Medicine और FMCG सेक्टर को बदलने के लिए पीएम मोदी ला रहे हैं नए प्रलयंकारी कानून

केंद्रीय सरकार दवा एवं स्वास्थ्य उपकरण संबंधित कानून को एक नया रूप देने की तैयारी कर रही है!

स्वास्थ्य उपकरणों कानून

वैश्विक महामारी कोरोनावायरस ने भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमियों को जमीन से लेकर शीर्ष स्तर तक पर उजागर कर दिया है। दवाओं की सप्लाई चेन से लेकर उपलब्धता तक पर सरकार को व्यवधानों का सामना करना पड़ा। इन सब परेशानियों के बावजूद मोदी सरकार ने निश्चित तौर पर बेहतरीन ढंग से कोरोना के संक्रमण को कंट्रोल किया है। वहीं परेशानियों से सबक लेकर मोदी सरकार लगातार बड़े बदलाव भी कर रही है, जिसका एक उदाहरण दवाओं के संबंध में मोदी सरकार का आने वाला नया कानून भी हो सकता है। पुराने दकियानूसी कानूनों को समाप्त कर मोदी सरकार दवाओं एवं स्वास्थ्य उपकरणों के लिए एक नया कानून लाने की तैयारी कर चुकी है, जो संसद के शीतकालीन सत्र में पेश भी किया जा सकता है।

दवाओं एवं स्वास्थ्य उपकरणों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहले ही भारत सरकार काम कर रही है, लेकिन अब इन पर सरकार के कंट्रोल संबंधी कुछ विशेष फैसले भी लिए जा सकते हैं। केंद्रीय सरकार दवा एवं स्वास्थ्य उपकरण संबंधित कानून को एक नया रूप देने की तैयारी कर रही है। आज तक की एक रिपोर्ट बताती है कि इसके लिए सरकार ने एक आठ सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, जिसमें मुखिया हेड कंट्रोलर जनरल वीजी सोमानी को बनाया गया है। इसके अलावा कमेटी के अन्य सदस्यों में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव राजीव वधावन, संयुक्त दवा नियंत्रक डॉ ईश्वर रेड्डी और ऐके प्रधान, आईएएस अधिकारी एन एल मीणा के अलावा गुजरात एवं हरियाणा के ड्रग कंट्रोलर जनरल भी शामिल हैं।

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रिपोर्टस बताती हैं कि सरकार द्वारा गठित ये कमेटी पहले सरकार द्वारा दिए गए सुझावों पर विचार करेगी और फिर उनके आधार पर एक नए कानून के लिए 30 नवंबर तक एक ड्राफ्ट डॉक्यूमेंट सरकार के समक्ष प्रस्तुत करेगा। चर्चाएं हैं कि मोदी सरकार कमेटी की इन सिफारिशों के आधार पर ही देश में एक नया न्यू ड्रग्स, कॉस्मेटिक्स और मेडिकल डिवाइसेस एक्ट लाएगी।

खास बात ये है कि कोरोना काल से पहले देश में जो दवाओं से संबंधित कानून था, उसमें मेडिकल उपकरणों को भी शामिल नहीं किया गया था, किन्तु पिछले वर्ष ही मोदी सरकार ने कानून में संशोधन कर सरकार ने स्वास्थ्य उपकरणों को भी ड्रग्स कैटेगरी में शामिल कर लिया था। इस कदम के बाद सरकार के पास स्वास्थ्य उपकरणों को भी रेगुलेट करने की ताकत आ गई थी, जो कि एक आवश्यकता भी थी।

अभी की बात करें तो भारत में अंग्रेजों के जमाने का Drugs and Cosmetics Act, 1940  ही लागू है। अंग्रेजों ने इस मुद्दे पर कभी ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया। ऐसे में जो कानून बना था, उसके लिए दिखावटी शब्द का प्रयोग ही उचित लगता है। हालांकि, समय के साथ ही कानून में संशोधन किए जाते रहे, किन्तु इस कानूनी जटिलता में स्वास्थ का मूल मुद्दा काफी पीछे छूट गया। ऐसे में मोदी सरकार स्वास्थ्य के मूल मुद्दे पर ध्यान दे रही है, जो कि एक सकारात्मक पहलू है। गौरतलब है कि अन्य चिकित्सा एवं दवा क्षेत्र तक के अधिकारियों ने इस कानून को दकियानूसी बताते हुए इसकी आलोचनाएं की थी। ऐसे में यदि ये कानून आता है तो देश की स्वास्थ्य सुविधाओं के ढ़ांचे में एक बड़ा बदलाव आ सकता है।

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इतना ही नहीं कुछ बड़ी कंपनियां इस संभावित कानून का विरोध भी कर रही हैं, क्योंकि यदि सरकार एक नया कानून लाती है, तो इससे इन कंपनियों के एक छत्र राज को नुक़सान हो सकता है। इसके विपरीत मोदी सरकार के इतिहास और कार्यशैली को देखें तो ये कहा जा सकता है कि जिस प्रकार देश में अनेकों दकियानूसी कानूनों का अंत हुआ है। अब उसी तरह अब अगला नंबर दवाओं एवं स्वास्थ्य उपकरणों के संबंधित कानूनों का भी होगा, जिसके परिणामस्वरूप एक नया कानून अस्तित्व में आएगा।

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