आरक्षण छोड़ना चाहता है सुथार समाज, सामान्य वर्ग में शामिल करने की मांग

ऐसा बहुत कम होता है कि कोई समुदाय स्वेच्छा से अपना आरक्षण का दर्जा छोड़ दे!

सुथार समाज की महिला

भले ही महाराष्ट्र सहित देश भर में प्रगतिशील समुदाय आरक्षण की मांग कर रहे हैं परंतु, महाराष्ट्र का सुथार समाज, जिसे विश्वकर्मा वर्ग के रूप में भी जाना जाता है, ने स्वेच्छा से अपनी आरक्षण को छोड़ने और सामान्य श्रेणी में शामिल होने का फैसला किया है। समुदाय की ओर से पुणे स्थित संगठन विश्वकर्मा प्रतिष्ठान द्वारा यह मांग रखी गई। इसके संस्थापक सदस्य विष्णु गरुड़ और संजय भालेराव ने कहा कि समुदाय द्वारा अप्रत्याशित प्रगति को देखते हुए इसके सदस्यों की राय है कि उन्हें आरक्षण की आवश्यकता नहीं है और उन्हे सामान्य वर्ग के बीच शामिल किया जाना चाहिए।

सुथार समाज का संक्षिप्त इतिहास

रिपोर्टों के अनुसार, विष्णु गरुड़ को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि “सुथार समाज धार्मिक रूप से हिंदू धर्म के सभी संस्कारों और अनुष्ठानों का पालन करता है जिसमें अन्य रीति-रिवाजों के बीच पूजा और व्रत शामिल हैं। समुदाय के सदस्य जनेऊ सजाते हैं, मुंज समारोह करते हैं, धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और नित्यकर्म करते हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि सुथार समाज और ब्राह्मण वर्ग के बीच कई समानताएं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि समुदाय के विचार प्रगतिशील हैं और इसलिए इस समुदाय के सदस्य स्वेच्छा से आरक्षण को छोड़ना चाहते हैं और सामान्य श्रेणी के सदस्यों में शामिल होना चाहते हैं। गरुड़ और भालेराव ने जिला कलेक्टर राजेश देशमुख को एक याचिका दायर कर जनगणना कराने और उसके बाद सुथार समाज को सामान्य वर्ग में जोड़ने की मांग की है। उन्होंने यह भी बताया कि आने वाले दिनों में इस संबंध में अदालत में याचिका दायर करेंगे।

गरुड़ ने बताया कि पिछले 70 वर्षों में आरक्षण ने सुथार समाज में आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक प्रगति का प्रादुर्भाव किया है। उन्होंने कहा कि आज हर समुदाय आरक्षण की मांग कर रहा है लेकिन ऐसा करने में वे देश के प्रति अपने कर्तव्यों और अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को भूल रहे हैं। गरुड़ ने कहा, “सुथार समाज के कई संगठन पूरे राज्य और देश में काम कर रहे हैं। हालांकि, समुदाय कभी भी ‘फुले-शाहू-आंबेडकर’ पूजा में शामिल नहीं होता ना ही उनके विचारों का प्रचार करता है।” दूसरे शब्दों में, यह समुदाय इस हद तक आगे बढ़ गया है कि हमें अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु इन महापुरुषों का समर्थन लेने की आवश्यकता नहीं है।

सुथार समाज की अन्य मांगें

जिला कलेक्टर को सौंपी गई याचिका में संगठन ने समाज की ओर से कई मांगें रखी हैं। दो लाख रुपये तक के गैर-संपार्श्विक ऋण, तालुका-स्तरीय विश्वकर्मा उद्योग भवन का निर्माण, ग्रामीण क्षेत्रों में सुथार समाज के सदस्यों को घरों के निर्माण के लिए पांच लाख रुपये तक का ऋण, सामुदायिक शादियों के लिए अनुदान, और विश्वब्राह्मण का दर्जा सुथार समाज की कुछ मांगें हैं।
इस संगठन की अनूठी मांगों को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है। कुछ ने इसका स्वागत किया है और अन्य ने सवाल उठाया है कि अगर आरक्षण हटा दिया गया तो समुदाय के गरीब सदस्यों को नुकसान हो सकता है।

हालांकि, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई समुदाय स्वेच्छा से अपना आरक्षण का दर्जा छोड़ दे। इसी तरह की मांग देवेंद्र कुला वेल्लालर्स ने भी की थी, जिन्होंने इस साल की शुरुआत में अपने समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची से बाहर करने के लिए एक अभियान चलाया था।

त्याग और समर्पण का ऐसा उदाहरण अद्वितीय है, अतुलनीय है। त्याग ही ब्राह्मण होने की पहचान है। दधीचि ने हड्डी तक दे दी और परशुराम नें दुनिया जीत ली परंतु, ना किसी ने स्वर्ग का मोह किया, ना ही अर्थ का, ना शासन का। निश्चल और निःस्वार्थ त्याग का ये उदाहरण संजीक नैतिकता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। सरकार को ऐसे मांगे मनाने में भी अगर परेशानी हो रही है तो निश्चित ही यह सामाजिक और राजनैतिक विकृति है।

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