भारतीय जनता पार्टी में जितने सक्रिय लोग आपको मिलेंगे, अगर आप उनसे पूछेंगे कि आप भाजपा से कब जुड़े? तो सम्भवतः उनका जवाब होगा, स्थापना के बाद से, या फिर कोई भी वर्ष लेकिन कभी भी आप यह नहीं सुनेंगे कि वह 2014 या 2019 में जुड़े थे। ऐसा इसलिए है कि क्योंकि जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में आता है तब स्वार्थी और अवसरवादी नेता दल बदल लेते हैं।
हालांकि, भारतीय राजनीति में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने भाजपा का दामन 2014 में थामा था। बाबुल सुप्रियो उन लोगों में से एक हैं। बॉलीवुड पार्श्व गायक से राजनीति में आने वाले बाबुल सुप्रियो को भाजपा ने वह सबकुछ दिया, जिसके वह हकदार थे। जबतक वह भाजपा के साथ रहे, वह केंद्रीय मंत्री भी रहे। अचानक से एक महीने पूर्व उन्होंने राजनीतिक जीवन से सन्यास की घोषणा की थी। उन्होंने उस वक़्त बताया था कि उन्हें अब राजनीति नहीं करनी है। शनिवार को अपने ही दावों के खिलाफ जाते हुए वो राजनीति में दुबारा सक्रिय हुए हैं और इसबार उन्होंने साथ पकड़ा है तृणमूल कांग्रेस का। ये वही तृणमूल कांग्रेस है जिसकी विधानसभा चुनाव के पहले वह जमकर बुराई करते थे।
बाबुल सुप्रियो के इस कदम से राजनीतिक पंडित भी आश्चर्य में हैं। बहुत से लोग इसे तृणमूल कांग्रेस की विजय बता रहे हैं और बहुत से लोग इसे भाजपा की हर बात रहे हैं। हालांकि, बंगाल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने उनके इस फैसले पर यह कहा है कि उनके जाने से कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है। पश्चिम बंगाल भाजपा प्रमुख दिलीप घोष ने पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो पर तंज कसते हुए कहा, “जब वह [बाबुल सुप्रियो] TMC में शामिल हुए तो यह पार्टी के लिए कोई बड़ा झटका नहीं है। जो लोग पार्टी के लिए मेहनत करते हैं और उन्हें पार्टी में वेटेज दिया जाता है। बीजेपी के साधारण कार्यकर्ता जो पार्टी के लिए काम करने के लिए हैं, वो पार्टी में बने रहेंगे। राजनीतिक पर्यटकों के रूप में आने वाले लोगों को सड़कों पर खरीदा जा सकता है।”
भाजपा के ही सुवेन्दू अधिकारी ने ANI से बात करते हुए कहा, “यह उनका व्यक्तिगत निर्णय है। बाबुल को तुरंत संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे देना चाहिए। जाने से पहले, उन्हें भाजपा को सूचित करना चाहिए था। उनके जाने से भाजपा को कोई नुकसान नहीं हुआ है। वह एक बड़े जन नेता नहीं हैं। बाबुल सुप्रियो एक अच्छे राजनीतिक आयोजक भी नहीं हैं। उनका कोई राजनीतिक महत्व नहीं है। मुझे उनके साथ लंबे समय तक काम करने का मौका नहीं मिलालेकिन व्यक्तिगत रूप से वह एक अच्छे दोस्त हैं।”
बाबुल सुप्रियो को यह नहीं भूलना चाहिए कि कैसे भाजपा और आरएसएस के लोगों को बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद ममता के गुंडों का सामना करना पड़ा था और उन्हें मौत के घाट उतारा गया थआ। अपने राजनीतिक स्वार्थ को साधने के लिए वह अपने सिद्धांतों के विपरीत अपने इस कदम से यह संदेश दे चुके हैं कि वह सिर्फ किसी बड़े पद के लिए भाजपा के साथ जुड़े थे और पद के छीन लिए जाने के बाद वह खिलाफ चले गये।
अगर आप गौर करें तो भाजपा में बाबुल सुप्रियो जैसे कई नेता है। समय आने पर वह अपने महत्वाकांक्षा को पार्टी से ऊपर रखकर साथ भी छोड़ सकते हैं। पार्टी के सिद्धांतों और विचारों के नाम पर जुड़ने वाले बहुत से नेताओं के भीतर व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा भरी हुई हैं। वह पार्टी के नाम या उसके क्रेडिट के सहारे अपने हितों को साधने में लगे रहते हैं। ऐसे नेता जो चुनाव के वक़्त माहौल को भांपकर भाजपा से जुड़ते हैं, उनसे भाजपा को खास सतर्क रहने की आवश्यकता है। भाजपा से यही उम्मीद जताई जा सकती है कि अब वह महत्वपूर्ण मंत्रालय और पोर्टफोलियो ऐसे नेताओं के हाथ में ना दे।