जब करो या मरो की स्थिति हो तो कहा जाता कि प्रतिस्पर्धी को अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए, चाहे परिणाम जो भी हो। ठीक इसी तरह पश्चिम बंगाल की भवानीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में सीएम ममता बनर्जी को हराने के लिए आवश्यकता थी, कि भाजपा कोई मजबूत उम्मीदवार खड़ा करे, किन्तु भाजपा ने शायद पहले ही ममता के आगे हार मान ली है। भाजपा एक ऐसी नेत्री को टिकट देने की प्लानिंग कर रही है, जो कि वॉर्ड लेवल तक के चुनाव में टीएमसी से बुरी तरह हार चुकी हैं। इतना ही नहीं, संभावित उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं भाजपा नेता बाबुल सुप्रियो की कानूनी सलाहकार भी रह चुकी हैं, जो विधानसभा चुनाव में हार के बाद से लगातार अपनी चुप्पी के जरिए नाराजगी जाहिर करते रहे हैं। भाजपा के पास बंगाल में ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं है, जो कि ममता को चुनौती दे सकते हैं, इसके बावजूद भाजपा यदि कोई नया या कमजोर उम्मीदवार उतारती है तो ये ममता के लिए मुश्किलें आसान करेगा।
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खबरों के मुताबिक, भाजपा भवानीपुर से प्रियंका टिबरेवाल को अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है, जो कि एक अजीबो-गरीब फैसला है। प्रियंका टिबरेवाल की बात करें तो वो पेशे से एक वकील हैं, जो साल 2014 में भाजपा में शामिल हुईं थी। वो बाबुल सुप्रियो की कानूनी सलाहकार भी रह चुकी है, जिसकी चलते उन्हें बंगाल की राजनीति में थोड़ी बहुत पहचान मिली। इसके विपरीत अगर चुनावी दृष्टि से देखें तो प्रियंका टिबरेवाल ने साल 2015 में, भाजपा उम्मीदवार के रूप में वार्ड संख्या 58 (एंटली) से कोलकाता नगर परिषद का चुनाव लड़ा, और तृणमूल कांग्रेस के स्वपन समदार से हार गईं। इसी तरह उन्होंने हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने एंटली से चुनाव लड़ा, लेकिन टीएमसी के स्वर्ण कमल साहा ने उन्हें 58,257 मतों के एक बड़े अंतर से हरा दिया।
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ये दिखाता है कि ममता के सामने प्रियंका टिबरेवाल का राजनीतिक कद बौना है, और वो टीएमसी के लिए कोई ज्यादा चुनौती नहीं खड़ी कर पाएंगी। पहले खबरें थीं कि भाजपा तथागत रॉय, अनिर्बान गांगुली, रुद्रनैल घोष और प्रताप बनर्जी जैसे नेताओं का नाम चल रहा था, जो कि ममता के राजनीतिक कद के सामने सटीक थे। तथागत रॉय तो ममता के खिलाफ सर्वाधिक सशक्त चेहरा हैं जिसका विश्लेषण टीएफआई ने भी किया है। बेहतर होता कि भाजपा ममता के सामने भवानीपुर से कोई मजबूत उम्मीदवार खड़ा करती। इसके विपरीत प्रियंका टिबरेवाल को लेकर ये कहा जा सकता है कि वो एक ममता के सामने एक कमजोर उम्मीदवार साबित होगी। वहीं भाजपा का ये रवैया आलोचनात्मक है।