भारत से Ford के निकलने पर Global Times के घटिया लेख को TFI का जवाब

ग्लोबल टाइम्स फोर्ड

कहते हैं व्यक्ति वैसा ही बन जाता है जैसी उसकी संगत, और ये बात चीन से बेहतर कोई नहीं समझा सकता। आम तौर पर लोग अपने से बेहतर व्यक्ति का अनुसरण करने का प्रयास करते हैं, लेकिन चीन तो पाकिस्तान की नकल उतारने में जुट गया है, कि कैसे भी करके भारत को नीचा दिखाया जाए, चाहे खुद उस क्षेत्र में अव्वल दर्जे का फिसड्डी हो। हाल ही में अपने लचर प्रदर्शन के कारण प्रसिद्ध ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड को भारत समेत कई देशों से अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा, लेकिन ग्लोबल टाइम्स ने इस विषय पर जो भारत पर तंज कसा है, उस पर आपको क्रोध बाद में, और हंसी पहले आएगी, और जबरदस्त आएगी।

अब ये कैसे संभव है? असल में फोर्ड के भारत से निकलने को लेकर ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख लिखा है, जिसमें उसने स्वाभाविक तौर पर भारत को नीचा दिखाने का प्रयास किया है। एक बार आप लेख का शीर्षक देखिए: 

‘चीनी एक्स्पर्ट्स के अनुसार फोर्ड के निकासी से मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ के स्वप्नों को लगा जबरदस्त झटका’

कमाल है, हमें नहीं पता था कि कांग्रेस आईटी सेल ने बीजिंग में भी दफ्तर खोल लिया है, परंतु ग्लोबल टाइम्स के लेख को पढ़कर तो ऐसा ही प्रतीत होता है। लेकिन रुकिए, चीन के ये दावे यहीं पर खत्म नहीं होते। ग्लोबल टाइम्स ने आगे अपने लेख में लिखा है, “अपने घाटे को कम करने हेतु फोर्ड ने अपनी भारतीय फैक्ट्री पर ताला लगा दिया था, परंतु चीन में उसके लिए बहुत बढ़िया अवसर हैं, क्योंकि चीन पैसेंजर कार असोसिएशन के अध्यक्ष Cui Dongshu ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि चीन का कार मार्केट बहुत बड़ा है। भारत की डिमांड बहुत कमजोर है, जबकि चीन में डिमांड बहुत मजबूत और सशक्त है, विशेषकर high-end कार और NEV श्रेणी की कार [New Energy Vehicle] की, क्योंकि चीनी प्रशासन इन दोनों श्रेणियों को काफी बढ़ावा देती है, और इन दोनों श्रेणियों में अग्रणी है। विश्व की NEV गाड़ियों की बिक्री में 53 प्रतिशत की हिस्सेदारी अकेले चीन की है, जबकि भारत की Electric vehicle उद्योग में हिस्सेदारी 1 प्रतिशत की भी नहीं”।

ग्लोबल टाइम्स को अपनी प्रशंसा करने और लंबी लंबी फेंकने में थोड़ा अंतर होता है। फोर्ड को भारत सहित कई देशों से अपना बोरिया बिस्तर क्यों समेटना पड़ा, इसके पीछे कई कारण है, जिसमें से उसकी अपनी प्रशासनिक असफलता भी हैं, चीन तो ऐसे प्रसन्न हो रहा है जैसे अंधे के हाथ बटेर लगी हो। अब जब बात अपने ऑटोमोबाइल मार्केट की चीन ने छेड़ी ही है, तो फिर इस ‘ड्रैगन’ के ‘ग्रेट ऑटोमोबाइल मार्केट’ की पोल खोलना तो बनता है।

चीन जिस ऑटोमोबाइल मार्केट के नाम पर इतना दंभ भर रहा है, वो विशाल और दमदार तो छोड़िए, मौलिक भी नहीं है। चीन ने गाड़ियों के नाम पर दोयम दर्जे के डुप्लिकेट बनाए हैं। लक्जरी कार हो, एसयूवी हो, हर क्षेत्र में टोयोटा से लेकर महिंद्रा जैसे ब्रांडस ने गाड़ियों के किसी न किसी क्षेत्र में अपनी धाक जमाई है। यहाँ तक कि फोर्ड भी कम से कम कुछ नहीं तो अपनी ट्रकों के लिए विश्व प्रसिद्ध है वो भी भारत में बनाता तो शायद कुछ टिक जाता। परंतु चीन ने Bentley की सेकेंड हैंड कॉपी और घटिया डिजाइन वाले एसयूवी के अलावा क्या दिया है ऑटोमोबाइल जगत को?

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TFI ने इस विषय पर चीन की पोल बहुत पहले ही खोल दी थी। अपने विश्लेषण में हमने बताया था जिसमें हमने लिखा था, “चीन से जुड़ा एक शर्मनाक तथ्य यह भी है कि वह जो कुछ भी बनाता है, उसमें चीनियों का योगदान कम और चोरी का योगदान ज़्यादा होता है। उदाहरण के लिए चीन के Automobile सेक्टर को ही ले लीजिये! चीनी उद्योगपति और चीनी सरकार बड़ी ही बेशर्मी के साथ पहले तो अमेरिकी, जर्मन, जापानी और भारतीय carmakers द्वारा बनाई गयी कार के डिजाइन को कॉपी करते हैं, और बाद में उसी चीज़ को bulk में बनाकर बाज़ार में सस्ती दरों पर उपलब्ध करा देते हैं। कई बार तो गाड़ियों के Logos तक को हू-ब-हू कॉपी कर दिया जाता है! ऐसा इसलिए क्योंकि जब बात दिमाग लगाने की आती है, तो इन चीनी निर्माताओं का एक ही जवाब होता है- “It is none of our business!”

ग्लोबल टाइम्स ने दावा किया है कि फोर्ड कंपनी की नवीनतम वित्तीय रिपोर्ट के अनुसार, 2021 की पहली छमाही में चीन में फोर्ड की बिक्री  में साल-दर-साल 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके साथ ही चीन के मुखपत्र ने तंज कसा कि भारत ने फोर्ड के लिए अनुकूल वातावरण नहीं बनाया, जबकि स्थिति ठीक उलटी थी।

वास्तव में फोर्ड अमेरिका में भले ही एक बहुत प्रचलित ब्रांड हो, परंतु भारत में 26 वर्ष के अनुभव के बाद भी फोर्ड ये नहीं समझ पाया कि भारतीयों की पसंद क्या है, उन्हें किस प्रकार के वाहन चाहिए, उनकी चॉइस क्या है? इसपर हमने अपने विश्लेषणात्मक लेख में बताया है, “फोर्ड ने भारतीय मार्केट के प्रत्येक सेगमेंट पर अधिक जोर ही नहीं दिया, बल्कि कुछ ही सेगमेंट पर ध्यान केन्द्रित किया जिससे एक बड़ी आबादी को यह कंपनी आकर्षित नहीं कर पाया। Hatchback (हैचबैक) रेंज में फोर्ड पहले पापुलर तो हुआ, लेकिन Maruti Suzuki और Hyundai जैसी कंपनी फोर्ड से कहीं अच्छे ऑफर एवं विकल्प ले आईं। फोर्ड की जो लोकप्रिय कारें रहीं, उनमें कॉम्पैक्ट SUV के मामले में फोर्ड EcoSport और Suv सेगमेंट में Endeavour ही थीं। कॉम्पैक्ट SUV के मामले में Maruti की विटारा ब्रेजा, Baleno एवं Hyundai की Creta जैसी कारें टक्कर दे रही हैं। ठीक इसी तरह SUV के मामले में Toyota Fortuner एवं Mahindra XUV के अलग-अलग सेगमेंट की कारों ने अपना सिक्का जमा रखा है, जिससे Endeavour को भी अनेकों चुनौतियां मिल रही हैं। आखिर जिसके सामने Fortuner  का विकल्प हो वो Endeavour क्यों लेगा?”

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वैसे ग्लोबल टाइम्स को आंकड़ों के बारे में बात करने की खुजली बहुत रहती है, तो आंकड़ों पर भी एक दृष्टि डालते हैं। ग्लोबल टाइम्स दावा करती है कि NEV क्षेत्र में उनकी हिस्सेदारी विश्व में सर्वाधिक है, जबकि पिछले वर्ष की तुलना में चीन में ही ऑटोमोबाइल की बिक्री 12.04 प्रतिशत की दर से औंधे मुंह गिरी है। ये हम नहीं, स्वयं China Association of Automobile Manufacturers के आँकड़े ऐसे बता रहे हैं। अब बताइए, झूठ कौन बॉल रहा था? चीनी मुखपत्र के इन दावों को देख कर आज हमारे देश के कथित ज्ञानी भी बगले झाँक रहे होंगे कि ये झूठ के एजेंडे में उनसे आगे कैसे निकल गया!

सच्चाई तो यह है कि चीन के पास अब अपने देश में अपने देशवासियों को सकारात्मक दिखाने के लिए कुछ भी नहीं बच रहा है। ऐसे में अब  वफादार पाकिस्तान से सीख लेकर चीन दूसरे देशों को नीचा दिखाकर अपनी जनता को खुश रखना चाहता है, ताकि चीनी प्रशासन की ओर उँगलियाँ न उठे, परंतु बकरे की अम्मा आखिर कब तक खैर मनाएगी?

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