बीजेपी ने नितिन पटेल की जगह भूपेंद्र पटेल को क्यों चुना?

कदवा पटेल की मांग की गयी पूरी!

गुजरात का अगला मुख्यमंत्री

विजय रुपाणी द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद गुजरात का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर कयासों का दौर शुरू हो गया था। कुछ लोग नितिन पटेल को भावी मुख्यमंत्री बता रहे थे तो कुछ लोग किसी और को। इन सारे कयासों पर अंकुश लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान ने भूपेंद्र पटेल को गुजरात का अगला मुख्यमंत्री बनाने का एलान कर दिया है। इस फैसले के बाद जहां सारे तरफ आश्चर्य की लहर है तो दूसरी ओर, बहुत से लोग भाजपा के इस कदम को अगले वर्ष होने वाले गुजरात विधानसभा के अंतर्गत अद्भुत कदम के रूप में भी देख रहे हैं।

तीन माह पहले ही रखी गयी थी नींव

विजय रुपाणी जैन समुदाय से बनने वाले पहले मुख्यमंत्री थे। उनके मुख्यमंत्री बनने से पाटीदार समाज भाजपा से थोड़ा दूर हो गया था। अब इसी दूरी को कम करने के लिए भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनया गया है। भले ही ऐसा लग रहा हो कि यह कदम अचानक से उठाया गया था पर इसकी नीवं तीन माह पहले ही रख दी गई थी। इसी वर्ष जून में खोडलधाम जो कि पाटीदार समाज की कुल देवी मानी जाती है, उनके मंदिर में पाटीदार के दोनों गुट लेउवा और कडवा पटेल ने वर्ष 2022 के चुनाव पर चर्चा की थी और तय किया कि गुजरात का अगला मुख्यमंत्री पाटीदार समाज से ही होना चाहिए। खोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेश पटेल ने जैसे ही इस बात का ऐलान किया था, गुजरात का राजनीतिक पारा चढ़ गया था। पाटीदार समाज के आंदोलन के चलते भाजपा को 2017 विधानसभा में काफी नुकसान पहुंचा था और भाजपा इस बार उस समुदाय की मांग पूरा करना चाह रही है।

कदवा पटेल की मांग की गयी पूरी

गुजरात में पाटीदार समुदाय दो उपजातियों में बंटी हुई है। 70% प्रतिशत पाटीदार लेउवा पटेल और 30% कदवा पटेल है। पाटीदार आरक्षण आंदोलन, जो पिछले कुछ वर्षों से चल रहा है, मुख्य रूप से कदवा पाटीदार समुदाय के नेतृत्व में हुआ था। इस समुदाय से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई व्यक्ति नहीं है; अब तक सीएम की कुर्सी पर बैठ चुके पाटीदार समुदाय के चारों लोग लेउवा पाटीदार समुदाय से थे। भूपेंद्र पटेल कदवा समुदाय से आते है। जिन नामों पर कयास लगाए जा रहे थे उनमें प्रमुख नाम नितिन पटेल का भी था जो कि कदवा समुदाय से आते हैं, लेकिन उनके गुजरात का अगला मुख्यमंत्री बनने से एक समस्या यह थी कि पार्टी में काम कर रहे पुराने नेता नाराज हो सकते थे। इस चीज से बचने के लिए नए चेहरे को लेकर भाजपा ने समझदारी का परिचय दिया है।

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नितिन पटेल की जगह भूपेंद्र पटेल को गुजरात का अगला मुख्यमंत्री इसलिए भी चुना गया था, क्योंकि नितिन को Establishment के व्यक्ति के रूप में देखा जाता है और पाटीदार समुदाय उन्हें अपने में से एक के रूप में नहीं देखती है। कदवा पटेल समुदाय के बीच बढ़ते गुस्से को शांत करने के लिए एक नए नेता को स्थापित करना आवश्यक था, जिसे Establishment के व्यक्ति के रूप में नहीं देखा जाता है और यहीं भूपेंद्र पटेल को बढ़त मिली।

राज्य में 20 साल से अधिक समय से सत्ता में होने के कारण पार्टी के स्थापित नेताओं में गुटबाजी भी अधिक है और आलाकमान विधानसभा चुनाव से पहले गुटों से छुटकारा पाना चाहता था। इस कारण एक नए चेहरे को गुजरात का अगला मुख्यमंत्री बनाया गया ताकि चुनाव के दौरान अपनी ही पार्टी के नेता गुट बनाकर एक-दूसरे के खिलाफ काम न करें।

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कांग्रेस और AAP के लिए बड़ा झटका

पाटीदार मुख्यमंत्री की नियुक्ति के साथ, भाजपा ने राज्य में आम आदमी पार्टी की सफलता की संभावनाओं को समाप्त कर दिया है। पिछले कुछ वर्षों में, आप कांग्रेस को काटकर गुजरात में तेजी से नाम बना रही है। पिछले नगरपालिका चुनाव के दौरान, AAP ने सूरत नगर निगमों सहित कई सीटें जीतीं थी और कई शहरों और जिलों में विपक्षी दल बन गई है। आप की जीत का मुख्य कारण पाटीदार समुदाय के समर्थन ही है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में इस समुदाय का कांग्रेस और हार्दिक पटेल से मोहभंग हो चुका है और वे एक विकल्प की तलाश में हैं। हालांकि, अब बीजेपी ने पाटीदार सीएम की मांग को पूरा किया है, इससे यह समुदाय अपना समर्थन भी बीजेपी को देगी जैसा पीएम मोदी सीएम बनने के बाद से दिया था।

भाजपा के इस कदम की तारीफ करते हुए सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्विटर के जरिये यह कहा है कि भाजपा का अगली बार सरकार में आना लगभग तय हो गया है। गुजरात में पाटीदार समाज का वोट प्रतिशत 15 से 20% है। यह बहुत बड़ा आंकड़ा है। इस कदम को इस तरीके से भी समझा जा सकता है कि कांग्रेस भी कोशिश करके हार्दिक पटेल को मुख्यमंत्री दावेदार बना सकती है। पाटीदार समाज को लुभाने और वोट बैंक मजबूत करने के लिए बहुत सी राजनीतिक पार्टियां काम कर रही है। भाजपा का यह कदम उनके तमाम प्रयासों पर एक तमाचा है और अगले साल होने वाले चुनावों में विजय की नीवं है।

भाजपा का यह कदम इस बात का भी संकेत है कि कामकाज ना करने वाले लोगों की पार्टी में कोई जगह नहीं है। इसी को आधार बनाकर भाजपा येदुरप्पा, तीरथ सिंह रावत जैसे सिटिंग चीफ मिनिस्टर को हटा चुकी है। ‘पी फ़ॉर पटेल और पी फ़ॉर पॉवर के नारेबाज़ी’ को भाजपा समझ गई थी और इससे बचने के लिए वह पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया है।

 

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