BHU में ‘हिंदू स्टडीज’ के अंतर्गत भारतीय इतिहास में महिलाओं के ‘युद्ध कौशल और रणनीति’ के बारे में पढ़ाया जायेगा

झारकारी बाई से लेकर अवंतीबाई के इतिहास तक, सब पढ़ाया जायेगा....

हिंदू स्टडीज कोर्स

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदू स्टडीज नाम से नया पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स शुरू किया गया है। डिपार्टमेंट ऑफ फिलॉसफी एंड रिलिजन, डिपार्टमेंट ऑफ संस्कृत, डिपार्टमेंट ऑफ एनशिएंट इंडियन हिस्ट्री एंड आर्कियोलॉजी और भारत अध्ययन केंद्र के सहयोग से काशी हिंदू विश्वविद्यालय की आर्ट्स फैकल्टी में हिंदू स्टडीज कोर्स शुरू हुआ है। महत्वपूर्ण यह है कि इसमें प्राचीन भारतीय शास्त्रों में वर्णित युद्धनीति, उन्हें बनाने एवं कार्यान्वित कराने के तरीके, सैनिक विन्यास आदि के अलावा प्राचीन भारत की महिला योद्धाओं के बारे में भी इस हिंदू स्टडीज कोर्स में पढ़ाया जाएगा।

यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है क्योंकि हिंदू स्टडीज कोर्स प्राचीन भारत में स्त्रियों की दशा के संदर्भ में फैलाई गई भ्रामक धारणाओं को भी दूर करेगा एवं भारतीयों को अपनी वास्तविक संस्कृति से परिचित कराएगा। वामपंथी इतिहासकारों द्वारा प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में यह दुष्प्रचार किया गया है कि उस काल में स्त्रियों की स्थिति अधीनस्थ की थी। उन्हें शिक्षा, शासन व अन्य सामाजिक दायित्व से दूर रखा जाता था। जबकि सत्य यह है कि प्राचीन काल में गार्गी, मैत्रेयी, सावित्री आदि विदुषियों के बारे में पढ़ने पर यह पता चलता है कि स्त्रियों का जैसा चित्रण वामपंथी इतिहासकारों द्वारा किया गया है, वास्तव में उनकी स्थिति वैसी नहीं थी। बहुत पीछे न जाकर मुस्लिम शासन की शुरुआत के कुछ शताब्दियों पीछे का इतिहास देखें तो जी हमें महिलाओं की समाज में भागीदारी के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। 8वीं शती में मंडन मिश्र और आदि शंकराचार्य के शास्त्रार्थ में न्यायाधीश की भूमिका में मंडन मिश्र की पत्नी भारती बैठी थीं।

यह तो ज्ञान परंपरा की बात हो गई, युद्ध कौशल में स्त्रियां कितनी आगे थीं इसका प्रमाण तो हमें ब्रिटिश काल तक मिलता है। रानी वेली नाचीयर, रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, रानी अवंतीबाई आदि कई महान महिला सेनानायिकाओं का प्रमाण हमारे सामने है। मध्यकाल में भी रानी दिद्दा से लेकर रानी दुर्गावती तक के प्रमाण हैं, जिन्होंने वीरता पूर्वक मुग़ल सेनाओं से युद्ध किया।

यहां तक की प्रागैतिहासिक काल में भी भारत में महिला योद्धाओं का प्रमाण मिलता है। प्रागैतिहासिक काल उस काल को कहा जाता है जिसका इतिहास केवल पुरातात्विक अवशेषों के आधार पर लिखा जाता है तथा जिसे जानने के लिए कोई समकालीन साहित्यिक कृति मौजूद नहीं होती है। उत्तर प्रदेश के सनौली में हुए हालिया पुरातात्विक सर्वेक्षण में महिला योद्धाओं के कंकाल मिले हैं। ऐसी महिलाओं के कंकाल मिले हैं, जिनके पास तलवार और ढाल रखी मिली है, जैसे किसी योद्धा की मृत्यु के बाद उसके साथ उसके शस्त्रों को भी जमीन में गाड़ा गया है। यह प्रमाण बताता है कि भारत में प्रागैतिहासिक काल से महिला योद्धाओं का चलन था।

धीरे-धीरे मुग़ल और ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में महिलाओं की स्थिति बिगड़ती चली गई। हालांकि, अब महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं। अब तक सैन्य सेवा एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां पर महिलाओं की भागीदारी कम थी किंतु मोदी सरकार की बेटियों को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों के बाद यहां भी महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं।

इसी महीने केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दिया है कि अब महिलाओं को नेशनल डिफेंस एकेडमी में शामिल होने का मौका मिलेगा। भारतीय सेना में आ रहे यह बदलाव वर्षों से मजबूत सरकारी दृढ़ संकल्प की राह देख रहे थे। इसके पहले भी इसी वर्ष गणतंत्र दिवस की परेड में, भावना कांथ, IAF की ओर से फाइटर प्लेन उड़ाने वाली पहली महिला बन गई हैं।

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भावना, अवनी चतुर्वेदी और महाना सिंह के साथ 2016 में भारतीय एयरफोर्स में बतौर पायलट शामिल हुई थीं। एयर फोर्स के अतिरिक्त असम राइफल्स और आइटीबीपी में भी महिला सैनिकों की भर्ती हो रही है। आइटीबीपी ने जुलाई 2018 में 500 महिला सैनिकों की भर्ती की थी जो वर्तमान में भारत चीन बॉर्डर पर तैनात हैं। वहीं असम राइफल्स में कार्यरत महिला सैनिक कश्मीर से लेकर म्यांमार बॉर्डर तक अपनी सेवा दे रही हैं। पिछले वर्ष अगस्त माह में भारतीय थल सेना ने महिला सैनिकों को कश्मीर के सांबा सेक्टर में एलओसी पर तैनात किया है। वहीं भारतीय नौसेना की बात करें तो महिलाओं की भागीदारी के मामले में यह भारतीय थलसेना और वायुसेना से आगे हैं। भारतीय नौसेना में कार्यरत कर्मचारियों और सैनिकों में 6.5 प्रतिशत महिला कर्मी हैं। यह सभी बदलाव महिला सशक्तिकरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और समाज का महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण बदल सकते हैं।

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