विजय कुमार: चोरी की मूर्तियों और कलाकृतियों को वापस लाने में मिली सफलता के पीछे यही शख्स है

पीएम मोदी की यात्रा के दौरान अमेरिका द्वारा 157 कलाकृतियों और पुरावशेषों को सौंपा गया!

विजय कुमार प्राचीन मूर्ति के साथ खड़े है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी दौरे से खाली हाथ नहीं लौट रहे हैं। आर्थिक निवेश और बुनियादी विकास की चीजों से परे भारतीय प्रधानमंत्री भारत का गौरव और अतीत लेकर आ रहे हैं। हर भारतीय के लिए उसकी महान बौद्धिक संपदा, उसके शिलालेख, उसकी मूर्तियां अमूल्य धरोहर है। जब दुनिया में लोग चित्रकारी नहीं जानते थे तब भारत में हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां बनती थी। कोहिनूर की तो फिर भी एक कीमत हो सकती है लेकिन बौद्धिक संपदा और ऐतिहासिक विरासत की क्या कीमत हो सकती है? ब्रिटिश शासन के दौरान से लेकर अवैध तस्करी तक, ऐसी हजारों लाखों मूर्तियां विदेशों में बेच दी गई हैं लेकिन अब प्रधानमंत्री ऐसी ही 157 विरासतों को वापस भारत ला रहे हैं। अब जब ऐसा हो रहा है तो जरूरी है कि एक व्यक्ति के बारे में चर्चा हो जिसने अपने जीवन का लक्ष्य ही ऐसी विरासतों को वापस लाना रखा है। हम बात कर रहे हैं विजय कुमार की, जिनके प्रयासों ना जाने कितनी मूर्तियां भारत वापस आई हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 157 कलाकृतियों और पुरावशेषों को सौंपा गया है, इसमें भी विजय कुमार की भूमिका सराहनीय है। 157 कलाकृतियों की सूची में 10वीं सदी के बलुआ पत्थर में रेवंत के डेढ़ मीटर बेस रिलीफ पैनल से लेकर 8.5 सेंटीमीटर लंबा, 12वीं सदी का उत्तम कांस्य नटराज तक की वस्तुओं का एक विविध सेट शामिल है। 11वीं सदी से 14वीं सदी के साथ-साथ ऐतिहासिक पुरातनता जैसे कि 2000 ईसा पूर्व की तांबा मानववंशीय वस्तु या दूसरी सदी के टेराकोटा फूलदान लाए गए हैं। 45 पुरावशेष ईसा पूर्व के हैं और लाए गए विरासतों में से आधी कलाकृतियाँ (71) सांस्कृतिक हैं, हिंदू धर्म (60), बौद्ध धर्म (16) और जैन धर्म (7) से संबंधित हैं। संग्रह में मुख्य रूप से लक्ष्मी, नारायण, बुद्ध, विष्णु, शिव पार्वती और 24 जैन तीर्थंकरों की प्रसिद्ध मुद्राओं की अलंकृत मूर्तियाँ हैं।

कौन है विजय कुमार है?

पीएम मोदी द्वारा धरोहरों को लाने की खबर पर जाने माने अर्थशास्त्री संजीव सन्याल ने ट्वीट कर कहा, “वह खुद यह कहने के लिए बहुत विनम्र हैं, लेकिन विजय कुमार @Poetryinstone की इनमें से कई कलाकृतियों को खोजने और लाने करने में बड़ी भूमिका रही है। दुनिया भर में इन मूर्तियों का पता लगाने के कई वर्षों से वह प्रयासरत हैं। बहुत बढ़िया!”

विजय कुमार सिंगापुर स्थित शिपिंग कॉर्पोरेशन में एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और उन्हें भारत संबंधित पारंपरिक कलाओं और मूर्तियों का शौक है। वह एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को चलाते हैं जिसका नाम है इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट (आईपीपी), यह संगठन पिछले 14 सालों से हमारे देश के पवित्र मूर्तियों को वापस लाने के लिए काम कर रहा है जिन्हें देश से बाहर तस्करी करके भेजा गया था।

भले विजय एक प्रतिष्ठित शिपिंग कंपनी के महाप्रबंधक हैं, लेकिन ड्यूटी के बाद उन्होंने कई मूर्तियों का दस्तावेजीकरण करवाया है जो भारत के मंदिरों और औपनिवेशिक लूट से गायब हो गए हैं। अपने इस शौक का कारण वह चोल साम्राज्यों और बचपन में उनकी दादी की कहानियों को बताते हैं। विजय बताते हैं कि, “मुझे तमिल उपन्यास पोन्नियिन सेलवन ने बहुत प्रेरित किया था।”

विजय धीरे-धीरे मूर्तियों का पता लगाने लगे और पता चलने पर वह सम्बंधित विभागों को सूचित करने लगे। विद्वानों और कानून प्रवर्तन ने विजय को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन वह पीछे नहीं हटे। वह लगातार ऐसी मूर्तियां जो भारत से चोरी की गई हैं उसका पता करते रहे और उनकी इस मेहनत को पहचान 2011 में मिली। उनके प्रयास के चलते ही 2011 में न्यूयॉर्क के गैलरिस्ट सुभाष कपूर की गिरफ्तारी की गई जिसमें बाद में सुभाष को $100 मिलियन का तस्करी रैकेट चलाने का दोषी पाया गया था।

2013 में, इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के एक सदस्य ने ओहियो (अमेरिका) के टोलेडो संग्रहालय में 1,000 साल पुरानी गणेश मूर्ति का पता लगाया था। विजय कहते हैं, “हमने मूर्ति का मिलान पुडुचेरी के फ्रेंच इंस्टीट्यूट के फोटो आर्काइव से किया” जिसकी तस्वीरें 1960 के दशक में ली गई थीं, जबकि वह मूर्ति मूल रूप तमिलनाडु के अरियालुर जिले के श्रीपुरंथर के मंदिर में थी।

विजय तबसे लगातार ऐसी विरासतों को संकलित करने का काम कर रहे हैं। उन्होंने विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों के साथ मिलकर सैकड़ो मूर्तियों को वापस भारत लाने में मदद किया है।

और पढ़े : आगरा में जामा मस्जिद के नीचे दबी हुई श्री कृष्ण की मूर्तियों का सच उजागर करने के लिए दायर हुई याचिका

Exit mobile version