पुलिस प्रशासन को अक्सर हमने राज्य सरकार की कठपुतली बनते देखा है। बंगाल और महाराष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में ये बात स्पष्ट तौर पर सिद्ध भी हुई है, जहां पुलिस तंत्र एक प्रकार से राज्य सरकार के एक ‘विस्तृत भाग’ के रूप में सामने आया है। परंतु अब ऐसा और नहीं चलेगा, और इसके लिए गृह मंत्री अमित शाह ने पुलिस तंत्र में बदलाव करने भी प्रारंभ कर दिए हैं।
पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के 51 वें स्थापना दिवस के अवसर पर ब्यूरो को संबोधित करने पहुंचे अमित शाह ने बताया कि कैसे भारतीय पुलिस तंत्र, विशेषकर आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) , सीपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता), एविडेंस एक्ट (साक्ष्य अधिनियम) में व्यापक बदलाव करने की आवश्यकता है।
Addressing the 51st Foundation Day celebrations of Bureau of Police Research and Development (@BPRDIndia). Watch live! https://t.co/mpirDSiV0H
— Amit Shah (Modi Ka Parivar) (@AmitShah) September 4, 2021
नवभारत टाइम्स के रिपोर्ट के अंश अनुसार, “अमित शाह ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली के एक बड़े बदलाव के लिए हम तैयार हैं। पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (बीपीआर एंड डी) के 51वें स्थापना दिवस को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि संगठन से दो वर्षों से चल रही परामर्श प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कानूनों में बदलाव करना और उन्हें आधुनिक समय और भारतीय परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाना होगा। 14 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के अलावा, आठ केंद्रीय पुलिस संगठनों, छह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) और सात गैर सरकारी संगठनों ने दशकों से लागू कई ब्रिटिश-युग के कानूनों में संभावित बदलावों पर अपने-अपने विचार रखे हैं। अब इन विचारों पर मंथन होकर ही कानूनों में बदलाव किए जाएंगे।”
इसी रिपोर्ट में आगे ये भी बताया गया कि कैसे 14 राज्यों, तीन केंद्र शासित प्रदेशों और आठ केंद्रीय पुलिस संगठनों के अलावा बार एसोसिएशन ने भी व्यापक बदलाव का सुझाव दिया है। अमित शाह के अनुसार, पुलिस तंत्र को अनुचित आलोचना का सामना करना पड़ता है, हालांकि उन्हें अक्सर कठिन और संवेदनशील कार्य सौंपे जाते हैं।
मतलब अमित शाह ने स्पष्ट शब्दों में पुलिस तंत्र में व्यापक बदलाव के संकेत दिए हैं, ताकि वे किसी राज्य सरकार की कठपुतली बनकर न रह जाए। इससे अमित शाह कहीं न कहीं बंगाल और महाराष्ट्र की उस संस्कृति का नाश करना चाहते हैं, जहां के मुख्यमंत्रियों के इशारे पर उनकी कुत्सित राजनीति का विरोध करने वालों को न सिर्फ हिरासत में लिया जाता है, अपितु भ्रष्टाचार की जांच करने पहुंचे केन्द्रीय एजेंसियों तक पर हमलावर हो जाते हैं।
इसके अलावा अमित शाह ये भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कुछ कानूनों को केवल चंद बुद्धिजीवियों के दबाव में न रद्द किया जाए, जिसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतने पड़े। उदाहरण के लिए लोग धारा 124 ए यानि देशद्रोह को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, परंतु गृह मंत्रालय का मानना है कि इसे एक निश्चित प्रक्रिया के अंतर्गत दंडनीय रखना आवश्यक है। ऐसे में गृह मंत्रालय इस दिशा में प्रयासरत है कि देशद्रोहियों को उनके कृत्य का दंड भी मिले और धारा 124 ए भी निरस्त न हो।
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इसके अलावा गृह मंत्रालय ऐसे प्रावधान लाना चाहती है, जिसके अंतर्गत मृत्युदंड पा चुके अपराधियों को बचाने के लिए एनजीओ गैंग सक्रिय न होने पाए। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के ही अंश अनुसार,
“एक विचार यह भी है कि मौत की सजा पाने वाले दोषियों को फांसी का सामना करने से पहले समय बर्बाद के लिए दया याचिका प्रावधान के दुरुपयोग संबंधित कानूनों में उपयुक्त संशोधन करके रोका जाना चाहिए। आईपीसी, सीपीसी, एविडेंस एक्ट में ऐसे-ऐसे कानून हैं जिनसे मामले कभी सुलझते नहीं है और लोगों की पीढ़िया खत्म हो जाती हैं मगर केस नहीं खत्म होते। देश के ऐसे कई बड़े मामले सामने आए जिनमें सुनवाई होती रही मगर उसे जुड़े लोगों की मौत तक हो गई। मगर केस खत्म नहीं हुआ। ऐसे में अदालतों का बोझ भी लगातार बढ़ता जा रहा है और इसकी वजह से क्राइम भी बढ़ता जा रहा है।”
वास्तव में गृह मंत्री अमित शाह उन लोगों में से नहीं है, जो तुरंत ही शत्रु पर धावा बोल दे, परंतु उसका नाश करने से पहले अपनी नींव एकदम सुदृढ़ करना चाहते हैं। पुलिस तंत्र में व्यापक बदलाव केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सुरक्षा की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे में अमित शाह जिस रेस में हिस्सा ले रहे हैं, उसके बारे में विपक्ष को न कोई आभास है, और उनसे जीतने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता।