एक ऐसे समय में जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय, UN, US, भारत तथा नाटो जैसी महाशक्तियां, पंजशीर में हो रहे नरसंहार और लोकतांत्रिक शक्तियों की इस्लामी आतंकवादियों के हाथों हो रही पराजय को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं, उस समय ताजिकिस्तान खुलकर तालिबानी शासन के विरोध में उतर आया है। ताजिकिस्तान ने पाकिस्तान के समक्ष यह बात स्पष्ट कर दी है कि वह तालिबान अधिकृत अफ़ग़ानिस्तान को अपनी सीमा पर कभी स्वीकार नहीं करेगा। ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान ने अपने देश के स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए अपने भाषण में ताजिकिस्तान का तालिबान समस्या को लेकर क्या रुख है, इसे स्पष्ट कर दिया है। यही नहीं ताजिकिस्तान की सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान के महानतम मिलिट्री लीडर अहमद शाह मसूद को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने का निर्णय किया है।
Tajik President mentions Afghanistan during his speech on the eve of Tajikistan's Independence day. Says,"I am surprised that all international human rights institutions remain silent and do not show any initiatives to support the rights of the Afghan people."
Transcipt: pic.twitter.com/ObQ41Tk6wc
— Sidhant Sibal (@sidhant) September 8, 2021
दरअसल, अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति रहमान ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण, और अधिक जटिल और त्रासदीपूर्ण हो गई है, जो हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि ताजिकिस्तान की प्राथमिकता अफ़ग़ानिस्तान में तत्काल शांति स्थापना की है। साथ ही उनकी प्राथमिकता एक सर्व समावेशी सरकार की स्थापना का है जिसमें सभी राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों को सम्मिलित किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि, “मुझे आश्चर्य है कि सभी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान चुप हैं और अफगान लोगों के अधिकारों का समर्थन करने के लिए कोई पहल नहीं दिखाते हैं।”
इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की वर्तमान समस्या अंतरराष्ट्रीय महाशक्तियों के आपसी संघर्ष का नतीजा है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानों को उनकी स्थिति पर छोड़ नहीं सकता। उन्होंने कहा कि उन्हें यह बात आश्चर्यजनक लग रही है कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा संगठन इस मामले पर चुप क्यों हैं।
और पढ़ें : ममता हारने से इतना डर गई हैं कि भाजपा के भवानीपुर इंचार्ज के घर पर बम फेंकवा रही हैं
इसके पूर्व 25 अगस्त को पाकिस्तान के विदेश मंत्री ताजिकिस्तान के दौरे पर गए थे। पाकिस्तानी विदेश मंत्री का उद्देश्य था कि कैसे भी ताजिकिस्तान और तालिबान के बीच संबंध सुधारे जाएं। हालांकि, ताजिकिस्तान ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी सीमा पर कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी संगठन द्वारा संचालित सरकार को कभी मान्यता नहीं देगा।
इतना ही नहीं तालिबान को सख्त संदेश देने के लिए ताजिकिस्तान की सरकार ने नॉर्दन एलायंस के कमांडर रहे अहमद शाह मसूद और अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान Order of Ismoili Somoni देने का निर्णय किया है। रब्बानी 1992 से 2002 तक अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति रहे थे। 1992 में सोवियत समर्थित सरकार के टूटने पर बनी अंतरिम सरकार में रब्बानी को राष्ट्रपति बनाया गया था। फिर 1996 में जब तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा कर लिया तो रब्बानी पंजशीर भाग गए और वही जाकर अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में नॉर्दनएलायंस का हिस्सा बन गए।
ताजिकिस्तान के लोगों ने हौसला नहीं छोड़ा है
हालांकि, तजिक लोगों ने लड़ने का हौसला नहीं छोड़ा है। मीडिया रिपोर्ट बताती है कि अब ताजिकिस्तान में भी ऐसे स्वयंसेवी संगठन बन रहे हैं जो ताजिकिस्तान की दक्षिणी सीमा को पार करके अफ़ग़ानिस्तान जाकर तालिबान से लड़ना चाहते हैं और इसके लिए ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति को आवेदन पत्र भेज रहे हैं।
एक और ताजिकिस्तान ताजिक लोगों के अधिकारों के लिए चिंतित है दूसरी ओर उसे यह भी भय है कि अफ़ग़ानिस्तान का सीधा प्रभाव मध्य एशिया के देशों पर भी पड़ेगा। यदि तालिबान के आधिपत्य को बिना किसी विरोध के स्वीकृति दे दी गई तो कट्टरपंथी इस्लाम का प्रभाव सबसे पहले मध्य एशियाई देशों पर ही पड़ेगा। यही कारण है कि ताजिकिस्तान तालिबानी आधिपत्य को सबसे बड़े खतरे के रूप में देख रहा है।
और पढ़े: तालिबान ने चला ‘मसूद अज़हर’ कार्ड, भारत को रूस और ताजिकिस्तान के समर्थन में आना चाहिए
हालांकि, इसकी संभावना ना के बराबर है कि ताजिकिस्तान कोई ऐसा मिलिट्री संगठन तैयार करेगा या अफ़ग़ानिस्तान में किसी प्रकार का सैन्य हस्तक्षेप करेगा, लेकिन यह भी तय है कि वह तालिबान के खिलाफ खुल कर अपना विरोध जारी रखेगा। जब तक तालिबान अपने पुराने समझौते, जिसमें उसे ‘अफ़ग़ानिस्तान सरकार’ में अल्पसंख्यकों को भी सम्मिलित करना था, उसे पूरा नहीं करेगा तब तक ताजिकिस्तान शांति से नहीं बैठेगा। यदि भारत और रूस जैसे देश ताजिकिस्तान को मदद करते हैं तो अब भी अफ़ग़ानिस्तान को आतंक की फैक्ट्री बनने से बचाया जा सकता है।