जी हां!!! आपने बिलकुल सही सुना। 22 मई 2012 को नागपुर के कटोल शहर में दोपहर को आकाश, गर्जनाओं और अग्निशिलाओं से दीप्तिमान हो उठा। परंतु अग्नि समान ही खबर ये फैल गई कि कोई लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ है। मामला शांत हो गया लेकिन जब भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के शोधकर्ता कटोल शहर के पास पहुंचे तो उन्हें करीब 30 उल्कापिंडों के टुकड़े मिले, जिनका वजन लगभग एक किलोग्राम था। ये कोई आम उल्कापिंड नहीं थे बल्कि ये अपने अंदर पृथ्वी की उत्पत्ति के रहस्यों को समाहित किए हुए थे। कटोल शहर से शोधकर्ताओं द्वारा उल्कापिंड के टुकड़ों को सावधानीपूर्वक एकत्रित कर प्रयोगशाला लाया गया।
उल्कापिंड का अध्ययन
प्रारंभिक अध्ययनों से पता चला है कि अंतरिक्ष से गिरा यह चट्टान मुख्य रूप से ओलिवाइन, एक जैतून युक्त हरा खनिज से बना था। हमारी पृथ्वी के ऊपरी मेंटल में ओलिवाइन सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। हमारी पृथ्वी बाहरी परत के अलावा और कई विभिन्न परतों से बनी हुई है। यदि आप लगभग 410 किलोमीटर तक ड्रिल करते हैं तो आप ऊपरी मेंटल तक पहुंच सकते हैं। अब इन उल्कापिंडों के टुकड़ों की संरचना का अध्ययन करके, शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के निचले मेंटल में मौजूद संरचना का खुलासा किया है जो लगभग 660 किमी गहरा है। उल्कापिंड का अध्ययन हमें इस बारे में और भी बता सकता है कि हमारी पृथ्वी मैग्मा महासागर से चट्टानी ग्रह तक कैसे विकसित हुई?
वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने भी कटोल से मिले इस हैरान कर देने वाले उल्कापिंड के एक टुकड़े की जांच की। वैज्ञानिक तब आश्चर्यचकित रह गए जब इस महीने प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल PNAS (पीएनएएस) रिपोर्ट में प्रकाशित ब्रिजमेनाइट नामक खनिज का पहली बार विधिवत उल्लेख किया गया। इस खनिज का नाम 2014 में प्रोफेसर पर्सी डब्ल्यू ब्रिजमैन के नाम पर रखा गया था, जिसे भौतिकी में 1946 का नोबेल पुरस्कार मिला था।
विभिन्न कम्प्यूटेशनल और प्रायोगिक अध्ययनों से पता चला है कि पृथ्वी के निचले हिस्से का लगभग 80% हिस्सा ब्रिजमेनाइट से बना है। यह वहीं ब्रिजमेनाइट खनिज है जिससे यह उल्कापिंड बना हुआ है। इस उल्कापिंड के नमूने का अध्ययन करके वैज्ञानिक यह समझ रहे हैं कि हमारी पृथ्वी के निर्माण के अंतिम चरणों के दौरान ब्रिजमेनाइट कैसे क्रिस्टलीकृत हुआ।
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शोधकर्ता का कथन
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के भूविज्ञान और भूभौतिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ सुजॉय घोष का कहना है कि “कटोल उल्कापिंड एक अनूठा नमूना और भूविज्ञान की दुनिया में एक महत्वपूर्ण खोज है। हालांकि, आज तक दुनिया में मिले अन्य उल्कापिंडों के नमूनों (टेनहम और सूज़ौ नमूने) पर पिछले अध्ययनों ने बहुत अधिक मैग्नीशियम और लोहे के घटकों की उपस्थिति को दिखाया है जो कि पृथ्वी के निचले मेंटल में मौजूद ब्रिजमेनाइट से अलग थे। कटोल ब्रिजमेनाइट की संरचना पिछले तीन दशकों में दुनिया भर में विभिन्न प्रयोगशालाओं में संश्लेषित पृथ्वी उत्पत्ति की परिस्थितियों से निकटता से मेल खाती है। इतनी अत्यधिक निकटता दुर्लभतम है और यह निश्चित रूप से कई रहस्यों से पर्दा उठाएगी।” डाक्टर घोष भी PNAS में प्रकाशित इस शोधपत्र के सह-लेखक हैं।