समान विचारधारा एवं नीतियों वाले ही राजनीति में एक साथ रह पाते हैं, भले ही कोई कितना भी बेहतरीन क्यों न हो; यदि विचार नहीं मिलते तो वो साथ नहीं रह सकते। भारतीय राजनीति में विपक्ष की नीति कुछ ऐसी ही है, क्योंकि जितने दल है, उतने पीएम उम्मीदवार…। एनडीए में शामिल रहने के बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पीएम बनने की रेस में खुद को आगे देखते हैं। इसी कड़ी में अब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार एक पीएम पद के काबिल नेता हैं, लेकिन वो दावेदार नहीं है। हालांकि, नीतीश ने इन सभी बातों को खारिज कर दिया है, लेकिन इससे नीतीश की पीएम बनने की इच्छा एक बार फिर सांकेतिक रूप से जाहिर हो गई है। कुछ इसी तरह तीसरी बार पश्चिम बंगाल की सीएम बनीं विपक्षी खेमे में लोकप्रिय हो रही ममता बनर्जी भी पीएम की रेस में खुद को देखती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये दोनों पीएम पद के सटीक दावेदार हैं भी या नहीं, क्योंकि इनसे भी अनुभवी सीएम आज की स्थिति में कोई है तो वो ओडिशा के सीएम सीएम नवीन पटनायक हैं।
विपक्ष के पीएम उम्मीदवार की कुछ विशेष शर्तें हैं, उम्मीदवार में भी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से लेकर अवसरवादी सोच, दुष्प्रचार का प्रसार, जातिगत राजनीति, राष्ट्रवाद के मुद्दे पर समझौता करने की योग्यताएं अवश्य होनी ही चाहिए। इसके विपरीत नवीन पटनायक इन सारी योग्यताओं में पीछे रह जाते हैं, क्योंकि उनकी छवि स्वच्छ मानी जाती है। ये एक बड़ा कारण है कि पटनायक को पीएम मोदी के खिलाफ प्रोजेक्ट करने के मुद्दे पर विपक्ष कतराता है।
नीतीश की सेक्युलर छवि
बिहार में जब महागठबंधन के चेहरे के तौर पर नीतीश कुमार की जीत हुई, तो उन्हें पीएम उम्मीदवार बनाया जाने लगा, हालांकि गठबंधन ढाई वर्ष भी न चल सका। नीतीश आज भी एनडीए में हैं, लेकिन उनकी पीएम बनने की मंशा आज भी है, और संभव है कि यदि वो एनडीए छोड़ें तो विपक्ष उन्हें हाथों-हाथ ले लेगा। उन्हें पीएम बनने की मंशाएं है, किंतु वो हवा का रुख देखना चाहते हैं।
और पढ़ें सोनिया को ममता भाये, राहुल को है नफरत, अब माँ और बेटे एक-दूसरे के खिलाफ नजर आ रहे
ममता की तुष्टीकरण आधारित राजनीति
कुछ इसी तरह पश्चिम बंगाल की हाल में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को भी विपक्षी एकता का सूत्रधार भी माना जा रहा है। कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष उनके नाम पर चुनाव लड़ने के संकेत दे रहा है। ममता भी अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहती हैं, और 2024 में पीएम मोदी को चुनौती देते हुए पीएम की कुर्सी पर सांकेतिक दावेदार पेश कर चुकी हैं। हालांकि उन्होंने भी नीतीश की तरह कभी खुद के पीएम बनने की बात खुलकर नहीं कही है। ममता और नीतीश दोनों ही यक़ीनन चुनावी राजनीति में वरिष्ठ रहे हैं, लेकिन ये भी स्पष्ट है कि इन दोनों के सामने बीजेपी ने कड़ी चुनौती पेश की है, इसके विपरीत एक मुख्यमंत्री ऐसा भी है, जो इन दोनों से कहीं ज्यादा अनुभवी है, किंतु वो राष्ट्रीय राजनीति में दिलचस्पी तक नहीं रखता है।
जी हां.. हम बात कर रहे हैं ओडिशा के मुख्यमंत्री एवं बीजेडी के प्रमुख नेता नवीन पटनायक की जो पिछले दो दशक से लगातार राज्य के सीएम हैं। कांग्रेस हो या बीजेपी केंद्र की सभी। सरकारों के साथ उनके अच्छे संबंध रहे हैं। एक तरफ जहां नीतीश का करियर ग्राफ 2010 से लगातार गिर रहा है, एवं ममता के सामने बंगाल में ही बीजेपी द्वारा खड़ी की गईं मुश्किल राजनीतिक चुनौतियां हैं; तो दूसरी नवीन पटनायक का राजनीतिक ग्राफ लगातार उत्थान की ओर ही जा रहा है। इसके बावजूद विपक्ष उनको कभी पीएम पद की रेस में खड़ा नहीं करता है, जिसकी कुछ प्रमुख वजहें हैं।
विपक्ष वैसे ही पीएम उम्मीदवार चाहता है जो अवसरवादी हो और सेक्युलर राजनीति कर तुष्टीकरण करता हो। यही खासियत नीतीश और ममता में है। नीतीश कुमार की बात करें तो वो हवा देखकर कभी भी पलटी मार सकते हैं। 2013 में एनडीए से मुस्लिम वोटों के लालच में एवं मोदी विरोध के नाम पर जब एनडीए छोड़ा, तो लोकसभा की दो सीटों पर सिमट गए। 2015 में महागठबंधन के दम पर जीत हुई, लेकिन बीजेपी की तरह आरजेडी के साथ आजादी न मिल सकी, तो आधी रात में पलटी मारकर बीजेपी के साथ दोबारा गठबंधन कर लिया। 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के बिहार की तीसरे नंबर की पार्टी बनने पर नीतीश का राजनीतिक कद फिर से सिमट गया है। ऐसे में वो पुनः एनडीए के विरुद्ध आक्रामक रुख दिखाने लगे हैं। विपक्ष को भी ऐसे पलटी मारने वाले नेता पसंद आते हैं, इसलिए यदि नीतीश आज भी एनडीए छोड़ते हैं, तो उन्हें पुनः विपक्ष पीएम उम्मीदवार प्रोजेक्ट करने में देरी नहीं करेगा।
नीतीश की तरह ही ममता बनर्जी भी हैं, जो कि अराजकतावादी नीतियों से लेकर संस्थाओं पर पर्दे के पीछे से नियंत्रण रखतीं हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण से लेकर हिंदुत्ववादी मुद्दों पर आक्रामक विरोध ममता की पहचान है। ममता भी नीतीश की तरह पलटी मारने में नंबर वन हैं। अटल सरकार में शामिल होने से लेकर मनमोहन सरकार में उनका मंत्री बनना इसका सटीक प्रमाण हैं। ऐसे में कांग्रेस सरीखे दलों को नीतीश की भांति ममता भी पीएम मोदी के सामने खड़ा करने से तनिक भी परहेज नहीं होगा।
विपक्ष के किसी भी चेक लिस्ट में फिट नहीं बैठते पटनायक
इसके विपरीत नवीन पटनायक की बात करें तो वो पीएम की रेस में कभी खुद को देखते ही नहीं है़। इसके बावजूद उनके राजनीतिक करियर को देखें तो उन्होंने मुख्य गठबंधन जब भी किया तो एनडीए से ही किया। उनका राजनीतिक ग्राफ पिछले 2 दशकों से लगातार उत्थान की ओर ही है। उन्हें ओडिशा में एक सशक्त नेता के रूप में देखा जाता है, जिनकी छवि बेहद सकारात्मक है। ऐसे में कांग्रेस समेत विपक्ष ये अच्छे से जानता है कि यदि पटनायक पीएम उम्मीदवार बन भी गए तो भी पीएम मोदी के विरुद्ध उनके हमले शालीन होंगे। पटनायक आज भी राजनीतिक शुचिता को कायम रखे जाने वाले मुख्यमंत्रियों में जाने जाते हैं। इतना ही नहीं, वो विपक्ष का नेतृत्व भी सकारात्मकता के आधार पर ही करेंगे, जो कि कांग्रेस सपा-बसपा टीएमसी जैसी पार्टियों को पसंद नहीं आएगा।
यही कारण है कि विपक्षी दल नीतीश कुमार एवं ममता बनर्जी जैसे आलोचनात्मक नेताओं को तो पीएम मोदी के विरुद्ध खड़ा करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन नवीन पटनायक जैसे साफ छवि के नेता से उन्हें परहेज़ रहता है।