तमिलनाडु में एक कानून है और उस कानून का नाम है गुंडा एक्ट। गुंडा अधिनियम का पूर्ण रूप है – तमिलनाडु बूटलेगर्स, ड्रग अपराधियों, गुंडों, अनैतिक यातायात अपराधियों, वन अपराधियों की खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम, रेत अपराधी, झुग्गी कब्जा करने वाले और वीडियो पाइरेट अधिनियम, 1982। यह पहली बार 1923 में बंगाल में अधिनियमित किया गया था और भारत के कई राज्यों में किसी न किसी रूप में रहता है, इस कानून का उद्देश्य आदतन अपराधियों को एक साल तक जेल में रखना है।
इस कानून के तहत कोई भी व्यक्ति अगर जमीन कब्जा करता है या वीडियो की पायरेसी करता है तो वह गुंडा एक्ट के तहत सजा पाएगा। अब तमिलनाडु हाईकोर्ट ने मंदिरों की संपति पर भी अधिग्रहण करने वालों के लिए वहीं कानून उपयोग करने के लिए कहा है। मद्रास उच्च न्यायालय ने बुधवार को हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ विभाग (HR&CE) को एक सार्वजनिक अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है, जिसमें कहा गया है कि राज्य भर में मंदिर की संपत्तियों के सभी अतिक्रमणकारियों को स्वेच्छा से उन भूमि को आत्मसमर्पण करना होगा जो जबर्दस्ती कब्जे में ली गई है।
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न्यायमूर्ति SM सुब्रमण्यम ने जोर देकर कहा कि कुछ गम्भीर मामलों में तमिलनाडु में मंदिर संपत्तियों के संबंध में इस तरह की अतिक्रमण गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कड़े गुंडा अधिनियम को भी लागू किया जा सकता है।
न्यायालय ने अपने फैसले पर कहा है कि,
“गम्भीर मामलों में पुलिस द्वारा तथ्यों के आधार पर गुंडा अधिनियम के प्रावधानों को लागू किया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में, मामलें के जांच हेतु जिम्मेदार अफसर द्वारा ऐसे पेशेवर भूमि हथियाने वालों और व्यक्तियों के खिलाफ गुंडा अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में संकोच नहीं करना चाहिए। व्यक्तिगत और अन्यायपूर्ण लाभ के लिए बड़े पैमाने पर मंदिर की संपत्तियों के संबंध में अतिक्रमण और अवैध गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ गुंडा एक्ट लागू किया जा सकता है।”
न्यायालय द्वारा फैसले के बाद जमीन के दावों पर विफल होने पर लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की जाएगी। न्यायालय ने राज्य के अधिकारियों को अतिक्रमित मंदिर संपत्तियों को पुनः प्राप्त करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ का गठन करने का भी आदेश दिया है।
न्यायधीश ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि मंदिर की संपत्तियों पर धोखाधड़ी और अवैध अतिक्रमण, बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ अपराध है। मंदिर के धन का दुरुपयोग भी निस्संदेह एक अपराध है और ऐसे सभी अपराधों को दर्ज किया जाना चाहिए तथा अपराधियों पर राज्य द्वारा मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
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अटॉर्नी जनरल ने न्यायालय को जवाब में कहा कि मानव संसाधन और सीई विभाग ने राज्य में 39,743 धार्मिक संस्थानों की संपत्ति के विवरण की पहचान करने और जांच करने के लिए समितियों का गठन किया था और उन समितियों ने अब तक 17,185 धार्मिक संस्थानों की संपत्तियों की पहचान की है जिनके पास 50 हजार 490 टुकड़ो में 1,28,563 एकड़ भूमि है।
समितियों ने 15,256 संपत्तियों की जांच भी की थी और प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना 20,776 अनधिकृत कब्जे की पहचान भी की है। 4,118 एकड़ की भूमि पर कब्जा करने वाले 8,188 अतिक्रमणकारियों के खिलाफ पहले ही कार्रवाई शुरू हो चुकी है और 3,526 एकड़ की सीमा को कवर करने वाले 10,930 और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी है। AG ने कहा कि 16 मई, 2011 से 6 मई, 2021 तक 3,177 एकड़ भूमि जिनकी कीमत ₹ 3,819 करोड़ की है, उन्हें पुनः प्राप्त किया गया है।
तमिलनाडु में मंदिर सम्पतियों के अधिग्रहण वाले मामलें आते रहते हैं और अब इस समस्या को नजरअंदाज करना कोर्ट के लिए भी मुश्किल था। न्यायालय ने मंदिर के महत्व को भारतीय समाज से जोड़कर यह बताया है कि धार्मिक संस्थानो का सामाजिक योगदान कितना महत्वपूर्ण है।