खालिस्तानी विरोधी पूर्व IPS अधिकारी इकबाल सिंह लालपुरा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष नियुक्त

लालपुरा ही वह पुलिस अधिकारी थे जिन्होंने 1981 में आतंकी जरनैल सिंह भिंडारवाले को गिरफ्तार किया था।

इकबाल सिंह लालपुरा को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के नए अध्यक्ष

PC: Global Punjab

हाल ही में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में फेरबदल करते हुए नया अध्यक्ष चुना है। तो इसमें नई बात क्या है? असल में दशकों बाद राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की अध्यक्षता पर से मुसलमानों के वर्चस्व को तोड़ते हुए एक सिख को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के तौर पर चुना गया है। भाजपा के पंजाब इकाई के प्रवक्ता एवं पूर्व आईपीएस अफसर रह चुके इकबाल सिंह लालपुरा को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के नए अध्यक्ष के तौर पर चयनित किया गया है

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, “पंजाब के चुनावों से कुछ माह पहले बुधवार को सरकार ने इकबाल सिंह लालपुरा को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के तौर पर चयनित किया है। वे एक धार्मिक अफसर हैं, जिन्होंने कई जगह बतौर आईपीएस अफसर अपनी सेवाएँ दी थी, और खालिस्तानी उग्रवादियों और सरकार के बीच अनेकों बार उन्होंने मध्यस्थता भी की थी। 2012 में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने वाले इकबाल पार्टी के पंजाब इकाई के प्रवक्ता भी हैं”।

तो इनमें ऐसी क्या खास बात है, जिसके पीछे इनके चयन को अभूतपूर्व माना जा रहा है। सर्वप्रथम तो यह कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग केवल नाम का अल्पसंख्यक आयोग था, क्योंकि अधिकतर अध्यक्ष इसके मुस्लिम ही रहे हैं। ऐसे में इसे राष्ट्रीय मुस्लिम आयोग कहना गलत नहीं होता। इस वर्चस्व को दशकों बाद तोड़ने वाले आईपीएस इकबाल सिंह लालपुरा अल्पसंख्यक आयोग के पहले गैर मुस्लिम अध्यक्ष हैं।

एक और कारण हैं जिस वजह से इनका चयन बेहद अभूतपूर्व है। आईपीएस अफसर इकबाल सिंह लालपुरा खालिस्तानी विरोधी अफसर भी रहे हैं, जिन्होंने जरनैल सिंह भिंडरावाले जैसे धूर्त, दुर्दांत खालीस्तानी को हिरासत में लेने का साहस दिखाया था। 1978 में जब निरंकारी सिखों और खालिस्तानियों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, तो उसके संबंध में 1981 में भिंडरावाले को घेरने में पंजाब पुलिस सफल रही।

भिंडरावाला के पास हिरासत में जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था, परंतु हिरासत में आने की उसकी शर्त थी कि कोई नामधारी सरदार ही उसे हिरासत में ले। ऐसे में इकबाल सिंह लालपुरा, जरनैल सिंह चहल और SDM बीएस भुल्लर के रूप में तीन नामधारी उसे हिरासत में लेने के लिए आगे आए, और भिंडरावाले हिरासत में लिया गया था, लेकिन कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति के चलते भिंडरावाले को अक्टूबर 1981 में ही छोड़ भी दिया गया, जो बाद में उनकी पार्टी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए ही घातक सिद्ध हुआ।

इकबाल सिंह लालपुरा सिख धर्म ग्रंथों के बहुत बड़े ज्ञाता हैं और उन्होंने 14 पुस्तकें भी लिखी हैं। अपने चयन की सूचना मिलने के पश्चात उन्होंने कहा, “मुझे प्रसन्नता है कि मुझे सरकार ने इस जिम्मेदारी के लिए चुना। मैं प्रयास करूंगा कि देश में अल्पसंख्यकों के हितों को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंचे”।

पूर्व आईपीएस अफसर इकबाल सिंह लालपुरा जैसे खालिस्तान विरोधी अफसर को चुनकर केंद्र सरकार ने एक ही तीर से दो निशाने साधे हैं। एक ओर पंजाब में उन्होंने सिख समुदाय को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया है कि यदि वास्तव में कोई उनका हितैषी है, तो वो केवल भाजपा है। दूसरी ओर उन्होंने उन आलोचकों का मुंह बंद किया है जो पिछले कुछ महीनों से पीएम मोदी को मुसलमानों का हितैषी दिखाने का प्रयास कर रहे थे, और ‘मौलाना मोदी’ जैसे तंज कस रहे थे।

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