“स्टॉकहोम सिंड्रोम” पर अवधेश मिश्रा की ‘जुगनू’ नामक एक शानदार भोजपुरी फिल्म आ रही है

यह फिल्म भोजपुरी को फूहड़ता से दूर एक नई ऊंचाई प्रदान कर सकती है!

जुगनू फिल्म पोस्टर

भोजपुरी हिन्दी भाषा की एक विख्यात बोली है। व्याकरण के अभाव में यह बोली अभी तक संवैधानिक भाषा के अधिकार से वंचित है। आंकड़ों को देखें तो यह देश के 25 से 20 करोड़ लोगों के बीच बोली जाती है। समान्यतः भोजपुरी को अन्य भाषा बोलने वाले लोग एक अश्लील भाषा के रूप में जानते हैं। इस पूर्वाग्रह के पीछे कारण भी है। मनोज तिवारी से लेकर खेसारी लाल यादव तक, इन सभी ने भोजपुरी का बाजारीकरण करने के चक्कर में इसका दोहन ही किया है, लेकिन खुशी इस बात की है कि अब इस इंडस्ट्री में अवधेश मिश्रा जैसे लोग बड़े बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं। आपको जानकर खुशी होगी कि अवधेश मिश्रा निर्मित ‘जुगनू’ फिल्म को लोगों द्वारा बहुत प्यार मिल रहा है।

अवधेश मिश्रा, देव सिंह और मनोज टाइगर की आने वाली नई फिल्म ‘जुगनू’ का ट्रेलर You Tube पर रिलीज़ कर दिया गया है। ‘जुगनू’ फिल्म का ट्रेलर दिल को छू देने वाला है और उसे Worldwide Records Bhojpuri के ऑफिशियल चैनल पर रिलीज किया गया है। जुगनू फिल्म की कहानी की बात करें तो ट्रेलर से ऐसा लगता है कि इस फिल्म की कहानी किसी पुराने बदले को लेकर केंद्रित है। बदले की भावना से अवधेश मिश्रा का किरदार एक दबंग मंत्री की बेटी को किडनैप कर लेता है। किडनैप की गयी लड़की की पहचान सुरक्षित रखने के लिए अपहरण करने वाले उसे शहर से दूर किसी पहाड़ी इलाके में जाते हैं। वहाँ जाने के बाद अपहरणकर्ता इस बच्ची को अपनी बेटी की तरह मानने लगता है।

यह स्कॉटहोम सिंड्रोम से प्रेरित फ़िल्म कही जा सकती है जिसमें बुरे नायक को लड़की से प्यार हो सकता है। वह उसे बेटी की तरह मानने लगता है। दर्शकों ने ‘जुगनू’ फिल्म के ट्रेलर को बहुत ज्यादा प्यार दिया है और इसे भोजपुरी सिनेमा में बड़े बदलाव की तरह देख रहे हैं। प्रभात खबर की मानें तो जुगनू फिल्म में एक्टिंग के साथ ही अवधेश मिश्रा ने स्‍टोरी, स्‍क्रीनप्‍ले और डायलॉग लिखे हैं। यहां तक कि फिल्म के डायरेक्‍शन में भी अपना हाथ आजमाया है। अवधेश मिश्रा का कहना है कि ‘जुगनू’ फिल्म एक कलाकार के मन से निकली है। यह मेनस्ट्रीम फिल्म होने के बावजूद मसाला और घिसे-पिटे फॉर्मूले पर नहीं बनी है।

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भोजपुरी सिनेमा और इसका इतिहास

ऐसा नहीं है कि भोजपुरी सिनेमा और संगीत में हमेशा से होठ, लहंगा और ढोढ़ी जैसे शब्दों का बोलबाला था। भिखारी ठाकुर जैसे भोजपुरी भाषा के कवि, नाटककार, गीतकार, अभिनेता, लोक नर्तक, लोक गायक और सामाजिक कार्यकर्ता ने इस भाषा की मजबूत नींव रखी थी। व्यापक रूप से उन्हें भोजपुरी भाषा का सबसे बड़ा लेखक और पूर्वांचल का सबसे लोकप्रिय लोक-लेखक माना जाता है। उन्हें अक्सर “भोजपुरी का शेक्सपियर” और “राय बहादुर” कहा जाता है। उनकी रचनाओं में एक दर्जन से अधिक नाटक, एकालाप, कविताएँ, भजन शामिल हैं, जो लगभग तीन दर्जन पुस्तकों के रूप में छपे हैं। उनकी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं, बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी बेचवा और भाई बिरोध हैं। गबरघिचोर की तुलना अक्सर बर्टोल्ट ब्रेख्त के नाटक ‘द कोकेशियान चाक सर्कल’ से की जाती है। उन्हें बिदेसिया लोक रंगमंच परंपरा के जनक के रूप में भी जाना जाता है। धुरान जैसे बिरहा गायकों ने आजादी बाद से लोगों को झुमाया है। भरत शर्मा, बिष्णु ओझा और गोपाल राय जैसे लोकप्रिय दिग्गजों के गाने टी सीरिज के एलबम से लॉन्च होते थे। उस स्वर्णिम दौर में बिरहा, दुगोला, सरहत जैसे लोक गानों का जलवा हुआ करता था।

पतन का दौर

पतन का दौर 2000 के बाद शुरू हुआ। भोजपुरी भाषा से पहचान बनाने के चक्कर में “ऊपर वाली के चक्कर में लइका खूब पिटाइल बा”, “हाथ में लेके पेप्सी कोला, घट-घट ढारतिया” जैसे गानों का निर्माण मनोज तिवारी ने शुरू किया। एक तरफ इन गानों ने बड़ी आबादी तक भोजपुरी भाषा को पहुंचाने का काम किया तो दूसरी ओर बाद के गायकों ने ऐसे ही गानों का निर्माण शुरू कर दिया। बाद में पवन सिंह, दिनेश लाल यादव निरहुआ, खेसारी यादव, रितेश पांडे जैसे गायक जाति महिमामंडन तथा महिलाओं पर फिल्म को केंद्रित करके पैसे कमाने लगे। ये पतन का दौर अभी भी जारी है जिसमें हम सब एक मूकदर्शक की तरह अश्लीलता का सेवन कर रहे हैं।

अवधेश मिश्रा तारीफ के काबिल है क्योंकि वह मुख्यधारा की बाजारू और अश्लीलता भरी सिनेमा से हटकर ऐसी सिनेमा बना रहे हैं जो एक मुद्दे पर आधारित है। जुगनू फिल्म भोजपुरी बोलने वाली युवा पीढ़ी को भी बढ़िया सामग्री देगी जिससे भाषाई रिश्तों और स्वाभिमान में मजबूती आएगी। उम्मीद करते हैं कि यहां से ही सही, भोजपुरी भाषा का नया दौर शुरू हो।

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