ममता की “टूटी टांग” वाली नौटंकी फिर से शुरू, बस इस बार इनका ‘दिल टूटा’ है

भवानीपुर उपचुनाव ममता

PC: India Today

इन दिनों बंगाल में उपचुनावों की सरगर्मी ज़ोरों पर है। यहाँ सर्वाधिक ध्यान ममता बनर्जी पर केंद्रित है, जो भवानीपुर से उपचुनाव लड़ रही हैं। 30 सितंबर को प्रस्तावित भवानीपुर उपचुनाव में इतना तो स्पष्ट है कि ममता इसे जीतने के लिए कितनी आतुर हैं, और वह इसे सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं। पिछली बार टूटे पैर के सहारे ममता ने अपनी नैया पार लगाने का प्रयास किया था, और इस बार अपने ‘टूटे दिल’ के सहारे वह जनता की सहानुभूति बटोरना चाहती हैं।

असल में ममता भवानीपुर उपचुनाव में पराजय की संभावना से ही इतनी भयभीत हैं कि वह चुनाव प्रचार के पहले दिन से ही इमोशनल कार्ड खेलने लगी। हाल ही में भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र में तृणमूल कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को नंदीग्राम की हार के लिए दोषी ठहराया, और कहा कि उनकी साजिशों के कारण उन्हें दोबारा चुनाव लड़ना पड़ रहा है।

दरअसल, उपचुनाव से पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता ने इमोशनल कार्ड खेलते हुए कहा कि, ”केवल भगवान जानता है कि किस तरह 2021 के चुनाव हुए। केंद्र ने झूठ बोला, फिर भी मुझे हरा नहीं पाए। नंदीग्राम में मुझ पर हमले के पीछे साजिश थी। बंगाल को लेकर भ्रमित करने के लिए 1000 गुंडे बाहर से आए। वे राजनीतिक रूप से नहीं लड़ सकते हैं, इसलिए उन्होंने कांग्रेस को एजेंसियों की मदद से रोका। अब मेरे साथ भी वही कर रहे हैं।”

वे वहीं नहीं रुकी। अपने भ्रष्ट भतीजे अभिषेक बनर्जी के कोयले आवंटन को लेकर प्रवर्तन निदेशालय से पूछताछ को भी उन्होंने ‘बदले की भावना’ से प्रेरित बताया। ममता के अनुसार, “वे फिर उसे  पूछताछ के लिए बुला रहे हैं, लेकिन वास्तव में एक व्यक्ति जिसका नाम नारदा कनेक्शन में सामने आया था उसे नहीं बुलाया जा रहा है।”

और पढ़ें : ममता हारने से इतना डर गई हैं कि भाजपा के भवानीपुर इंचार्ज के घर पर बम फेंकवा रही हैं

यदि वास्तव में केंद्र की साजिश होती, तो ममता बनर्जी दोबारा चुनाव लड़ ही नहीं पाती। यदि ममता इतनी ही योग्य होती, तो अभी भवानीपुर उपचुनाव में भाजपा के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह के घर पर बमों से हमला नहीं हो रहा होता। असल में ममता ने ‘टूटी टांग’ के सहारे 2021 के विधानसभा चुनाव में सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया था। हालांकि, ये प्रयास आंशिक रूप से ही सफल रहा था, क्योंकि भले ही भाजपा सत्ता की लड़ाई हार गई, परंतु प्रमुख विपक्ष के रूप में उभरने के साथ-साथ कई सीटों पर वह तृणमूल से बेहद मामूली अंतर से हारी। इसके अलावा शुवेन्दु अधिकारी ने नंदीग्राम में अनेक बाधाओं और चुनौतियों के बावजूद ममता बनर्जी को परास्त किया, जिसके कारण अब ममता के हाथ से सत्ता खिसकने का भय स्पष्ट दिखाई दे रहा है।

इसके अलावा ममता के पास ऐसी कोई उपलब्धि नहीं है, जिसके बल पर भवानीपुर में विजय प्राप्त कर सके। हिंसा के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं दिखाई पड़ रहा, लेकिन चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की सख्त निगरानी में होने वाले इस उपचुनाव में भी इसकी संभावना कम है। यदि ममता भवानीपुर उपचुनाव में पराजित होती हैं, तो छह महीने बाद उन्हे अपनी कुर्सी खाली करनी पड़ेगी, और संभवत: तृणमूल काँग्रेस के अत्याचारी शासन पर भी पूर्णविराम लग सकता है।

ऐसे में ममता बनर्जी अब हर विकल्प निरर्थक पड़ने पर इमोशनल कार्ड खेलकर सहानुभूति बटोरना चाहती है, ताकि लोग भावुक होकर उनके पक्ष में वोट दे दें। लेकिन जब आपके उपलब्धि की श्रेणी में बंगाल का विध्वंस और लाखों हिंदुओं पर अत्याचार सम्मिलित हो, तो आखिर कितने दिनों अपने निश्चित विनाश को रोक पायेंगी?

 

Exit mobile version