मोदी सरकार ने आखिरकार सबसे बड़े कार्यों में से एक एयर इंडिया के निजीकरण को मूर्त रूप दे दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र की एयरलाइन कई दशकों के बाद अपने मूल मालिक (एयर इंडिया को टाटा समूह द्वारा शुरू किया गया था लेकिन बाद में उसका राष्ट्रीयकरण हो गया था) के पास लौट आया। पिछले कुछ वर्षों से, सरकार उस एयरलाइन का निजीकरण करने के प्रयास में थी, जो हर साल करदाताओं के अरबों डॉलर डूबा रही थी। उसके निजीकरण के रास्ते में हर बार कोई न कोई बाधा आ रही थी। एयर इंडिया के निजीकरण मूल्य की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सरकार को केवल 2,700 करोड़ रुपये नकद में मिले। हालाँकि, इस कदम का आर्थिक प्रतिफल अत्यंत लघु रहा लेकिन इसने निजीकरण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाया। अब मोदी सरकार का अगला बड़ा कदम सरकारी दूरसंचार सेवा प्रदाता BSNL का निजीकरण होना चाहिए।
लगातार घाटे में है BSNL
BSNL ने कुछ दिनों पहले 4जी सेवा का परीक्षण किया था, जब दुनिया भर के साथ-साथ भारत में भी ऑपरेटर 5जी की ओर बढ़ रहे थे। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को हर साल अरबों डॉलर का घाटा होता है। वित्त वर्ष 20 में कंपनी को 15,499.58 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2020-21 में 7,441 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। कंपनी के संचालन से राजस्व 2020-21 में 1.6 प्रतिशत घटकर 18,595.12 करोड़ रुपये रह गया, जबकि 2019-20 में यह 18,906.56 करोड़ रुपये था। वित्त वर्ष 2021 के दौरान BSNL की कुल संपत्ति घटकर 51,686.8 करोड़ रुपये हो गई, जो पिछले वर्ष 59,139.82 करोड़ रुपये थी। कंपनी का बकाया कर्ज वित्त वर्ष 2020-21 में बढ़कर 27,033.6 करोड़ रुपये हो गया, जो वित्त वर्ष 2019-20 में 21,674.74 करोड़ रुपये था।
‘नवरत्न’ से एक बीमार PSU तक का सफर
2019 में कोटक इंस्टीट्यूशनल सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि कंपनी का संचित कर्ज 90,000 करोड़ रुपये से अधिक है। ब्रोकरेज ने एक नोट में कहा, “BSNL की वित्तीय स्थिति लंबे समय से खराब हो रही है, इसमें कंपनी पिछले 14 वर्षों में ‘नवरत्न’ से एक बीमार PSU घोषित हो गई है।” सार्वजनिक क्षेत्र की यह यह कंपनी हर साल करदाताओं से अरबों डॉलर का पैसा लेती है, जैसे एयर इंडिया करती थी। कंपनी पर इतना बड़ा कर्ज है कि वह हर साल ब्याज भुगतान में एक अरब डॉलर से अधिक का खर्च करती है जबकि इसका कुल राजस्व दो अरब डॉलर से थोड़ा कम है। अगर यह एक निजी कंपनी होती, तो इसका अधिकांश राजस्व ऋण चुकाने में ही चला जाता और परिचालन व्यय के लिए पैसे नहीं होते तथा यह बहुत पहले बंद हो जाता। हालांकि, इस तथ्य को देखते हुए कि देश (भारत सरकार) में सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली प्राधिकरण के खजाने तक इसकी पहुंच है, यह जीवित बचा हुआ है।
BSNL के प्रबंधन का तर्क है कि यह अब ब्याज भुगतान के अलावा एक स्थिर संगठन है। अध्यक्ष प्रवीण के पुरवार ने कहा है- “आज, BSNL एक परिचालन रूप से स्थिर संगठन है और सही रास्ते पर है। चुनौती केवल कर्ज पर ब्याज का भुगतान है जो हर महीने 200 करोड़ रुपये से 1,000 रुपये तक आता है।”
इस तथ्य को देखते हुए कि यह एक सक्रिय रूप से स्थिर संगठन बन गया है, मोदी सरकार को इसे जल्द से जल्द निजी बनाना चाहिए। BSNL, MTNL के साथ मिलकर एक बड़ी इकाई है और इसके पास अभी भी 10 करोड़ से अधिक का ग्राहक आधार है। BSNL का निजीकरण दूरसंचार क्षेत्र में एक मजबूत चौथा निजी खिलाड़ी को मैदान में लाएगा और इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को मजबूत करेगा जो एकाधिकार की ओर बढ़ रहा है।