8 जुलाई 2016 को कश्मीर में आतंक का पर्याय बन चुके बुरहान मुज़फ्फर वानी को भारतीय सुरक्षाकर्मियों ने एक अप्रत्याशित एनकाउंटर में मार गिराया। वे गए थे किसी अन्य आतंकी को पकड़ने, परंतु लगे हाथों बुरहान भी मिल गया, लेकिन अगले ही दिन घाटी में जो देखने को मिला, उससे पता चला कि इस्लामिक आतंकवाद ने कश्मीर में किस हद तक अपनी जड़ें जमा ली हैं। हालांकि, कश्मीर घाटी को इस स्थिति तक लाने वाले, कश्मीर के सबसे मुखर अलगाववादियों में से एक, सैयद अली शाह गिलानी की मृत्यु के बाद जो हुआ, उससे स्पष्ट पता चलता है कि बुरहान वानी से सैयद अली शाह गिलानी की मृत्यु के बीच काफी कुछ बदला है।
कल रात यानी 1 सितंबर को श्रीनगर में अपने निवास पर पाक समर्थक और प्रखर अलगाववादी सैयद अली शाह गिलानी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वो 91 वर्ष का था और उसके कारण पिछले 4 दशकों से कश्मीर घाटी और उत्तरी भारत में अशान्ति का वातावरण व्याप्त था। कश्मीर के मूल निवासियों, यानी कश्मीरी हिंदुओं को अपना ही घर छोड़ने पर विवश करने में इस अलगाववादी नेता का भी बहुत बड़ा हाथ था, जो तीन बार जम्मू कश्मीर की विधानसभा का सदस्य भी रह चुका था।
मृत्यु के बाद जिस प्रकार से गिलानी को गुपचुप तरह से दफनाया गया, न कोई कवरेज मिला और न ही कोई विशाल भीड़ एकत्रित हुई। ये बातें अपने आप में कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कहती हैं। इससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने एक ही तीर से दो निशाने साध दिए। उन्होंने न केवल पाकिस्तान द्वारा घाटी में अशान्ति फैलाने की योजना को विफल किया, अपितु सैयद अली शाह गिलानी को ऐसी विदाई दी, जिसके लिए वह वास्तव में योग्य था – लाइमलाइट से दूर, गुमनामी के अंधेरे में।
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सैयद अली शाह गिलानी के मृत्यु के बाद से ही पाकिस्तान घाटी में अशान्ति फैलाने के उद्देश्य से भड़काऊ पोस्ट करने में जुट गया। इसका अंदाजा आप पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के ट्वीट से लगा सकते हैं। उनके ट्वीट के अनुसार, “कश्मीरी नेता सैयद अली शाह गिलानी के इंतकाल की खबर सुनकर बहुत दुखी हूँ। गिलानी जीवनभर अपने लोगों और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए लड़ते रहे। भारत ने उन्हें कैद करके रखा और प्रताड़ित किया।”
इमरान ने आगे ये भी घोषणा की कि वो गिलानी की मौत का शोक मनाएंगे। उन्होंने लिखा, “हम पाकिस्तान में उनके संघर्ष को सलाम करते हैं और उनके शब्दों को याद करते हैं- हम पाकिस्तानी हैं और पाकिस्तान हमारा है। पाकिस्तान का झंडा आधा झुका रहेगा और हम एक दिन का आधिकारिक शोक मनाएंगे।” बता दें कि वर्ष 2020 में पाकिस्तान ने उन्हें निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा था।
जैसे बुरहान वानी की मृत्यु के पश्चात एक विशाल यात्रा निकाली गई, जिसे आधार बनाकर कश्मीर में अलगाववादी राजनीतिज्ञों ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया, ठीक उसी प्रकार से सैयद अली शाह गिलानी को ‘शहीद’ के रूप में चित्रित कर अलगाववादी और उनके पाकिस्तानी आका अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे। बुरहान वानी की मृत्यु पर जो विशाल शवयात्रा निकाली गई थी, उसी ने एक प्रकार से उरी के घातक हमले की नींव भी रखी थी।
स्वयं गिलानी का परिवार भी चाहता था कि उन्हें सुबह 10 बजे के करीब दफनाया जाए, परंतु इसकी इजाजत नहीं दी गई। गिलानी को गुरुवार सुबह श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में सुबह 4:37 पर सुपुर्द-ए-खाक किया गया। इस दौरान इंटरनेट सेवा बंद रही, ताकि घाटी में अफवाहों के कारण किसी तरह की परेशानी न हो।
पत्रकार रोहन दुआ के अनुसार, आज सुबह 4:30 बजे जम्मू-कश्मीर पुलिस की देखरेख में कश्मीरी अलगाववादी नेता गिलानी को दफनाया गया। बताया जा रहा है कि गिलानी के कुछ साथियों ने ऐसे समय में भी स्थानीय लोगों को उकसाते हुए विरोध का आह्वान किया था। इसी के मद्देनजर कश्मीर पुलिस ने गुरुवार की तड़के किसी भी जुलूस निकालने की उनकी योजना को विफल कर दिया और आवश्यक पाबंदियां लगाईं।
इस सफलता में थोड़ा योगदान अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधानों के निरस्त होने का भी है, जिनके कारण अब अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर पहले की भांति आतंकियों का महिमामंडन नहीं किया जा सकता। इसका सबसे प्रत्यक्ष संकेत तब देखने को मिला जब बुरहान वानी के पिता इस वर्ष 15 अगस्त को तिरंगा फहराने को विवश हुए। भले ही वो नाटक रहा हो, परंतु ये स्पष्ट है कि अब भारतीयता का अपमान करना कश्मीरी नागरिकों के लिए खतरे से खाली नहीं होगा।
जब बुरहान वानी को यमलोक भेजा गया, तब उसकी लाश को जिस तरह दफनाया गया, वो कश्मीर के तत्कालीन संस्कृति का परिचायक थी, जो कश्मीर के पतन को चित्रित करती थी, लेकिन सैयद अली शाह गिलानी जैसे नीच, निकृष्ट अलगाववादी की मृत्यु पर उसे गुपचुप दफनाना, वो भी बिना किसी के जाने, इस बात का सूचक है कि अब भारत बदल रहा है। अब यहाँ देश के किसी भी कोने में आतंक की नहीं, धर्म की जय होगी, अलगाववाद का नहीं, राष्ट्रवाद का गुणगान होगा।