राहुल गांधी अब कांग्रेस में “भाई” वरुण गाँधी और “चाची” मेनका को चाहते हैं

चुनावों का चक्कर बाबू भईया!

बहुत प्रचलित कथन है कि रिश्तों की याद और अहमियत आवश्यकता पड़ने पर ही समझ आती है और बात जब ऐसे रिश्तों की हो जिनका सरोकार राजनीतिक लाभ और स्वार्थ की भावना तक निहित हो तो भारतीय परिप्रेक्ष्य में एक मात्र राजनीतिक दल ऐसा है जो इस भावना को जीवंत कर देता है, ओर वो दल है कांग्रेस। बात हो रही है कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की जो अब न जाने किसकी राय पर अमल करते हुए अपने परिवार को एक छत के नीचे लाने के प्रयासों में जुट चुके हैं। राहुल अपने दिवंगत चाचा संजय गांधी की पत्नी मेनका गाँधी और अपने चचेरे भाई वरुण गांधी को भाजपा से तोड़कर अपने खेमे में लाने के प्रयासों में जुट चुके हैं क्योंकि 2022 आने को है और उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों की रणभेरी का आरम्भ हो चुका है।

दरअसल, राहुल गांधी ने हाल ही में यूट्यूब पर जारी एक वीडियो में कहा है कि पायलट दूरदर्शी नेता होते हैं और उनके दिवंगत पिता राजीव गांधी ने चाचा (संजय गांधी) को उड़ान के खतरों के बारे में चेतावनी दी थी जिसे न मानने के कारण उनकी मृत्यु ही गई थी। राहुल ने यह बात दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर एक फोटो प्रदर्शनी में युवा कांग्रेस नेताओं के साथ बातचीत के दौरान कही, जिसका वीडियो गुरुवार को यूट्यूब पर जारी किया गया। कांग्रेस के एकमात्र कथित ध्वजवाहक जो वर्षों तक अपने सगे खून से जुड़े संबंधों से इसलिए कटुता पाले बैठे हैं क्योंकि दोनों भिन्न विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, परन्तु राजनीति का एक अलग नियम यह भी है कि लड़ाई वैचारिक होती है निजी नहीं।

वहीं इतने वर्षों तक उन्हीं पथचिन्हों पर चल रही सोनिया के मन में नरमी आ रही हो तो यह आश्चर्यजनक नहीं स्पष्ट रूप से प्रायोजित है। सोनिया और राहुल गांधी ने अबतक, राजीव गाँधी के लघु भ्राता और अपने चाचा के परिवार से संबंधों के आगे एक लकीर खींचते हुए सारे संबंधों पर पूर्णविराम लगा रखा है, जिसको अब चुनावी लाभ के लिए राहुल जीवंत करने में जुटे हुए हैं।

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संजय गांधी की प्लेन हादसे में मृत्युपरांत मेनका गाँधी पर दोहरी मार पड़ी थी। पहली,  23 वर्ष की उम्र में विधवा होने का कष्ट और दूसरा पति के निधन के बाद ससुराल पक्ष से दुर्भवना का बढ़ता प्रभाव जिसका प्रमुख कारण मेनका, राजीव और सोनिया को ही बताती आई हैं। संजय के निधन के बाद राजीव की अपनी माँ इंदिरा गाँधी से मुख्य मांगों में से एक थी कि मेनिका को घर से निकाल दिया जाए और संपत्ति में से कुछ भी न दिया जाए। लेकिन बेशर्मी की पराकाष्ठा देखें कि आज राहुल, अपनी माता की करनी को साइड रखते हुए परिवार मोह छलका रहे हैं।

वहीं, हमेशा से राहुल गांधी समेत कांग्रेस के प्रत्येक नेता संजय गांधी या उनके परिवारजनों के बारे में सार्वजानिक रूप से बात करने से बचते रहे हैं और अब यूँही उनका ज़िक्र नहीं कर रहे, यह सब स्वार्थ निहित है। जिस प्रदर्शिनी में राहुल ने अपने चाचा का ज़िक्र किया वह बात राहुल गांधी द्वारा YouTube पर डाली गई वीडियो में कही गई है। उन्होंने  कहा कि, पिता (राजीव गांधी) ने अपने भाई संजय को पिट्स जैसे आक्रामक विमान उड़ाने से मना किया था, लेकिन वह नहीं माने। राहुल ने कहा, विमान उड़ाने का जितना अनुभव उनके पास है 300-350 घंटे, उतना ही चाचा संजय गांधी के पास भी था।

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ज्ञात हो कि संजय गांधी भी राजीव गांधी की ही भांति विमान उड़ाने के शौकीन थे और 23 जून, 1980 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी।

ज्ञात हो कि, इस समय न ही मेनका किसी मंत्री पद पर आसीन हैं और न ही वरुण को इस केबिनेट विस्तार में स्थान दिया गया। दूसरी ओर मेनका और वरुण दोनों ही अपने बयानों को लेकर चर्चाओं में बने रहते हैं, अधिकांश बयान विवादास्पद होते हैं। वहीं इन दोनों के संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली और उससे सटी विधानसभा सीटों पर पीलीभीत और सुल्तानपुर दोनों ही क्षेत्रों में वोटों पर प्रभाव विगत चुनावों के परिणामों में साफ झलकता है। इस बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि मेनका अपने बेटे वरुण को उत्तर प्रदेश के सीएम के रूप में देखना चाहती हैं, ऐसे में राहुल इसी बात को साधते हुए बीजेपी में तरजीह न मिलने को लेकर मेनका और वरुण से पाला बदलवाकर, अपने ‘गांधी परिवार’ में घर वापसी करने की कोशिश में जुट चुके हैं।

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जैसे -जैसे चुनाव नज़दीक आते जायेंगे ऐसी प्रक्रियाएं चलती रहेंगी, अप्रत्याशित बयानों से लेकर नेताओं के मुख से एक दूसरों के लिए फूलों की वर्षा भी होगी पर अभी संजय गांधी को याद करने वाले राहुल के इस बयान से कैसी स्थितियां उत्पन्न होती हैं वो आने वाले कुछ दिनों में सबके समक्ष होगा, लेकिन यह खेल अब यहाँ नहीं थमेगा, स्वयं भाजपा भी इसपर चुप तो नहीं बैठने वाली है। आने वाले दिनों में सियासी पारा और चढ़ेगा जिसका बिगुल बज चुका है।

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