हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के सम्बोधन के एक बार फिर पाकिस्तान ने कश्मीर के फटे ढोल के सहारे दुनिया का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया। परंतु इस बार उनका सामना एक युवा राजनयिक एवं भारत की UN में प्रथम सचिव स्नेहा दुबे, जिन्होंने अपने अकाट्य तर्कों और ऐतिहासिक उदाहरणों से न केवल आतंक समर्थक पाकिस्तान की जबरदस्त धुलाई की, अपितु उन्हें एक स्पष्ट संदेश में पाक अधिकृत कश्मीर को तत्काल प्रभाव से खाली करने की चेतावनी भी दी। स्नेहा दुबे नामक इस आईएफ़एस अधिकारी का यह वक्तव्य भारत के लिए गर्व का विषय तो है ही, परंतु साथ ही साथ ये जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, विशेषकर टुकड़े-टुकड़े गैंग के मुख पर एक करारे तमाचे के समान है जो पाकिस्तान के हिमायती बनते फिरते हैं और देश में रहते हुए आजादी का राग अलापते हैं।
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वो कैसे? असल में स्नेहा दुबे उसी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से परास्नातक है, जो भारत विरोधी तत्वों के कारण चर्चा में रहा है। यहाँ पर सदैव वामपंथियों का वर्चस्व रहा है, और राष्ट्रवाद एक प्रकार से यहाँ पर अपराध समान है। इसी JNU में शेहला राशिद शोरा, कन्हैया कुमार, उमर खालिद जैसे देशद्रोहियों ने भारत के विरुद्ध विष भी उगला है और भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा भी दिया है, खासकर पाक प्रेम इनका अक्सर सामने आता रहा है। कन्हैया कुमार जैसे छात्र को पाकिस्तान का झण्डा तक फहराने की बात करते हैं। ऐसे में स्नेहा दुबे का सम्बोधन इन देश द्रोहियों के लिए बड़ी सीख भी है कि कैसे वो अपने भविष्य को बेहतर बना सकते हैं। हालांकि, इन देशद्रोहियों को सही चीज कहाँ समझ आती है उन्हें तो पाकिस्तान के धोए जाने का बड़ा गहरा दुख पहुँच होगा!
परंतु स्नेहा दुबे इन सब से अलग थी। अपनी परास्नातक एवं एमफिल की पढ़ाई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से पूरी करने वाले स्नेहा मूल रूप से गोवा से संबंध रखती हैं। उनके बारे में उनके अध्यापकों का कहना है कि वह प्रारंभ से मेधावी थीं एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों में उनकी विशेष रुचि थी। स्नेहा ने जेएनयू के आरएसडीसी से भूगोल विषय में अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई वर्ष 2010 में पूरी की थी। उस समय से ही स्नेहा की अंतरराष्ट्रीय मामलों में रुचि थी। लेक्चर के दौरान वह अक्सर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को लेकर चर्चा करती थीं।
जेएनयू के प्रो. गोवर्धन दास के अनुसार, “स्नेहा का बौद्धिक स्तर काफी मजबूत था। उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर वाद-विवाद करने में काफी रुचि थी। जेएनयू में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में स्नेहा वाद-विवाद प्रतियोगिता में सामाजिक और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय विषयों पर जमकर बहस करती थीं। साथ ही वह अपनी पढ़ाई के प्रति काफी लग्नशील थीं”।
स्नेहा दुबे ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के 76 वें आम सभा अधिवेशन के दौरान पाकिस्तान के कश्मीर को लेकर उसके खोखले दावों की धज्जियां उड़ा दी। उन्होंने अपने वक्तव्य से न केवल भारत का मस्तक ऊंचा किया है, बल्कि यह भी सिद्ध किया है कि JNU में वामपंथी ही नहीं भरे जिनका ह्रदय पाक के लिए कुछ ज्यादा ही धड़कता है और आजादी का राग आलापता है। परंतु वे अकेली ऐसी व्यक्ति नहीं है। JNU से एक ऐसे ही अन्य कूटनीतिज्ञ भी निकले हैं, जिन्होंने वामपंथी संस्थानों में रहकर भी भारतीयता को नहीं त्यागा एवं अपने देश का मान सम्मान अक्षुण्ण रखा। आज वही व्यक्ति इस देश के विदेश मंत्री हैं, जिनका नाम है डॉक्टर सुब्रह्मण्यम जयशंकर।
डॉक्टर जयशंकर के अलावा निर्मला सीतारमण भी इसी संस्थान से अर्थशास्त्र में स्नातक हैं। उनके विचारों पे लोगों को मतभेद हो सकता है, परंतु कोविड के समय जिस प्रकार से उन्होंने अर्थव्यवस्था को संभाला, और जिस प्रकार से उन्होंने भारत के अप्रत्याशित आर्थिक वृद्धि में अपना योगदान दिया, उससे स्पष्ट होता है कि JNU से सिर्फ देशद्रोही ही नहीं निकलते, कुछ कर्मठ व्यक्ति भी निकलते हैं, जो देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने को तैयार है, और अब इसी सूची में स्नेहा दुबे का भी नाम शामिल हो चुका है।