विजय रूपाणी को उनकी अक्षमता नहीं, बल्कि रघुबर दास सिंड्रोम से ग्रसित होने के कारण हटाया गया है

रूपाणी

PC: DNA India

‘जो दिखता है, वही बिकता है’ अगर भारतीय राजनीति में लोकप्रिय नेताओं के लिए इस शब्द को प्रयोग किया जाए, तो निश्चित ही ये गलत नहीं होगा। भाजपा ने 2014 विधानसभा चुनावों में जीत के बाद कई नए मुख्यमंत्रियों पर ही भरोसा जताया है। कई राज्यों  में भाजपा का ये दांव सफल हुआ, परंतु झारखंड से लेकर हरियाणा, उत्तराखंड के सीएम इतने लोकप्रिय नेता नहीं बन सके, और झारखंड में हारने के बाद से भाजपा लगातार मुख्यमंत्रियों को बदल रही है। इसके चलते ही भाजपा ने गुजरात के सीएम विजय रूपाणी को भी हटा दिया है, क्योंकि भाजपा 2022 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों पर पूरा फोकस कर रही है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गृहराज्य गुजरात उनके केन्द्र में जाने के बाद से नेतृत्व के नजरिए से अस्थिरता में ही है। 22 साल में पहली बार भाजपा साल 2017 के विधानसभा चुनावों में 100 सीटों से भी नीचे चली गई थी। उस समय ही ये देखने को मिला था, कि मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के नेतृत्व में पार्टी को झटका लगा है। चुनावों में मिली जीत के चलते उन्हें सीएम बनाया गया, लेकिन अब विधानसभा चुनाव में करीब एक साल का समय है, जिसके चलते पार्टी राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के प्रयास कर रही थी, जिसका नतीजा ये कि अब मुख्यमंत्री विजय रूपाणी इस्तीफे दे चुके हैं।

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आनंदी बेन पटेल की उम्र 75 वर्ष से अधिक होने के बाद उनका पद विजय रूपाणी को दिया गया था। उस वक्त भी ये माना गया था, कि भाजपा ने रूपाणी को नेतृत्व परिवर्तन के चलते भी हटाया है, लेकिन उनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव के परिणाम पार्टी के लिए संतोषजनक  नहीं था। उनके पांच वर्षीय कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपने सारे कार्य तो सफलता से किए, लेकिन लोकप्रियता के मामले में उनकी स्थिति निराशाजनक ही थी। मीडिया से दूर रहकर अपना काम करने वाले रूपाणी की अलोकप्रियता ही उनके सीएम पद पर भारी पड़ी है।

भाजपा के जितने भी मुख्यमंत्री हैं, उनमें सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वो जनता के बीच लोकप्रिय हैं। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा तक सभी की एक खास बात ये है कि दोनों ही लोकप्रिय हैं और राज्य में उनकी लोकप्रियता के बराबर दूसरा कोई चेहरा नहीं है।  वहीं, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेन्द्र फडण्वीस ने भी 2019 का विधानसभा चुनाव अपने दम पर जीता था , किन्तु शिवसेना की धोखेबाजी के कारण भाजपा वो सीएम न बन सके। ये सभी भाजपा नेता की लोकप्रिता के कारण पार्टी में एक सकारात्मक छवि बना चुके हैं। भाजपा के बाहर भी नेताओं को देखें तो नकारात्मक छवि के कारण ममता बनर्जी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक लोकप्रिय हैं क्योंकि वो मीडिया में बने रहते हैं।

इसके विपरीत भाजपा में अलोकप्रियता के कारण पहला नुकसान झारखंड में उठाया था। मुख्यमंत्री रघुबर दास के सकारात्मक और पार्टी के कोर एजेंडों पर कार्रवाई के बावजूद पार्टी ने उन्होंने मीडिया से दूरी बनाई, जिससे उनकी लोकप्रियता गिरती चली गई। उनकी इसी अलोकप्रियता के कारण भाजपा को विधानसभा चुनाव में हार मिली थी। रघुबर दास की हार से सबक लेने के बाद से ही भाजपा ने मुख्यमंत्रियों के चुनाव में सावधानी बरतना शुरु कर दिया। यही कारण था, कि भाजपा ने असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल को हटाया था, यद्यपि उनका पुराना रिकॉर्ड बेहतरीन था। हिमंता की लोकप्रियता के कारण ही सोनेवाल को हटाया गया।

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उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी उनकी अलोकप्रियता के कारण उन्हें हटाया गया, कुछ इसी तरह जब तीरथ सिंह रावत को लेकर भी पार्टी में बगावत की स्थिति आई तो पार्टी ने उन्हें हटाकर पुष्कर सिंह धामी को सीएम बना दिया। उत्तराखंड के बाद भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर और हिमाचल प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर हैं, जो कि करिश्माई छवि न होने के कारण पार्टी के लिए चुनावी रुप से मुसीबत बन सकते हैं, संभवतः उनके पद भी जल्दी ही ले लिए जाएं।

रघुबर दास की हार से सबक लेते हुए ही भाजपा ने मुख्यमंत्रों को बदलने का सिलसिला शुरु किया था, और उसके तहत ही अब सीएम विजय रूपाणी को हटाया गया है, जो कि गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन का सकारात्मक संकेत है।

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