PM मोदी और हिमंत दा लगातार निशाने पर हैं, लेकिन अतिक्रमण विरोधी मिशन जारी रहना चाहिए

असम के एक इलाके में पुलिस सरकारी जमीन पर हुए अतिक्रमण को हटाने गई थी, जब अतिक्रमणकारियों ने पुलिस पर ही हमला कर दिया

पूर्वोत्तर भारत में सुरक्षा के लिहाज से सर्वाधिक महत्वपूर्ण राज्य असम है। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का मिलना इसका एक विशेष कारण है। ऐसे में अचानक आई असम में दंगों खबरों ने लोगों को भयभीत कर दिया है, किन्तु ऐसा नहीं है कि ये कोई बड़ी समस्या है, क्योकिं केन्द्र और राज्य की सरकारें यहां मिशन मोड में काम कर रही है। मोदी और हिमंता सरकार एक सफाई अभियान चला रही है, अलगाववाद के खात्मे से लेकर विकास को एक नया आयाम देने तक के मुद्दे पर जबरदस्त काम हो रहा है। ऐसे में कभी विभिन्न राज्यों के साथ असम-मिजोरम सीमा विवाद का मुद्दा गर्माता है, तो कभी अतिक्रमण का। इसके बावजूद केन्द्र और राज्य की सरकारें राज्य की प्रगति के लिए प्रतिबद्ध है, और यही कारण है कि विपक्ष की दिलचस्पी दंगों को अधिक हवा देने में है।

असम में अतिक्रमण पर चला था डंडा

असम-मिजोरम सीमा विवाद के दौरान जब हिंसा की खबरें आईं थी, तो विपक्ष इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटिंयां सेकने में तनिक भी पीछे नहीं था, किन्तु अब सब खत्म हो गया है। ऐसे में एक बार फिर असम अब चर्चा में आया है, क्योंकि यहां के दरांग शहर में एक बवाल सामने आया है, जिसमें दो लोगों की मौत की भी खबर है। इसे ऐसे पेश किया जा रहा है मानों कि सरकार कोई अत्याचार कर रही हो, जबकि सत्य बिल्कुल ही विपरीत है। असम के दरांग जिले में सरकार के पास करीब 25 हजार एकड़ जगह है, और वहां सरकार कम्युनिटी फर्मिंग करना चाहती है। इस प्रस्ताव में सबसे बड़ी रुकावट ये है कि इस जमीन पर 3,000 से भी परिवारों ने अतिक्रमण कर रखा है, जिसके चलते असम सरकार ने सख्त रुख अपना लिया है।

खबरों के मुताबिक असम के दरांग इलाके में गुरुवार को पुलिस सरकारी जमीन पर हुए अतिक्रमण को हटाने के उद्देश्य से गई थी, जो कि वहां के स्थानीय लोगों को पसंद नहीं आया। ऐसे में पुलिस पर इन अतिक्रमणकारियों ने ही हमला कर दिया। सबसे अधिक आश्चर्यजनक की बात ये है कि पुलिस की इस कार्रवाई का विरोध करते हुए 10 हजार से अधिक लोग सड़कों पर उतर आए। इन लोगों ने पुलिसकर्मियों को अपना निशाना बनाया। इस हमले में 9 से अधिक पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए, नतीजा ये कि असम पुलिस ने आत्मरक्षा में गोलियां चलाईं,  इस कार्रवाई में 2 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई है।

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न्यायिक जांच के आदेश

असम में हिमंता बिस्वा सरमा के सीएम बनने के बाद से लगतार वामपंथी उन्हें निशाने ले रहे हैं। ये वही लोग हैं जो पीएम मोदी की आलोचना में सारी मर्यादाएं लांघ जाते हैं। राहुल गांधी जैसे नेता उन अतिक्रमणकारियों का ही पक्ष ले रहे हैं। इसके विपरीत ऐसा नहीं है कि हिमंता सरकार इस मुद्दे पर शांत बैठ गई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए हिमंता सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं, जो कि अब अतिक्रमणकारियों के लिए मुसीबत का सबब बन सकते हैं। एक तो सरकारी जमीन अवैध रूप से कब्जा, दूसरा पुलिस पर हमला निश्चित ही उन्हें मुश्किलों में लाने वाला हो सकता है।

इस मामले में पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सोशल मीडिया पर जो वीडियो सर्कुलेट हो रहे हैं, उनकी जांच की जा रही है। इतना ही नहीं अनेकों दंगाइयों की पहचान भी कर ली गई है। वहीं इस मुद्दे को लेकर बार फिर धार्मिक रंग देने की कोशिश शुरु हो गई है, यद्यपि एक यथार्थ सत्य ये भी है कि इलाके में मुख्य तौर पर कब्जा करने वाले मुस्लिम धर्म के लोग ही हैं। ट्विटर पर #IndianMuslimsunderAttack और #HindutvaStateTerror जैसे हैशटैग ट्रेंड हो रहे हैं, जिससे दंगों में अधिक आग लगाई जा सके।  चोरी और सीनाजोरी की इस नीति के तहत हमलावरों को ही पीड़ितों की तरह दिखाया जा रहा है।

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निशाने पर मोदी और हिमंता

वहीं अब असम की इस हिंसा पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सरकार पर ही हमला बोलते हुए इसे राज्य द्वारा लोगों पर किया गया हमला घोषित कर दिया है, जिसका यथार्थ से कोई नाता नहीं है। ये पहला मामला नहीं हैं कि असम की चिंगारी को आग बनाने की कोशिश की गई हो, एनआरसी, सीएए से लेकर मिजोरम के साथ सीमा विवाद के मुद्दे पर भी हिंसा भड़काने के प्रयास किए गए थे। इसके विपरीत मोदी सरकार ने सीमा विवाद को बखूबी हैंडल किया था, और अब मुख्यमंत्री हिमंता के रवैए के कारण ये कहा जा सकता है कि वो अतिक्रमणकारियों की इन हरकतों कानूनी रूप से जवाब देंगे।

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प्रधानमंत्री मोदी को असम में सुधारों के लिए जिस टारगेट किया जाता है, कुछ उसी तरह हिमंता के खिलाफ भी वामपंथी मीडिया एजेंडा चलाता रहता है। हिमंता उल्फा जैसे अलगाववादी संगठनों को कंट्रोल में लाने में कामयाब रहे हैं। कुछ इसी तरह उन्होंने राज्य में कानून व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया है। नतीजा ये कि अब वो पीएम मोदी के बाद वामपंथियों का पसंदीदा टारगेट बन गए हैं, हालांकि उनके व्यवहार के आधार पर ये कहा जा सकता है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

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