस्लिम एवं फिर यादव-मुस्लिम समीकरण का एजेंडा चलाया गया। ठीक वैसे ही एक एजेंडा जाट-मुस्लिम एकता पर भी चलाया जा रहा है, जिसका यथार्थ से तनिक भी सरोकार नहीं है।

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