बख्तियारपुर स्टेशन का नाम बदलने में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर उभरा नीतीश का मुस्लिम तुष्टीकरण

क्रूर आक्रमणकारियों के नाम पर स्टेशन होना हमारी धरोहर के साथ मजाक है.....

बख्तियारपुर स्टेशन पर नितीश कुमार

मुहम्मद बख्तियार खिलजी एक तुर्क आक्रमणकारी था और क्रूर आक्रमणकारियों के नाम पर बख्तियारपुर स्टेशन होना हमारी धरोहर के साथ मजाक है। इसी चीज को संज्ञान में लेकर कई बार नेताओं द्वारा बख्तियारपुर स्टेशन का नाम बदलने की मांग की जाती है। बीजेपी सांसद गोपाल नारायण सिंह बख्तियारपुर स्टेशन मुद्दे को राज्यसभा में भी उठा चुके हैं और बाद में बीजेपी विधायक मिथिलेश कुमार भी सीएम नीतीश कुमार से बख्तियारपुर और स्टेशन का नाम बदलने की मांग कर चुके हैं। अब इतने समय बाद जब नीतीश कुमार से यह सवाल पूछा गया कि स्टेशन का नाम क्यों नही बदला है या इसे कब बदला जाएगा, तो इसपर नीतीश कुमार ने बेतुकी बात कहकर टाल दिया है। सोमवार को पटना में जनता दरबार में जब एक मीडियाकर्मी ने यह सवाल पूछा तो नीतीश कुमार ने स्पष्ट कहा कि बख्तियारपुर और स्टेशन का नाम क्यों बदलेंगे? यह सब बिना मतलब की बात है।

नाम बदलने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा कि बख्तियारपुर और स्टेशन का नाम बदलने की मांग फालतू है। उन्होंने बाद में बताया कि वह नाम क्यों नहीं बदलना चाहते हैं, नीतीश ने बताया कि बख्तियारपुर उनका जन्मस्थान है, इसलिए नाम नहीं बदला जाएगा। देखा जाये तो नाम बदलने को लेकर नीतीश का गुस्सा साफ़ दिखता है कि उन्होंने डर है कि बख्तियारपुर का नाम बदलने से उनका मुस्लिम वोट बैंक न छिटक जाये l किसी जगह का नाम उसके इतिहास और स्थानीयता की पहचान होती है। दुनिया भर में उपनिवेशवाद के अंत के बाद नाम बदला गया है और यह जरूरी इसलिए है क्योंकि नाम से आपकी छवि पर प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक पहचान की प्राथमिक जिम्मेदारी जगह के नाम की होती है। उपनिवेशवाद के दौरान बहुत से देशों के नाम अंग्रेजी दस्तावेजों के सुलभता हेतु बदल दिए गए। आजादी पाने के बाद उन जगहों ने अपना पुराना नाम वापस से रखा है।

गोल्ड कोस्ट घाना बन गया, बर्मा म्यांमार बन गया, रोडेशिया जिम्बाब्वे बन गया। अपनी स्वतंत्रता अर्जित करने के बाद नाम बदलने या तो एक ऐसा नाम बनाने की मांग जो उस स्थान के इतिहास को दर्शाये, इसके पीछे यह वजह है कि वो नाम स्थानीय प्राथमिकताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करता है। इतिहास में कई जगह शख्सियतों के महिमामंडन के लिए नाम बदला गया है। सोवियत संघ ने वोल्गोग्राड का नाम लेनिनग्राद और सेंट पीटर्सबर्ग का नाम स्टेलिनग्राद, राजनीतिक नेताओं के सम्मान में रखा था जिसे सोवियत संघ के पतन के बाद बदल दिया गया। कनाडा और आयरलैंड जैसे राष्ट्र भी अपना नाम बदल चुके है। ओटावा और टोरंटो के कनाडाई महानगरों ने 19वीं शताब्दी के मध्य में क्रमशः बायटाउन और यॉर्क से अपने नाम बदल दिए, ताकि देशी प्रभावों के साथ-साथ उनकी जनसांख्यिकी और इतिहास को बेहतर ढंग से दर्शाया जा सके। आयरलैंड और वेल्स भी अपने आप को डबलिन और कार्डिफ़ जैसे शहरों के नाम पर जुड़ाव दिखाते हैं।

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1202 ई. में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था। इतिहास बताता है कि बख्तियार खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था और अपनी कुंठा के चलते उसनें दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर राख कर दिया था। ऐतिहासिक दावों के मुताबिक, बख्तियार खिलजी बीमार हो गया था और मरणासन्न अवस्था में चला गया था। तमाम लोगों के इलाज के बाद भी जब वह सही नहीं हुआ तो वह इलाज के लिए राहुल श्रीभद्र के पास गया लेकिन एक शर्त के साथ, शर्त यह थी कि वह राहुल द्वारा दी गई दवाओं को नहीं खाएगा। राहुल ने कुछ सोचा और बाद में उसे कहा कि वह कुरान पढ़े, इससे वह ठीक हो जाएगा।

कहा जाता है कि राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर दवाओं को लगा दिया था और जैसे-जैसे खिलजी ने कुरान के उन पन्नों को पढ़ना शुरू किया वह ठीक होता गया। ठीक होने के बाद खिलजी इस बात से हैरान था कि एक भारतीय विद्वान और नालंदा के शिक्षक को उसके राजकुमारों और देशवासियों से अधिक ज्ञान था। इसके बाद उसने कुंठावश बौद्ध धर्म और आयुर्वेद की जड़ों को नष्ट करने का फैसला किया। नतीजतन, खिलजी ने नालंदा के महान पुस्तकालय में आग लगा दी और लगभग 9 मिलियन पांडुलिपियों को जलाकर राख कर दिया। एक लंबे समय से उसके नाम पर बिहार में बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन है। ऐसे में बहुत आवश्यक हो जाता हैं कि भारतीय संस्कृति के विरोधी रहे ऐसे आक्रान्ताओं का महिमामंडन करने वाले हर शहर, मार्ग, सड़क का नाम बदलने का कार्य जल्द से जल्द किया जाये l

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