राज्य सरकारें मदरसों को फंड क्यों दे रही हैं? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पूछा बिल्कुल सही सवाल

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मदरसों को फंड

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्यों द्वारा मदरसों के वित्त पोषण पर सवाल खड़ा किया है। कोर्ट ने स्पष्ट सवाल किया की संविधान के अनुसार देश धर्मनिरपेक्ष है तो आखिर राज्य कैसे मदरसों को फंड कर रहे हैं। कोर्ट ने पूछा कि मदरसों और अन्य धार्मिक संस्थानों को राज्य द्वारा वित्त पोषण भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्ष सिद्धान्त के अनुरूप है या नहीं?

मदरसा अंजुमन इस्लामिया फैजुल उलूम और एक अन्य द्वारा दायर Writ याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने राज्य सरकार (उत्तर प्रदेश) को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब (काउंटर हलफनामा) दाखिल करने का निर्देश दिया है जिसमें मदरसों के पाठ्यक्रम / पाठ्यक्रम, उनकी आवश्यकताएं, उनके पंजीकरण के शर्तें, खेल के मैदान और अन्य कई मानकों को भी शामिल किया गया है।

न्यायमूर्ति अजय भनोट की पीठ मदरसा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त और राज्य सरकार द्वारा सहायता प्राप्त एक मदरसे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। मदरसे ने अपनी याचिका में छात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए शिक्षकों के अतिरिक्त पद सृजित करने की मांग की थी।

जिस पर अदालत ने 19 अगस्त को निर्देश पारित किए और यह मंगलवार को सार्वजनिक हो गया। अदालत ने इस मामले को अगली सुनवाई के लिए 6 अक्टूबर 2021 को रखने का निर्देश दिया।

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प्रथम दृष्टया, न्यायालय ने अधिवक्ताओं द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण के आधार पर विचार के लिए निम्नलिखित प्रश्न तय किए हैं:

  1. क्या धार्मिक शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों को वित्तीय सहायता देने की राज्य सरकार की नीति संविधान की योजना के अनुरूप है, विशेष रूप से, भारत के संविधान की प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” शब्द के आलोक में?
  2.  क्या धार्मिक अल्पसंख्यकों द्वारा सरकारी फंडिंग से चलाए जा रहे संस्‍थान, जो धार्मिक शिक्षा देते हैं, देश के सभी धार्मिक विश्वासों विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों को दी गई संवैधानिक सुरक्षा को ईमानदारी से लागू करते हैं, विशेष रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 तक संविधान के प्रावधानों के संदर्भ में?
  3. क्या संस्थान जो विविध क्षेत्रों में ज्ञान देते हैं और धार्मिक शिक्षा को भी पाठ्यक्रम में शामिल करते हैं, क्या वे “धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा” वाक्यांश के दायरे में आते हैं या केवल वे स्कूल जो विशेष रूप से धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं, क्या वे भारत के संविधान के अनुच्छेद 28 के दायरे में आते हैं?
  4.  क्या मदरसों और अन्य धार्मिक संस्थानों के मान्यता के लिए खेल के मैदान जैसे अनिवार्य प्रावधान की अनुपस्थिति भारत के संविधान के अनुच्छेद 21ए (अनुच्छेद 21 साथ पढ़ें) द्वारा प्रदत्त बच्चों के अधिकारों के साथ संगति में है?
  5. क्या अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्कूल चलाने के लिए सरकारी सहायता प्रदान की जाती है?
  6.  क्या धार्मिक स्कूलों में लड़कियों को आवेदन करने पर प्रतिबंध है और यदि ऐसा है तो क्या ऐसा प्रतिबंध संविधान द्वारा निषिद्ध भेदभाव का कार्य है?

राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। इस मामले की दलील सीनियर एडवोकेट जीके सिंह और एडवोकेट मोहम्मद अली औसाफी ने दी।

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भारत अल्पसंखयकों को संविधान के अनुच्छेद 29 & 30 के तहत अपने शिक्षण और धार्मिक संस्थानों को सुचारु रूप से संचालित करने की स्वतन्त्रता देता है। अपने अल्पसंख्यकों ऐसा दुर्लभ अधिकार देने वाला भारत विश्व में सबसे उदार देशों में से है। उम्मीद तो ये थी कि संविधान के इस दुर्लभ प्रावधान की वजह से अल्पसंख्यकों का भारत की पंथनिरपेक्षता में विश्वास बढ़ेगा। उनका शैक्षणिक स्तर बढ़ेगा। विज्ञान और प्रद्यौगिकी का विकास होगा। राष्ट्रवाद मजबूत होगा। परंतु इससे विपरीत अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति और वातावरण का जन्म हुआ। राष्ट्र विरोधी ताकतों नें इस भारत विरोधी गतिविधियों का अड्डा बना दिया।

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बच्चों में धार्मिक उन्माद का उदय हुआ। देओबंदी जैसे आतंकवादी विचारों का सृजन हुआ। विदेशों से अवैध हथियारों और धन आपूर्ति का श्रोत बना और यहाँ शिक्षा ग्रहण करने वालों को सिर्फ कुरान और किताब पढ़ाई गयी। भारत के निर्माण के बजाय यह विध्वंस साबित हुआ। हमारे अपेक्षाओं के विपरीत भारत के मदरसों से भी पाकिस्तानी मदरसाओं जैसे आतंक के बीज और विचार ही फूटे। शायद इसी से तंग आकर असम सरकार नें अपने राज्य के 600 मदरसों को बंद कर दिया। किसी प्रकार की प्रगतिशीलता में बाधक और राष्ट्र विरोधी विचारों की सहायक ये मदरसें अब संविधान के मूलभूत सिद्धांतों जैसे पंथनिरपेक्षता, समानता और राष्ट्रिय सुरक्षा से टकरा रहें है। माननीय उच्च न्यायालय का प्रश्न इसी संदर्भ में है। साथ ही तुष्टीकरण के लिए राजनीति कर मादरसों को फंड करने वाले राज्यों को भी यह संदेश है कि अब मदरसों को इस तरह की फंड देना संविधान के अनुरूप नहीं है।

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