आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान का मोह धीरे-धीरे उसके लिए बेहद विनाशकारी सिद्ध होते जा रहा है। पाकिस्तान ने जिस प्रकार से आतंकवाद को बढ़ावा दिया है, उससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। लेकिन आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान का यह मोह SAARC जैसे संगठन के लिए भी विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। तालिबान की सत्ता को वर्तमान SAARC सम्मेलन में शामिल कराने की पाकिस्तान की जिद़ ने पाकिस्तान को न सिर्फ अलग-थलग कर दिया बल्कि वर्षों बाद प्रस्तावित दक्षिण एशिया सहकारी क्षेत्रीय संगठन [SAARC] के एक आधिकारिक सम्मेलन को ही रद्द करा दिया है।
असल में वर्षों के बाद दक्षिण एशिया सहकारी क्षेत्रीय संगठन [SAARC] से संबंधित विदेश मंत्रियों की मीटिंग 25 सितंबर 2021 को होने वाली थी। 2016 में प्रस्तावित सार्क सम्मेलन रद्द होने के पश्चात इस संगठन का यह पहला आधिकारिक सम्मेलन है, जहां पर इससे जुड़े देशों के विदेश मंत्री एक दूसरे से आमने-सामने बातचीत करते हुए पाए जाते। ये मीटिंग न्यू यॉर्क में ही होने वाली थी लेकिन ये सम्मेलन फिलहाल के लिए रद्द हो चुका है।
पाकिस्तान का तालिबान प्रेम
क्या आपको पता है ये प्रस्तावित सम्मेलन क्यों रद्द हुआ है? इसके पीछे भी वही कारण है जिसके कारण 5 वर्ष पहले सार्क सम्मेलन 2016 रद्द हुआ था – आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान का मोह। असल में पाकिस्तान ने सार्क देशों के सामने अपनी दो शर्ते रखी थी। पाकिस्तान की पहली शर्त थी कि तालिबान को भी इस सम्मेलन का हिस्सा बनना चाहिए और इस सम्मेलन में उन्हें अपना प्रतिनिधि भेजना चाहिए। दूसरी शर्त में पाकिस्तान ने निष्कासित अफगान शासन के किसी प्रतिनिधि को शामिल नहीं करने की बात कही थी।
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अब तालिबान को मान्यता दिलाने के लिए पाकिस्तान कितना उद्यत है, ये तो किसी से भी नहीं छुपा है, लेकिन इस समय पाकिस्तान और कुछ हद तक चीन को छोड़कर कोई भी तालिबानी शासन को मान्यता देने को तैयार नहीं है। दूसरी ओर सार्क में इस समय सबसे शक्तिशाली देश भारत ही है, जो कतई नहीं चाहता कि किसी भी स्थिति में तालिबान के आतंकी शासन को मान्यता मिले।
ऐसे में जब पाकिस्तान ने ये घटिया मांग उठाई तो सार्क के सभी सदस्य देशों ने इसका पुरजोर विरोध किया है। सार्क की अध्यक्षता संभाल रहे नेपाल ने भी पाकिस्तान के दोनों शर्तों को मानने से पूरी तरह इनकार कर दिया। फलस्वरूप सार्क का प्रस्तावित विदेश मंत्री सम्मेलन ही अब रद्द हो गया है।
5 साल पहले भी पाकिस्तान ने लगया था अडंगा
ऐसा ही कुछ 5 वर्ष पूर्व भी हुआ था, जब 2016 में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों ने कश्मीर के उरी क्षेत्र में स्थित भारतीय सेना के बेस कैंप पर हमला किया था। आतंकियों के उस हमले में डोगरा रेजीमेंट और बिहार रेजीमेंट के 19 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। उसी समय सार्क का सम्मेलन इस्लामाबाद में प्रस्तावित था लेकिन पाकिस्तान के इस हमले से क्रोधित होकर भारत ने सम्पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया था। भारत को सार्क के सभी सदस्य देशों का समर्थन भी मिला था, तब से अब तक सार्क का एक भी ऑफ़लाइन सम्मेलन नहीं हुआ है। पिछले साल एक वर्चुअल सम्मेलन के जरिए सार्क देशों के प्रतिनिधियों ने मीटिंग में हिस्सा लिया था।
ऐसे में कई वर्षों के बाद प्रस्तावित दक्षिण एशिया सहकारी क्षेत्रीय संगठन [SAARC] सम्मेलन के जरिए ये आशा की जा रही थी कि सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद इस जीर्ण शीर्ण संगठन में नई स्फूर्ति आएगी और वार्तालाप का आदान प्रदान होगा। परंतु आतंक के प्रति पाकिस्तान का मोह इस बात को सुनिश्चित कर रहा है कि दक्षिण एशिया सहकारी क्षेत्रीय संगठन [सार्क] जैसे संगठन का सर्वनाश करके ही दम लिया जाए।