“आपने नाक काटी, लंका जलाई, लोग आपको क्यों पूजते हैं?” भवई ट्रेलर के संवाद भड़काऊ से अधिक बचकाने हैं

भवई ट्रेलर

जल्द ही सिनेमाघरों में रौनक लौटने वाली है और 22 अक्टूबर को Pen India Limited की द्विभाषीय फिल्म ‘भवई’ रिलीज़ होगी। यह प्रसिद्ध गुजराती अभिनेता प्रतीक गांधी की प्रथम हिन्दी फिल्म होगी, जिन्होंने हर्षद मेहता जैसे घोटालेबाज पर आधारित वेब सीरीज ‘स्कैम 1992’ से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था। लेकिन भवई का ट्रेलर प्रतीक गांधी के अभिनय के लिए कम और इसके कंटेंट को लेकर ज्यादा विवादों के घेरे में है। भवई का ट्रेलर एक प्रकार से दुष्ट, पापी और वासना के अंधे रावण के महिमामंडन के कारण लोगों के निशाने पर है। भवई के ट्रेलर में उसी रावण का महिमामंडन किया गया है जिसने कई तपस्वियों की पत्नी यहां तक कि अपनी होने वाली बहू का भी बलात्कार किया।

असल में भवई के ट्रेलर के विरोध में कई लोग सोशल मीडिया पर अपना आक्रोश जता चुके हैं, जिसमें कुछ लोग ‘#अरेस्ट प्रतीक गांधी’ यानि प्रतीक गांधी को हिरासत में लो तक ट्रेंड करा चुके हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये फिल्म कथित तौर पर सनातन संस्कृति का अपमान करती है।

वो कैसे? असल में भवई के ट्रेलर में कई ऐसे संवाद हैं, जिनसे फिल्म के लेखकों एवं निर्देशक की नीयत पर सवाल खड़े होते है। फिल्म का एक संवाद है, “आपने हमारी बहन की नाक काटी, तो हमने आपकी स्त्री का अनादर किया लेकिन नाक नहीं काटी। हमारे भाई बेटे शहीद हुए, हमारी लंका जली, फिर भी लोग आपको क्यों पूजते हैं?” इसके जवाब में श्री राम का किरदार निभाने वाले व्यक्ति का उत्तर बेहद बचकाना होता है, “क्योंकि हम भगवान है।”

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रावण लीला से भवई तक की यात्रा

असल में हार्दिक गज्जर द्वारा निर्देशित एवं रचित ‘भवई’ का मूल नाम पहले ‘रावण लीला’ था, परंतु इसके भड़काऊ संवाद देखकर दर्शक काफी आक्रोशित हुए और उन्होंने इसके विरुद्ध ट्विटर पर काफी आक्रोश जताया। प्रतीक गांधी ट्विटर पर काफी कोपभाजन के शिकार भी बने और फलस्वरूप फिल्म का नाम ‘भवई’ करना पड़ा। यदि आप भवई के ट्रेलर की मूल कथा पर ध्यान दे तो ये भी बेहद बचकानी है। एक व्यक्ति, जो रामलीला में राम बनना चाहता है, रावण बनने को विवश होता है और इसी कारण सीता से उसके संगम पर समाज उसके विरुद्ध हो जाता है। सवाल यह भी उठता है कि आखिर क्या सोचकर इस फिल्म के लेखक ने ये पटकथा लिखी है।

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समस्या यहीं तक सीमित नहीं है। पिछले कई वर्षों से ऐसा सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है कि रावण श्रीराम से कहीं अधिक योग्य थे। वॉट्सएप पर जाने कितने स्टेटस आते होंगे कि राम ने रावण का संहार किया परंतु सीता इसलिए पवित्र रही क्योंकि रावण ने उन्हें हाथ नहीं लगाया। इससे रावण की ऐसी छवि पेश करने का प्रयास किया जाता है कि वह बेहद आदर्शवादी व्यक्ति था, जिसने अपनी बहन के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए सीता का हरण किया था। लेकिन अगर रावण की कुंडली खंगाले तो पाएंगे कि उससे बड़ा दुष्ट और पापी आज तक इस त्रिलोक में कोई हुआ ही नहीं।

आपको बता दें जब रावण ने माधव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या में लगी वेदवती से छेड़छाड़ का प्रयास किया, तो वेदवती ने उसे शाप दिया कि उसे और उसके परिवार को नारायण बर्बाद कर देंगे। चूँकि, रावण ब्रह्मा के वरदान के कारण देवताओं से डरता नहीं था, उसने मारुट्टा जंगल के एक तपस्वी ऋतुवर्मन की पत्नी मदनमंजरी का बलात्कार तक किया, तब उसे श्राप मिला कि उसकी मृत्य का कारण एक मानव बनेगा।

अंत में, उसने अपनी होने वाली बहू रंभा का बलात्कार किया, जो उसके भतीजे ‘नलकुबारा’ के पुत्र कुबेर की पत्नी थी। इस पर क्रोधित होकर नलकुबारा ने रावण को श्राप दिया कि “तुम, जो वासना से अंधे हो गए हो, उस स्त्री को मत छुओ जो तुम्हारे प्रेम का प्रतिफल नहीं देती। यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारा सिर सात टुकड़ों में बंट जाएगा।” उसी श्राप के बाद देवी सीता और कई अन्य पवित्र महिलाओं को रावण छू नहीं पाया। यह उसकी महानता नहीं अपितु उसका भय था।

लेकिन सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल होती रहती हैं जिसमें रावण को श्रेष्ठ और श्रीराम को हीन सिद्ध करने के भरसक प्रयास किये जाते हैं। विश्वास नहीं होता तो आप इन्हीं दोनों वीडियो को देख लीजिए।

 

 मणिरत्नम की फिल्म ने भी किया था महिमामंडन

लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है। 2010 में मणिरत्नम की द्विभाषीय फिल्म ‘रावण’ ने तो रावण के महिमामंडन में चार चांद लगा दिए थे। रावण को नक्सलवाद से जोड़ते हुए उसे ऐसे महिमामण्डित किया गया, जैसे वह कोई क्रांतिकारी हो, जो अपने परिवार के सम्मान के लिए शासन से भी लड़ पड़े। उस फिल्म में श्रीराम को एक कर्मठ परंतु दुर्बुद्धि व्यक्ति के रूप में दिखाया गया, जो आवश्यकता पड़ने पर अपनी पत्नी पर अत्याचार भी कर सके। श्रीराम के चरित्र के ऊपर वामपंथी जो भी कीचड़ उछालते हैं, वो सभी तत्व इस फिल्म में भरपूर थे, ‘भवई’ का भी कंटेट कुछ वैसा ही है।

असल समस्या उन लोगों के साथ है, जिन्हें लगता है कि वे सनातन शास्त्रों पर कीचड़ उछालते रहेंगे और लोग अपमान का घूंट पीकर रह जाएंगे। लेकिन जब जन विद्रोह के कारण ‘गोलियों की रासलीला रामलीला’ तक को उत्तर प्रदेश में संशोधित नाम के साथ रिलीज़ होना पड़ा, तो फिर ‘भवई’ किस खेत की मूली है। जिस प्रकार से जनता जागृत हो रही है, एक दिन वो भी आएगा, जब देश में श्री राम पर कीचड़ उछालने का ख्याल रखने वालों को ही जनता तिरस्कार कर उन्हें उनकी हैसियत दिखा देगी।

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