आज भारत स्टार्टअप्स का हब बना हुआ है। कई भारतीय कंपनियाँ बेहद कम समय में ही देश विदेश में अपना परचम लहरा चुकी हैं। भारत में मौजूद स्टार्टअप्स का मूल्यांकन अरबों डॉलर में चल रहा है, जिनमें से 50 से अधिक का मूल्यांकन किया गया है और इस साल तो रिकार्डतोड़ 26 यूनिकॉर्न कंपनी दर्ज की गई है। इससे पहले कि आप परेशान हो, बता दें कि यूनिकॉर्न कम्पनियां उनको कहा जाता है जिनका मार्किट कैपिटल एक बिलियन डॉलर (7.5 हजार करोड़) से अधिक होता है। इसी लिस्ट में एक कंपनी है Zetwerk, इस कंपनी ने न सिर्फ सप्लाई चेन को मजबूत किया है बल्कि 3 वर्षों में ही अपने आप को यूनिकॉर्न कंपनी बना दिया।
भारतीय स्टार्टअप कंपनी Zetwerk का इक्विटी वैल्यूएशन ₹7,876 करोड़ हो गया है। इसी के साथ 2018 में शुरू हुई या कंपनी यूनिकॉर्न कंपनी बन चुकी है जिसकी मार्केट वैल्यू एक बिलियन डॉलर से अधिक है। Zetwerk ने 3 वर्षों में ही यह कार्य कर दिखाया है। Zetwerk की सफलता चीन के लिए एक बड़ी समस्या बन सकती है क्योंकि यह कंपनी मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी बनकर उभरी है।
एक ऐसे समय में जब दुनिया भारत को चीन का आर्थिक विकल्प बनाने पर विचार कर रही है, Zetwerk की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। यही कारण है कि कंपनी ने हाल ही में निवेश के जरिये ₹895 करोड़ का फंड जमा किया है। ग्लोबल इन्वेस्टमेंट फर्म D1 एवं अन्य विदेशी फर्मों ने Zetwerk में निवेश किया है। इसके बाद यह कंपनी इस वर्ष की 25वीं कंपनी बन गई है जिसने यूनिकॉर्न कंपनी का दर्जा हासिल कर लिया है।
बता दें कि Zetwerk कंपनी बड़े उद्योगों और मध्यम तथा लघु उद्योगों के बीच सप्लाई चेन को व्यवस्थित करने का काम करती है। बड़े उद्योगों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्हें विश्वसनीय सप्लायर की आवश्यकता होती है, जो समय पर आवश्यक सामान की आपूर्ति सुनिश्चित करें तथा उसकी गुणवत्ता को भी बनाए रखें। उदाहरण के लिए कार मैन्युफैक्चरिंग करने वाली किसी कंपनी को लगातार टायर सप्लाई की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार सिलाई मशीन बनाने वाली कंपनी के लिए सुई की सप्लाई की निरंतरता आवश्यक है।
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बड़ी कंपनियों के सामने समस्या यह होती है कि उन्हें अपनी सप्लाई के लिए लघु और मध्यम उद्योगों पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत में लघु और मध्यम उद्योगों इतने विस्तृत रूप से फैले हुए हैं कि सप्लाई को सुनिश्चित करना एक समस्या बन जाता है। सिलाई मशीन और कार मैन्युफैक्चर के लिए तो यह कार्य फिर भी आसान है लेकिन किसी ऐसी कंपनी के लिए जो पनडुब्बी या हवाई जहाज बना रही हो विनिर्माण के लिए आवश्यक उपकरण की आपूर्ति सुनिश्चित करना एक कठिन काम हो जाता है। प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी को विशेषज्ञ आपूर्तिकर्ता की आवश्यकता होती है। ऐसा नहीं है कि भारत में लघु और छोटे उद्योगों में विशेषज्ञ सप्लायर हैं ही नहीं, समस्या यह है कि भारत का MSME सेक्टर बड़ा और संगठित है। ऐसे में बड़ी कंपनियों के लिए एक्सपर्ट सप्लायर खोजना एक कठिन काम है। यहीं पर Zetwerk काम आती है।
MSME की बात करें तो उन्हें, किसी एक बड़ी कंपनी के बड़े प्रोजेक्ट में बतौर सप्लायर जुड़ने के बाद अगला प्रोजेक्ट खोजने में समस्या होती है। उनके लिए हर बार किसी बड़ी कंपनी से टेंडर लेना उनके बिजनस को चलाने की पहली शर्त है। यदि उन्हें एक के बाद एक टेंडर नहीं मिलेंगे तो उनका व्यापार ठप पड़ जाएगा।
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मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कर रही है मदद
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की इस समस्या का समाधान Zetwerk ने कर दिया है। Zetwerk एक बिजनेस-टू-बिजनेस सॉफ्टवेयर कंपनी है जो बड़ी कंपनियों को विश्वसनीय सहयोगी और छोटे सप्लायर को टेंडर उपलब्ध करवाती है। इतना ही नहीं यह प्लेटफार्म किसी बड़ी कंपनी से उसकी मशीन का डिजाइन लेकर उसी डिजाइन पर मशीन बनवाने का काम करती है। उस डिजाइन को छोटे निर्माताओं को दे दिया जाता है और उनके द्वारा निर्मित मशीन बड़ी कंपनी को सौंप दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में जो भी आवश्यक सामग्री उपलब्ध करवानी होती है, Zetwerk उसकी उपलब्धता को भी सुनिश्चित करता है। साथ ही कंपनी शिपिंग की व्यवस्था भी सुनिश्चित करती है। मात्र 3 वर्षों में ही इस कंपनी ने 10,000 सप्लायर का नेटवर्क तैयार कर लिया है और 15 देशों में 1000 से अधिक प्रोजेक्ट को पूरा कर चुकी है। Zetwerk आटोमोटिव सेक्टर, किचन अप्लायंसेज, टेलीविजन से लेकर हवाई जहाज के उपकरण, मेडिकल डिवाइस, रोबोटिक्स से जुड़े उपकरण बनाने में मदद देती है।
Zetwork की स्थापना अमृत आचार्य, श्रीनाथ रामकृष्णन, विशाल चौधरी और राहुल शर्मा ने किया है। अमृत आचार्य ने आईआईटी मद्रास से पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका से एमबीए किया। जब वह अमेरिका से भारत वापस आए तो उन्होंने अपने पुराने मित्रों से संपर्क किया। इसी दौरान अमृत और रामकृष्ण ने इस कंपनी की रूपरेखा बनाई। बाद में विशाल और राहुल को भी इस प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया।
चीन को नको चने चबवा रहे हैं
ये प्रयास देश के लिए भी फायदेमंद हो रहा है, विशेष रूप से सरकार के आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना के साथ। इन सभी का उद्देश्य घरेलू आपूर्तिकर्ताओं का उपयोग करके देश की विनिर्माण क्षमता को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है। समस्या एक अक्षम आपूर्ति श्रृंखला की थी जिसे Zetwerk जैसी कंपनियां हल कर, भारत को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इसी से चीन को सबसे अधिक समस्या भी होने वाली है। भारत एक वैश्विक मैनुफेक्चुरिंग हब बन रहा और Zetwerk जैसी कंपनी इस मैनुफेक्चुरिंग हब को विश्व के सप्लाई चेन से जोड़ रही हैं।
चीन के बाहर कारखाने स्थापित करने के इच्छुक निर्माता Zetwerk जैसी कंपनी के कारण भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका पहले चीन या पूर्वी एशिया से ही कच्चे माल की खरीदारी करता था। अब वे चीन-प्लस-वन रणनीति अपनाने की सोच रहे हैं क्योंकि पिछले एक साल में कोरोना ने आपूर्ति श्रृंखला को तहस नहस कर दिया है। अब सभी देश भारत और वियतनाम जैसे देश की ओर मुड़ रहे हैं।
आज Zetwerk मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गया है। भारत में 63 मिलियन लघु और छोटे उद्योग हैं जो देश के कुल मैन्युफैक्चरिंग में 33.4% की भागीदारी रखते हैं। इन उद्योगों को बड़े उद्योगों से जोड़ने से एक और तो व्यापक रूप से आर्थिक अवसर उपलब्ध होते रहेंगे। वहीं दूसरी ओर मैन्युफैक्चरिंग की रफ्तार भी तेज होगी। Zetwerk की सफलता चीन को ग्लोबल सप्लाई चैन से बाहर खदेड़ने में बड़ी भूमिका निभाने वाली है।