तो क्या भाजपा ने भवानीपुर उपचुनाव लड़ने से पहले ही हार मान ली है?

भाजपा एक ऐसी नेत्री को टिकट देने जा रही है, जो कि वॉर्ड लेवल तक के चुनाव में टीएमसी से बुरी तरह हार चुकी हैं!

प्रियंका टिबरेवाल

साभार: Zee News

जब करो या मरो की स्थिति हो तो कहा जाता कि प्रतिस्पर्धी को अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए, चाहे परिणाम जो भी हो। ठीक इसी तरह पश्चिम बंगाल की भवानीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में सीएम ममता बनर्जी को हराने के लिए आवश्यकता थी, कि भाजपा कोई मजबूत उम्मीदवार खड़ा करे, किन्तु भाजपा ने शायद पहले ही ममता के आगे हार मान ली है। भाजपा एक ऐसी नेत्री को टिकट देने की प्लानिंग कर रही है, जो कि वॉर्ड लेवल तक के चुनाव में टीएमसी से बुरी तरह हार चुकी हैं। इतना ही नहीं, संभावित उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं भाजपा नेता बाबुल सुप्रियो की कानूनी सलाहकार भी रह चुकी हैं, जो विधानसभा चुनाव में हार के बाद से लगातार अपनी चुप्पी के जरिए नाराजगी जाहिर करते रहे हैं। भाजपा के पास बंगाल में ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं है, जो कि ममता को चुनौती दे सकते हैं, इसके बावजूद भाजपा यदि कोई नया या कमजोर उम्मीदवार उतारती है तो ये ममता के लिए मुश्किलें आसान करेगा।

विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को नंदीग्राम से हराकर भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी पार्टी के लिए राज्य में सबसे बड़े नेता बन गए हैं। ममता के लिए सबसे बड़ी दिक्कत आज ये ही है कि सीएम बनी रहने के लिए उन्हें विधायकी जल्द से जल्द चाहिए। ऐसे में ममता ने अपनी परंपरागत सीट भवानीपुर से चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है। भाजपा के लिए ये ममता को मात देने का सबसे बड़ा अवसर था। टीएफआई पहले ही बता चुका है कि कैसे इस भवानीपुर चुनाव में ममता को हराकर भाजपा ममता समेत टीएमसी का राजनीतिक भविष्य अधंकारमय कर सकती है, और ममता के पीएम बनने के सपने को एक मिनट में चकनाचूर कर सकती है। इसके विपरीत भाजपा के उदासीन रवैए को देखकर कहा जा सकता है कि भाजपा ममता को टक्कर तक देने के इच्छा नहीं जता रही है।

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खबरों के मुताबिक, भाजपा भवानीपुर से प्रियंका टिबरेवाल को अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है, जो कि एक अजीबो-गरीब फैसला है। प्रियंका टिबरेवाल की बात करें तो वो पेशे से एक वकील हैं, जो साल 2014 में भाजपा में शामिल हुईं थी। वो बाबुल सुप्रियो की कानूनी सलाहकार भी रह चुकी है, जिसकी चलते उन्हें बंगाल की राजनीति में थोड़ी बहुत पहचान मिली। इसके विपरीत अगर चुनावी दृष्टि से देखें तो प्रियंका टिबरेवाल ने साल 2015 में, भाजपा उम्मीदवार के रूप में वार्ड संख्या 58 (एंटली) से कोलकाता नगर परिषद का चुनाव लड़ा, और तृणमूल कांग्रेस के स्वपन समदार से हार गईं। इसी तरह उन्होंने हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने एंटली से चुनाव लड़ा, लेकिन टीएमसी के स्वर्ण कमल साहा ने उन्हें 58,257 मतों के एक बड़े अंतर से हरा दिया।

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ये दिखाता है कि ममता के सामने प्रियंका टिबरेवाल का राजनीतिक कद बौना है, और वो टीएमसी के लिए कोई ज्यादा चुनौती नहीं खड़ी कर पाएंगी। पहले खबरें थीं कि भाजपा तथागत रॉय, अनिर्बान गांगुली, रुद्रनैल घोष और प्रताप बनर्जी जैसे नेताओं का नाम चल रहा था, जो कि ममता के राजनीतिक कद के सामने सटीक थे। तथागत रॉय तो ममता के खिलाफ सर्वाधिक सशक्त चेहरा हैं जिसका विश्लेषण टीएफआई ने भी किया है। बेहतर होता कि भाजपा ममता के सामने भवानीपुर से कोई मजबूत उम्मीदवार खड़ा करती। इसके विपरीत प्रियंका टिबरेवाल को लेकर ये कहा जा सकता है कि वो एक ममता के सामने एक कमजोर उम्मीदवार साबित होगी। वहीं भाजपा का ये रवैया आलोचनात्मक है।

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