योगी सरकार द्वारा आज़म खान की जौहर यूनिवर्सिटी पर की गई कार्रवाई का सीधा प्रभाव अखिलेश यादव की राजनीति पर पड़ने वाला है। असदुद्दीन ओवैसी ने इस पूरे मुद्दे पर अखिलेश यादव की चुप्पी को निशाना बनाया है। आज़म खान पर हुई कार्रवाई जहां एक ओर योगी आदित्यनाथ के वोट बैंक को बढ़ा रही है, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम वोट बैंक को लेकर सपा और ओवैसी में खींचतान बढ़ने वाली है। आज़म कार्ड का इस्तेमाल कर ओवैसी, अखिलेश यादव के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा सकता है।
जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश का चुनाव पास आ रहा है प्रदेश में सियासी हलचल तेज़ हो गई है। उत्तर प्रदेश का चुनाव योगी आदित्यनाथ को केंद्र में रखकर लड़ा जाएगा और हर राजनीतिक दल योगी हटाओ या योगी वापस लाओ, इन्हीं दो एजेंडा में से एक पर चलेगा। इसके अतिरिक्त ब्राम्हण वोट बैंक से लेकर मुस्लिम वोट बैंक तक कई समानांतर राजनीतिक उपशाखाएं भी फैल रही हैं।
मुस्लिम वोट बैंक के लिए अखिलेश यादव और असदुद्दीन ओवैसी के बीच कड़ा मुकाबला हो सकता है। अखिलेश यादव का आज़म खान के मुद्दे पर मौन रहना ओवैसी के लिए राजनैतिक अवसर बन गया है।
लखनऊ में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में ओवैसी ने आज़म खान पर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि “उनके बारे में मैं क्या कहूं। इस वक्त वो जिन हालातों से घिरे हुए हैं। बस ऊपर वाले से दुआ मांगूंगा कि वह जल्द ही ठीक हो जाएं।” जहां एक ओर ओवैसी आज़म के लिए सलामती की दुआ मांग रहे थे वहीं दूसरी ओर अखिलेश यादव के बारे में टिप्पणी करते हुए ओवैसी ने कहा कि यह लोग मुसलमानों को अपना गुलाम बना कर रखना चाहते हैं।
ओवैसी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा ‛अगर अखिलेश अपनी सरकार के वक्त योगी पर केस चला देते, तो योगी कुछ नहीं कर पाते लेकिन सच्चाई ये है कि कोई नहीं चाहता मुसलमान आगे बढ़े।…पार्टियां चाहती हैं कि देश का 19 फीसदी मुसलमान इनकी गुलामी लेकिन हिस्सेदारी न मांगे।’
9 सितंबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए आज़म खान द्वारा स्थापित जौहर यूनिवर्सिटी की पूरी जमीन को अधिग्रहित कर लिया है। यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए जमीन की खरीद में नियमों का उल्लंघन किया गया था। विश्वविद्यालय की स्थापना के समय चैरिटेबल शिक्षण संस्थान के रूप में अनुमति मांगी गई थी। साथ ही जिलाधिकारी को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने की हामी भरी गई थी। लेकिन यूनिवर्सिटी ट्रस्ट ने एक भी शर्त का पालन नहीं किया।
अनुसूचित जाति के 101 लोगों की जमीन को बिना अनुमति खरीद लिया गया। चकबंदी में जमीन की अदला-बदली में भी नियमों का उल्लंघन हुआ और कोसी नदी क्षेत्र की जमीन का आवंटन भी गलत तरीके से किया गया। ऐसी अन्य कई प्रकार की अनियमितताओं के कारण सरकार ने अदालत के आदेश पर विश्वविद्यालय की पूरी जमीन को अधिग्रहीत कर लिया है। साथी जौहर यूनिवर्सिटी के ट्रस्ट को बेदखल कर दिया गया है।
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आज़म खान के मामले पर अखिलेश यादव का मौन रहना राजनीतिक रूप से उनके लिए घातक सिद्ध हो सकता है। अखिलेश यादव भी यह बात अच्छी तरह से जानते हैं। यही कारण था कि जब जनवरी में ओवैसी ने आज़म खान से मिलने की इच्छा जाहिर की थी तो ओवैसी के बयान के कुछ दिनों बाद ही अखिलेश यादव रामपुर जाकर आज़म खान के बेटे से मिले थे। लेकिन अखिलेश के लिए एक साथ दो नाव पर सवारी करना संभव नहीं है।
अखिलेश यादव सॉफ्ट हिंदुत्व के राजनीतिक कार्यक्रम पर आगे बढ़ रहे हैं और स्वयं की मुस्लिम परस्त राजनीतिक छवि से दूरी बनाए हुए हैं। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे आज़म खान पर योगी सरकार द्वारा की जा रही है कार्रवाइयों को लेकर अखिलेश यादव ने अब तक कोई कड़ा रुख नहीं अपनाया है, लेकिन अखिलेश यादव का इस प्रकार मौन रहना उन्हें राजनैतिक रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। ओवैसी ने हमेशा यह आरोप लगाया है कि मुस्लिमों को उनकी राजनीतिक आवाज कोई मुस्लिम नेता और मुस्लिम पार्टी ही दे सकती है। अखिलेश यादव का मौन ओवैसी के प्रचार को मजबूत आधार दे सकता है, जिसका नतीजा यह हो सकता है की मुस्लिम वोटबैंक बंट जाए।