कार्बी आंगलोंग शांति समझौता सुनने में तो मामूली सा लगता है पर यह सबसे महत्वपूर्ण समझौतों में से एक है

कार्बी आंगलोंग

असम और केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार आज नई दिल्ली में कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी) क्षेत्र के भीतर सक्रिय कम से कम छह विद्रोही समूहों के साथ एक कार्बी शांति समझौते पर हस्ताक्षर  किये हैं।

केंद्र और असम सरकार के अलावा, समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी) के मुख्य कार्यकारी सदस्य तुलीराम रोंगांग कार्बी लोंगरी नॉर्थ कछार हिल्स लिबरेशन फ्रंट, पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी, यूनाइटेड पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स गुटों के प्रतिनिधि हैं।

यह समझौता अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि कार्बी (असम का एक प्रमुख जातीय समुदाय), जो की कई गुटों और बिखरावों से घिरे समूहों में विभक्त हैं, 1980 के दशक के उत्तरार्ध से हत्याओं, जातीय हिंसा और अपहरण और फिरौती जैसे अपराध में लिप्त होने के कारण देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ था।

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सभी छह संगठनों – कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (केएलएनएलएफ), पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी (पीडीसीके), कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर (केपीएलटी) के तीन धड़ों और यूनाइटेड पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (यूपीएलए) के प्रतिनिधि नई दिल्ली पहुंचे। शुक्रवार को समझौते को अंतिम रूप देने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ विस्तृत बैठक की।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, वैसे तो विद्रोही समूहों की कुछ मांगों में कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी) को सीधे हस्तांतरण, एसटी के लिए सीटों का आरक्षण, परिषद को अधिक अधिकार, आठवीं अनुसूची में कार्बी भाषा को शामिल करना और अधिक एमपी/एमएलए सीटें और 1,500 करोड़ का वित्तीय पैकेज शामिल था। जिसके जवाब में सरकार नें भी उनकी मांगे पूरी करने का हरसंभव प्रयास किया। विरोधी गुटों की ज़्यादातर मांगें करीब करीब पूरी कर दी गयी है।

सरकार के अनुसार शांति समझौता असम की क्षेत्रीय और प्रशासनिक अखंडता को प्रभावित किए बिना कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएसीसी), पहचान, भाषा, कार्बी लोगों की संस्कृति और परिषद क्षेत्र के केंद्रित विकास के लिए स्वायत्तता का अधिक से अधिक हस्तांतरण सुनिश्चित करेगा। केंद्र असम सरकार को कार्बी क्षेत्रों के विकास के लिए परियोजनाएं शुरू करने के लिए अगले पांच वर्षों में 1,000 करोड़ का विकास पैकेज प्रदान करेगा। असम सरकार कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएसीसी) क्षेत्र के बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के केंद्रित विकास के लिए एक कार्बी कल्याण परिषद की स्थापना करेगी। कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएसीसी) के संसाधनों की पूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि को बढ़ाया जाएगा।

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कार्बी आंगलोंग असम का सबसे बड़ा जिला है, जिसमें विभिन्न आदिवासी और जातीय समूह जैसे कारबिस, बोडो, कुकी, दिमासा, हमार, गारोस, रेंगमा नागा, तिवास और मैन (ताई स्पीकिंग) शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में इन जनजातियों के बीच कई संघर्ष हुए हैं। 46.38 प्रतिशत पर कारबिस आबादी का बहुमत बनाते हैं। वे भाषाई रूप से तिब्बती-बर्मन समूह से संबंधित हैं। कार्बी आंगलोंग भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त जिला है। 01 अप्रैल, 1995 को कार्बी आंगलोंग जिला परिषद (केएडीसी) को कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी) में अपग्रेड किया गया।

असम के मध्य भाग में स्थित कार्बी आंगलोंग 10,434 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। 2011 की आधिकारिक जनगणना के अनुसार, कार्बी आंगलोंग की जनसंख्या 15,6313 है और औसत साक्षरता दर 61.25 प्रतिशत है। कार्बी आंगलांग दो भागों में विभाजित है- पश्चिमी कार्बी आंगलांग और पूर्वी कार्बी आंगलांग, जबकि प्रशासनिक मुख्यालय दीफू शहर में स्थित है। जिले का भूभाग मोटी वनस्पतियों और घने उष्णकटिबंधीय वन आवरण के साथ है।

सरकार ने कहा, “कुल मिलाकर, वर्तमान समझौते में कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएसीसी)को अधिक विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां देने का प्रस्ताव है।”

इन विद्रोही समूहों के कुल 1,040 आतंकवादियों ने 25 फरवरी को तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की मौजूदगी में गुवाहाटी के एक कार्यक्रम में औपचारिक रूप से हथियार डाल दिए थे।

इन संगठनों के आतंकवादी एक साल बाद अपने हथियार आत्मसमर्पण करने आए थे, जब भाजपा ने बोडोलैंड में लंबे समय से चल रही हिंसा को समाप्त करने के लिए बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसी शांति समझौते से इन्हें प्रेरणा मिली। बोडोलैंड भी एक स्वायत्त क्षेत्र है जिसे निर्वाचित निकाय – बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद द्वारा प्रशासित किया जाता है।

शाह ने ट्वीट किया, “ऐतिहासिक कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर: ये मोदी सरकार की दशकों पुराने संकट को हल करने के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाती है और  असम की क्षेत्रीय अखंडता को सुनिश्चित करती है।”

इस अवसर पर मौजूद केंद्रीय मंत्री और असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने असम और पूर्वोत्तर में शांति लाने के लिए प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के प्रयासों की सराहना की।

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक दिन है क्योंकि इन 6 विद्रोही समूहों के आतंकवादी अब मुख्यधारा में शामिल होंगे और कार्बी आंगलोंग के विकास के लिए काम करेंगे।

कार्बी बेहतर शासन के माध्यम से बेहतर अवसरों, सर्वांगीण विकास, बुनियादी सुविधाओं और अधिक सुरक्षा की मांग कर रहे थे। अंदरूनी इलाकों में अधिकांश ग्रामीण इलाकों को अभी भी पक्की सड़क से जोड़ा जाना बाकी है। इसलिए, सड़कों और परिवहन में सुधार के साथ-साथ अन्य विकास परियोजनाओं के साथ-साथ आरसीसी पुलों का निर्माण हमारा प्राथमिक क्षेत्र होना चाहिए। जिले में शिक्षा के लिए बुनियादी ढांचा भी भयावह है और इसमें तत्काल सुधार की जरूरत है। इसलिए, कार्बी आंगलोंग में स्थिरता और शांति के लिए कार्बी और गैर-कार्बी बसे हुए दोनों क्षेत्रों में विकास के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण आवश्यक है।

1947 में हमारा भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन भारत को स्वतन्त्रता सिर्फ भौगोलिक स्तर पर मिली जिसके बहुत सारे कारण थे। एक राष्ट्र के रूप में भारत की संकल्पना को अभी और पूर्ण करने की आवश्यकता है। सभी इसी मिट्टी के हैं और इस देश के शासन, संचालन और संस्कृति में जितना जुड़ाव और समरूपता होगी भारत उतनी ही तेज़ी से श्रेष्ठ राष्ट्र बनाने की ओर अग्रसर होगा। चाहे बोडोलैंड हो या कार्बी आंगलोंग हो या फिर अनुच्छेद 370, मोदी सरकार की प्रतिबद्धता दिखाई दे रही है। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की संकल्पना को साकार करने में सरकार जी जान से जुटी हुई है।

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