मोदी सरकार ने गीता और अर्थशास्त्र के पाठों के साथ सैन्य प्रशिक्षण का हिंदूकरण शुरू किया

कौटिल्य का अर्थशास्त्र और श्रीकृष्ण की भगवद गीता आधिकारिक रूप से भारतीय सेना के सैन्य प्रशिक्षण का हिस्सा बनेंगे!

कौटिल्य का अर्थशास्त्र और श्रीकृष्ण की भगवद गीता आधिकारिक रूप से भारतीय सेना के सैन्य प्रशिक्षण का हिस्सा बनेंगे जिस देश ने संसार को कूटनीति और युद्धनीति का पाठ पढ़ाया हो, उसे पुनः अपने मूल आधार की ओर लौटने का अवसर मिल रहा है। हाल ही में भारतीय सेना के अंतर्गत आने वाले प्रशिक्षण संस्थान ने अपने आंतरिक अध्ययन में इस बात पर जोर दिया है कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों, जैसे कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र एवं भगवद गीता को शामिल किया जाए। इस पर शोध भी किया जाएगा और इसे संभवत भारतीय सैन्यबल के प्रशिक्षण में प्रयोग में लाया जाएगा। जी हाँ, आपने ठीक सुना। आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र और भगवद गीता जैसे प्राचीन ग्रंथों को भारतीय सैन्यबलों, विशेषकर भारतीय सेना के सैन्य प्रशिक्षण का भाग बनाया जाएगा।

कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट द्वारा किया गया था अध्ययन

दरअसल, सिकंदराबाद में स्थित कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट (CDM) द्वारा किए गए एक आंतरिक अध्ययन में कौटिल्य (Kautilya) के अर्थशास्त्र (Arthashastra) और भगवत गीता (Bhagavad Gita) जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों को सैन्य् प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया गया है। कॉलेज द्वारा किये गए अध्ययन में इस बात पर भी जोर देते हुए कहा गया है कि इस क्षेत्र में शोध किया जा सकता है और इसके लिए ‘भारतीय संस्कृति अध्ययन मंच’ भी बनाया जा सकता है।

बता दें कि सिकंदराबाद के कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट में भारतीय सेना के तीनों भागों यानि सेना, नौसेना और भारतीय वायु सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जाती है और उच्च रक्षा प्रबंधन के लिए तैयार किया जाता है। न्यूज 18 के रिपोर्ट के अंश अनुसार, “इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के मुख्‍यालय द्वारा एक प्रोजेक्ट तैयार किया गया है जिसका नाम है, प्राचीन भारतीय संस्कृति और युद्ध तकनीकों के गुण और वर्तमान समय में सामरिक सोच और प्रशिक्षण में इसका समावेश।

रक्षा सूत्रों ने News18 को बताया कि इस परियोजना का उद्देश्य भारतीय सशस्त्र बलों में रणनीतिक सोच और नेतृत्व के संदर्भ में चुनिंदा प्राचीन भारतीय ग्रंथों की खोज करना है। इसके साथ ही इसका मकसद सर्वोत्तम प्रथाओं और विचारों को अपनाने के लिए एक रोडमैप स्थापित करना है, जो वर्तमान समय में प्रासंगिक है। एक शीर्ष रक्षा सूत्र ने कहा, ‘यह रोड मैप कौशल, सैन्य कूटनीति व अन्य क्षेत्रों में हो सकता है।” इसके अलावा अर्थशास्त्र एवं भगवद गीता जैसे पुस्तकों का सैन्य अध्ययन में सम्मिलित कराना न केवल महत्वपूर्ण है, अपितु आवश्यक भी। युद्धनीति के लिए ये दोनों ही पुस्तक मूल आधार माने जाते हैं।

आज भी अर्थशास्त्र और गीता के समान कोई अन्य पुस्तक नहीं

अर्थशास्त्र राजनीति एवं युद्धनीति में आज भी आधुनिक इतिहासकारों की दृष्टि में एक आदर्श उदाहरण माना जाता है, जिसके रचयिता, आचार्य चाणक्य ने ‘अखंड भारत’ के स्वप्न की नींव रखी थी, और जिसे पूर्ण करने में सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने काफी सहायता भी की। भगवद गीता धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, और युद्धनीति के दृष्टि से भी। जिस पुस्तक की रचना ही युद्धभूमि पर दिए भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों से हुई हो, उसका महत्व अपने आप काफी बढ़ जाता है।

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उदाहरण के लिए भारतीय सेना के एक प्रसिद्ध रेजीमेंट, बिहार रेजीमेंट का motto यानि प्रेरणास्त्रोत / आदर्श वाक्य भी भगवद गीता की देन है – कर्म ही धर्म है। इस निर्णय से ही एक ही तीर से दो निशाने साधे जाएंगे। एक तरफ केंद्र सरकार द्वारा सेना के भारतीयकरण की योजना को लाभ और प्रोत्साहन मिलेगा। दूसरी ओर भारतीय शास्त्रों को पुनः उनका खोया गौरव प्राप्त होगा।

मार्च में गुजरात के केवड़िया में संयुक्त कमांडरों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सैन्य उपकरणों की खरीद में अधिक स्वदेशीकरण की बात कही थी। तीन दिनों तक चले सम्मेलन के दौरान सशस्त्र बलों में परंपराओं और संस्कृति के भारतीयकरण पर दो अलग-अलग सत्र भी इसी उद्देश्य से आयोजित कराए गये थे। ऐसे में इन पुस्तकों को आधिकारिक तौर पर भारतीय सैन्यबलों के प्रशिक्षण का भाग बनाना अपने आप में इस बात का सूचक है कि अब देश के मूल शास्त्रों को उनका गौरव पुनः प्रदान किया जा रहा है, और जल्द ही भारत पुनः विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर होगा, सांस्कृतिक तौर पर भी और रक्षात्मक तौर पर भी।

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