पांचजन्य ने Infosys के खिलाफ जो भी बोला, एकदम सही बोला

कब तक गलतियाँ करेगा Infosys?

पांचजन्य इन्फोसिस लेख

आईटी कंपनी इन्फोसिस पर एक अभूतपूर्व हमले में आरएसएस से संबद्ध पत्रिका पांचजन्य ने आरोप लगाया कि बेंगलुरु स्थित कंपनी जानबूझकर भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है। साथ ही उस पर ‘नक्सलियों, वामपंथियों और टुकड़े टुकड़े गिरोह’ की मदद करने का दोषारोपण किया। साप्ताहिक ने अपनी कवर स्टोरी (लेख )”साख और आघात (प्रतिष्ठा और नुकसान)’’ में आरोप लगाया कि यह पहली बार नहीं था जब इन्फोसिस ने एक सरकारी परियोजना में गड़बड़ी की है। पांचजन्य संपादक हितेश शंकर ने कहा कि लेख इन्फोसिस के बारे में है, जिसके GST पोर्टल कार्य की गुणवत्ता उसकी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है। यह न केवल कंपनी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता है बल्कि करोड़ों लोगों को असुविधा का भी कारण है। इस तरह की भूमिका और गैर-पेशेवर रवैया समाज में असंतोष पैदा करती है। अगर इन्फोसिस सामाजिक रूप से संदिग्ध प्रचार और साम्यवादी विचार के वित्तपोषण में शामिल नहीं है, तो उसे सामने आना चाहिए और तथ्यों को बताना चाहिए।”

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पूरे बवाल का तत्कालिक कारण क्या है?

संघ से जुड़ी पत्रिका वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) पोर्टल और भारत सरकार के नए आयकर पोर्टल के मुद्दों के लिए इन्फोसिस की आलोचना कर रही थी। पांचजन्य लेख में आरोप लगाया गया है कि सार्वजनिक इंटरफेस और उपयोग के साथ-साथ पोर्टल और उसकी अन्य समस्याओं ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जहां सरकार और उसकी कर संग्रह प्रणाली से लोगों में विश्वास खत्म हो गया है।

पांचजन्य लेख में कहा गया है कि एक जानी-मानी सॉफ्टवेयर कंपनी इन्फोसिस को सरकार ने व्यवस्था को सरल बनाने का ठेका दिया था, लेकिन इसने मामले को और उलझा दिया है। पांचजन्य लेख में माध्यम से इन्फोसिस से एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा गया है की क्या इन्फोसिस अपने विदेशी ग्राहकों के लिए भी बिना किसी जवाबदेही के इसी तरह की घटिया सेवा प्रदान करने की गलती कर सकती है।

इन्फोसिस की कार्य नीति पर सवाल उठाने के अलावा, पांचजन्य लेख में यह भी आरोप लगाया गया है कि कंपनी देश में अशांति पैदा करने के लिए वामपंथी, राष्ट्र-विरोधी, मीडिया पोर्टल्स और फैक्ट चेकिंग पेजों के वित्तपोषण में भी लिप्त हैं।

वस्तु और सेवा कर पोर्टल की समस्याएँ

बता दें कि इन्फोसिस ने 2015 में जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) के लिए बैकएंड के प्रबंधन का अनुबंध जीता था। तब से ही इसके प्रबंधन में तकनीकी गड़बड़ियों को लेकर मंत्रालय इससे नाखुश है। कई समस्याएँ तो लगभग दो वर्षों से अनसुलझी हैं। वित्त मंत्रालय ने 17 मुख्य तकनीकी गड़बड़ियों को दूर करने के लिए बेंगलुरु स्थित सॉफ्टवेयर दिग्गज से तत्काल समाधान योजना मांगी है।

उदाहरण हेतु कुछ मुख्य गड़बड़ियाँ निम्न है:

इंफ़ोसिस की गड़बड़िया और सरकार का रुख

अगस्त में, वित्त मंत्रालय ने Infosys के एमडी और सीईओ सलिल पारेख को तलब किया था, क्योंकि नए आईटी पोर्टल में लॉन्च के 2.5 महीने बाद भी गड़बड़ियां जारी रहीं। पोर्टल को चालू करने के निर्धारित समय सीमा 21 अगस्त होने के बावजूद भी इसकी उपलब्धता नहीं थी।

नया आयकर पोर्टल ‘www.incometax.gov.in’ 7 जून को लाइव हुआ था। यह पोर्टल अपने आरंभिक समय से ही लंबे समय तक लॉग इन करने, आधार सत्यापन के लिए ओटीपी जनरेट करने में असमर्थता सहित अन्य तकनीकी गड़बड़ियों का सामना कर रहा था। पिछले वर्षों से आईटीआर की अनुपलब्धता के कारण करदाताओं, कर पेशेवरों और अन्य हितधारकों द्वारा सोशल मीडिया पर उठाई गई शिकायतों के मद्देनजर, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन चिंताओं को दूर करने के लिए इन्फोसिस को निर्देशित किया था। उन्होंने इन्फोसिस के पोर्टल को अधिक सुगम और उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाने के लिए कहा और हितधारकों द्वारा सामना की जा रही विभिन्न समस्याओं पर अपनी गहरी चिंता भी व्यक्त की थी। बावजूद इसके अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

इंफ़ोसिस की सफाई

इस मामले पर शेयरधारकों के सवालों को संबोधित करते हुए इन्फोसिस ने कहा कि वह नए आयकर ई-फाइलिंग पोर्टल में तकनीकी गड़बड़ियों के कारण होने वाली असुविधा से बहुत चिंतित है और यह कि सभी मुद्दों को जल्द से जल्द हल करने का आश्वासन भी दिया। इन्फोसिस के मुख्य परिचालन अधिकारी प्रवीण राव ने एजीएम (AGM) के दौरान प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा, “इन्फोसिस नए आयकर ई-फाइलिंग पोर्टल में गड़बड़ियों को हल करने के लिए काम कर रहा है। पिछले सप्ताह के दौरान, प्रदर्शन और स्थिरता को प्रभावित करने वाली कई तकनीकी गड़बड़ियों को दूर किया गया है। इसके परिणामस्वरूप, हमने पोर्टल पर लाखों अद्वितीय दैनिक उपयोगकर्ताओं को देखा है।”

पांचजन्य लेख के उद्धरण

पांचजन्य साप्ताहिक ने आरोप लगाया कि यह पहली बार नहीं है जब इन्फोसिस ने किसी सरकारी परियोजना में गड़बड़ी की है। पांचजन्य लेख में जीएसटी और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के लिए वेबसाइटों में समस्याओं का हवाला देते हुए कहा गया है, “जब ये चीजें बार-बार होती हैं, तो यह संदेह पैदा करता है। आरोप हैं कि Infosys प्रबंधन जानबूझ कर भारत की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है। ऐसा हो सकता है कि कोई राष्ट्रविरोधी ताकत Infosys के जरिए भारत के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही हो?”

पत्रिका ने कहा कि उसके पास अपने दावों का समर्थन करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है, लेकिन कंपनी के ‘इतिहास और परिस्थितियों’ ने इस आरोप को बल दिया है।

पांचजन्य लेख में लिखा गया है- “इन्फोसिस पर नक्सलियों, वामपंथियों और टुकड़े-टुकड़े गैंग को सहायता प्रदान करने का आरोप लगता रहा है। देश में विभाजनकारी ताकतों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन देने वाली इन्फोसिस की सहभागिता पहले भी खुलकर सामने आ चुकी है। ऐसा माना जाता है कि गलत सूचना देने वाली कुछ वेबसाइटें भी इन्फोसिस द्वारा वित्त पोषित हैं। जातिगत नफरत फैलाने वाले कुछ संगठन भी Infosys के चैरिटी के लाभार्थी हैं। क्या इन्फोसिस के प्रमोटरों से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि कंपनी द्वारा देश-विरोधी और अराजकतावादी संगठनों को फंडिंग करने का क्या कारण है? क्या ऐसे संदिग्ध चरित्र की कंपनियों को सरकारी निविदा प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए?’’

पांचजन्य लेख में कहा गया है कि आईटी प्रमुख के प्रमोटरों में से एक नंदन नीलेकणि ने कांग्रेस के टिकट से लोकसभा चुनाव लड़ा है जबकि एनआर नारायण मूर्ति का सरकार के खिलाफ विचारधारा किसी से छिपा नहीं है। इसने यह भी आरोप लगाया कि इन्फोसिस द्वारा की गई परियोजनाओं में गड़बड़ियां विपक्ष द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए एक चाल हो सकती है कि सरकार भारतीय कंपनियों को अनुबंध देने की नीति को बदलने के लिए मजबूर हो और इस प्रकार आत्मनिर्भर भारत के विचार को चोट पहुंचाई जा सके। देखा जाए तो पांचजन्य ने किसी भी तरह का गलत सवाल नहीं किया है।

निष्कर्ष

सभी पक्षों के अपने अपने तर्क है। सरकार त्रस्त है। इंफ़ोसिस व्यस्त है और इसी व्यस्तता को तोड़ता पांचजन्य का प्रश्न है। परियोजनाओं में विफलता होती है, स्वाभाविक भी है। परंतु, अगर इसका कारण पेशेवर अक्षमता के बजाय राष्ट्रविरोधी विचार हो तब मामला और भी सोचनीय और गंभीर हो जाता है। इतनी बड़ी कंपनियों को ठेका देते समय शासन वृहद स्तर पर गोपनीय सूचनाएँ और नागरिकों के डाटा साझा करती है। इसका आधार सिर्फ विश्वास होता है। अगर ऐसी कंपनी पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगता है तो कंपनी का उत्तरदायित्व बनता है कि सामने से आकार ऐसी बातों का खंडन करे और सरकार तथा जनता को समग्र विश्वास में लें।

 

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