लक्षद्वीप में शराबबंदी पर वाह-वाह और मथुरा में हाय-हाय – वामपंथियों के दोहरे मापदंडों हर दिन चकित करते हैं

शराबबंदी मथुरा

घटना एक तरह की! शराबबंदी! स्थान दो! एक लक्षद्वीप एक मथुरा! परंतु मानदंड भी! एक में इस्लाम की रक्षा हो रही थी तो एक में इस्लाम पर अत्याचार बताया जा रहा है! जी हाँ! ऐसी है हमारे देश के वामपंथी इस्लामिस्टो का विरोधाभास! इसका कारण सिर्फ और सिर्फ सरकार द्वारा विकास के लिए उठाए गए कदम।

वामपंथी बुद्धिजीवी और उनके दोहरे मापदंडों से कोई भी अनभिज्ञ नहीं हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतान्त्रिक अधिकारों की दुहाई देने वाले ये लोग तालिबान के अत्याचारों और सदियों से कट्टरपंथी मुसलमानों एवं कम्युनिस्ट तानाशाहों के अत्याचारों पर मौन व्रत साध लेते हैं। वामपंथियों के दोहरे मापदंड हर दिन एक नया रूप धारण करते हैं, और मथुरा के विषय में भी इन्होंने यही किया है।

वो कैसे? असल में योगी सरकार ने घोषणा की कि कृष्ण नगरी मथुरा में शराबबंदी और माँस की बिक्री नहीं होगी। अगर कोई इन दोनों माध्यम से अपनी आजीविका चलाता है तो वो दूध की बिक्री कर सकता है। बस इसी बात पर लेफ्ट ब्रिगेड और इस्लामिस्टों में भूचाल आ गया और योगी सरकार को तरह-तरह के उलाहने मिलने प्रारंभ हो गए थे। कुछ ने इसे ‘लोकतंत्र की हत्या’ जताने का प्रयास भी किया।

उदाहरण के लिए मथुरा में शराबबंदी पर आरफा खानुम शेरवानी को ही देख लीजिए। द वायर की स्टार पत्रकार ने एक बार फिर अपनी कुंठा जगज़ाहिर करते हुए ट्वीट किया, “बहुसंख्यकों का अत्याचार देखिए – अब बहुसंख्यक निर्णय ले रहे हैं कि अल्पसंख्यक क्या खाएँगे, क्या पहनेंगे और कैसे अपना जीवन व्यतीत करेंगे। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अब मथुरा में माँस और मदिरा की बिक्री पर रोक लगा दी है।”

हालांकि, आरफा इस प्रपंच में अकेली नहीं थी। फिल्मकार ओनिर ने मथुरा पर तंज कसते हुए लिखा, “चलो एक जगह मेरे पर्यटन सूची से हट गई।”

कुछ लोगों के आत्मविश्वास को दाद देनी पड़ेगी। यह जानते हुए भी कि किसका प्रशासन उत्तर प्रदेश पे है, वे अवैध व्यापार को बढ़ावा देने के ट्वीट्स करते हैं, जैसे ये यूजर कर रही हैं।

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लेकिन इन्हीं वामपंथियों का ज्ञान तेल लेने चला जाता है जब लक्षद्वीप में मुस्लिम बहुसंख्यक केंद्र सरकार के नवीनीकरण योजनाओं का अकारण विरोध करती है, और उसे रोकने के लिए कोर्ट के दरवाज़े तक खटखटाती है।

यही वामपंथी, जो आज मथुरा के बहुसंख्यक हिंदुओं को उपदेश दे रहे हैं, वो लक्षद्वीप के ‘बहुसंख्यकों’ की ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं। स्वयं आरफा खानुम शेरवानी जैसे पत्रकार भी इनके शराबबंदी और बचाव में अजीबोगरीब तर्क देने लगते हैं। आरफा ने लक्षद्वीप के ‘बहुसंख्यक’ मुस्लिमों पर अत्याचार की बात करते हुए उसके ‘भगवाकरण’ का आरोप लगाया था। उन्होंने आईशा सुलताना के तर्ज पर आरोप लगाया था कि लक्षद्वीप को नष्ट किया जा रहा है।

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लक्षद्वीप के ‘बहुसंख्यकों’ के बचाव में मलयाली अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन भी सामने आए थे, जिन्हें खुद इसी द्वीप के कट्टरपंथियों द्वारा अपनी ही फिल्म ‘अनारकली’ के शूटिंग के पीछे काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। अर्थात लक्षद्वीप के ‘बहुसंख्यक’ शराबबंदी की मांग करे तो सुभानअल्लाह, और मथुरा के ‘बहुसंख्यक’ मदिरापान और माँस के सेवन पर प्रतिबंध की मांग करे तो हाय अल्लाह, हाय अल्लाह! ऐसे कैसे चलेगा मित्रों?

असल में वामपंथियों के इसी दोहरे चरित्र के पीछे उनकी विश्वसनीयता दिन प्रतिदिन घटती जा रही है। जिस प्रकार से ये तालिबानियों के बचाव में सामने आते हैं, लक्षद्वीप के कट्टरपंथी मुसलमानों का बचाव करने के लिए तुरंत प्रकट हो जाते हैं, परंतु उसी समय मथुरा में शराबबंदी की योजना लागू होने पर हाय तौबा मचाते हैं, उसके पीछे इनपे लोगों को अब क्रोध कम हंसी अधिक आती है। एक बार को गिरगिट भी रंग बदलना बंद कर सकता है, परंतु वामपंथी के मापदंड हर मिलिसेकेंड बदलते हैं, क्योंकि एजेंडा सर्वोपरि होना चाहिए, नैतिकता जाए तेल लेने।

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