कुछ दिनों पहले भारत के लिए एक बेहद सुखद समाचार आया था, जब प्रखर अलगाववादी और आतंकवाद को बढ़ावा देने में अग्रणी रहे हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी की मृत्यु हो गई। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। लेकिन इतना बड़ा भारत-विरोधी नेता मर जाए और पड़ोसी मुल्क चुप रहे, ऐसा भला हो सकता है क्या? पाकिस्तान ने एड़ी चोटी का जोर लगाया कि बुरहान वानी की भांति गिलानी की मृत्यु से भी कश्मीर घाटी में अशान्ति फैले और भारत में त्राहिमाम मचे। परंतु मोदी सरकार ने उनके सारे किये कराए पर ऐसा पानी फेरा कि वे न घर के रहे और न ही घाट के।
1 सितंबर को श्रीनगर में अपने निवास अलगाववादी सैयद अली शाह गिलानी की लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। वो 91 वर्ष का था और उसके कारण पिछले 4 दशकों से कश्मीर घाटी और उत्तरी भारत में अशान्ति का वातावरण व्याप्त था। लेकिन मृत्यु के बाद जिस प्रकार से गिलानी को गुपचुप तरह से दफनाया गया, न कोई कवरेज मिला और न ही कोई विशाल भीड़ एकत्रित हुई। ये बातें अपने आप में कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कहती हैं। इससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने एक ही तीर से दो निशाने साध दिए। उन्होंने न केवल पाकिस्तान द्वारा घाटी में अशान्ति फैलाने की योजना को विफल किया, अपितु सैयद अली शाह गिलानी को ऐसी विदाई दी, जिसके लिए वह वास्तव में योग्य था – लाइमलाइट से दूर, गुमनामी के अंधेरे में।
पाकिस्तान, घाटी में अशान्ति फैलाने के लिए कितना उद्यत था, इसका अंदाजा आप इस घटना से ही लगा सकते हैं। हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होता हुआ दिखा, जिसमें गिलानी की मृत शरीर पर पाकिस्तानी झण्डा रखा गया था। अमर उजाला के रिपोर्ट के अंश अनुसार,
“पुलिस ने उस वायरल वीडियो का संज्ञान लिया है, जिसमें गिलानी का शव पाकिस्तानी झंडे में लिपटा दिखाया गया था। वीडियो में दिखाया गया है कि जैसे ही पुलिस शव को कब्जे में लेने के लिए आगे बढ़ी, दिवंगत अलगाववादी नेता के सहयोगियों ने झंडा हटा दिया। 91 वर्षीय गिलानी का लंबी बीमारी के बाद बुधवार रात यहां उनके आवास पर निधन हो गया। शव को पास की एक मस्जिद के कब्रिस्तान में दफनाया गया”।
लेकिन प्रशासन केवल वहीं तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने इस बात को सुनिश्चित किया कि गिलानी को वैसी कोई सहानुभूति नहीं मिले, जैसे बुरहान वानी को मृत्यु के समय मिली थी। रिपोर्ट में आगे बताया गया, “कश्मीर घाटी के ज्यादातर हिस्सों में लोगों के एकत्रित होने पर लगाई गई पाबंदी तीसरे दिन शनिवार को जारी रही। वहीं दो दिन बाद शुक्रवार की रात शुरू इंटरनेट सेवाएं शनिवार सुबह फिर बंद कर दी गईं। हिंसा की आशंका में जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर वाहनों का आवागमन भी बंद कर दिया गया था। बनिहाल से आगे किसी भी वाहन को जाने नहीं दिया गया।”
पाकिस्तान गिलानी की मृत्यु से ही भारत में भड़काऊ माहौल उत्पन्न की दिशा में काम कर रहा था। उदाहरण के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के ट्वीट के अनुसार, “कश्मीरी नेता सैयद अली शाह गिलानी के इंतकाल की खबर सुनकर बहुत दुखी हूँ। गिलानी जीवनभर अपने लोगों और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए लड़ते रहे। भारत ने उन्हें कैद करके रखा और प्रताड़ित किया।”
Deeply saddened to learn of the passing of Kashmiri freedom fighter Syed Ali Geelani who struggled all his life for his people & their right to self determination. He suffered incarceration & torture by the Occupying Indian state but remained resolute.
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) September 1, 2021
सैयद अली शाह गिलानी को ‘शहीद’ के रूप में चित्रित कर अलगाववादी और उनके पाकिस्तानी आका अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे। बुरहान वानी की मृत्यु पर जो विशाल शवयात्रा निकाली गई थी, उसी ने एक प्रकार से उरी के घातक हमले की नींव भी रखी थी। स्वयं गिलानी का परिवार भी चाहता था कि उन्हें सुबह 10 बजे के करीब दफनाया जाए, परंतु इसकी इजाजत नहीं दी गई। गिलानी को गुरुवार सुबह श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में सुबह 4:37 पर सुपुर्द-ए-खाक किया गया। इस दौरान इंटरनेट सेवा बंद रही, ताकि घाटी में अफवाहों के कारण किसी तरह की परेशानी न हो।
जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने संयम और प्रतिबद्धता का परिचय देते हुए सैयद अली शाह गिलानी की मृत्यु को तमाशा में परिवर्तित नहीं होने दिया है, उससे न केवल उन्होंने पाकिस्तान के बहुत बड़े साजिश को असफल किया है, अपितु एक बार कश्मीर घाटी को हिंसा की आग में झोंके जाने से बचाया है।