प्रतिबंध की तलवार लटकते ही इमरान खान बाइडन से फ़ोन कॉल की भीख मांग रहे

कुरैशी अब अपना गुस्सा पाकिस्तानी दूतावास पर निकाल रहे!

पाकिस्तान अमेरिका

PC: Dawn

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान को दुनिया में अपनी औकात के बारे में पता चल गया है। चार दिन की चांदनी के बाद फिर से पाकिस्तान को कटोरा लेकर चलना पड़ रहा है। खैर, पाकिस्तान का अति उत्साही व्यवहार उसको ले डूबेगा, यह तो सबको मालूम था लेकिन इस तरह सबके सामने वह अपनी हर स्वीकार कर लेगा, इसकी अपेक्षा शायद ही किसी ने की थी। चीन से दोस्‍ती के कारण पाकिस्‍तान अब अमेरिका से दूर होता जा रहा है।

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अमेरिका में अपने देश के राजदूत असद मजीद को दोनों देशों के बीच संचार की कमी को लेकर नाराजगी जताई है. CNN-News18 के पास पाकिस्‍तान के विदेश मंत्री की वो चिट्ठी हाथ लगी है, जो बताती है कि पाकिस्‍तान अमेरिका से दूर होकर किस तरह बेचैन है।

हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से एक चिट्ठी लिखी गई है और इस पत्र में पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी अमेरिका में अपने देश के राजदूत असद मजीद को दोनों देशों के बीच संचार की कमी को लेकर नाराजगी जताई है। उन्होंने अपने राजदूतों को जुगाड़ लगाने के लिए भी कहा है।

27 सितंबर, 2021 को पत्राचार में कुरैशी ने कहा कि ‘दूतावास दोनों देशों के बीच सार्थक संपर्क स्थापित करने में असमर्थ रहा है। कुरेशी का मानना है कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान द्वारा निभाई गई “महत्वपूर्ण” भूमिका के बावजूद, वाशिंगटन इस्लामाबाद के प्रति उदासीन रहा है।’

 

कुरैशी ने राजदूत से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि “सभी राजनयिक मंचों पर पाकिस्तान की रणनीतिक प्रासंगिकता की गारंटी के लिए पर्याप्त राजनयिक कदम उठाए जाएं”।

दरअसल, पाकिस्तान के बाइडन से बात करने के प्रयास फिर से असफल हुए हैं। अमेरिका में पाकिस्तान ने पूरे प्रो-पाकिस्तान लॉबी को अमेरिकी प्रशासन के पीछे लगा दिया ताकि बाइडन पाकिस्तान को फोन करें, परंतु तालिबान के साथ पाकिस्तान के गठजोड़ उसके इस प्रयास को बूरी तरह विफल कर दिया। इससे पाकिस्तान हताश हो गया है और अब हार मानकर कुरैशी पत्र लिखने को विवश हो गये हैं।

क्या अमेरिका को यह लगता है कि पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के पीछे था?

यह घटनाक्रम तब सामने आया है जब एक हफ्ते पहले अमेरिकी सीनेटरों के एक समूह ने एक विधेयक का समर्थन किया था जिसमें तालिबान की वापसी में पाकिस्तान की भूमिका की जांच की मांग की गई थी, जिसमें समूह की मदद करने वाली किसी भी संस्था के लिए प्रतिबंधों की सिफारिश की गई थी। गौरतलब है कि ऐसे ही कारणों की वजह से कनाडा और भारत जैसे देश भी पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं।

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जवाब में पाकिस्तान ने बार-बार इन आरोपों से इनकार किया है कि उसने तालिबान को सामग्री, साजो-सामान और खुफिया सहायता प्रदान की है। हालांकि, पाकिस्तान के कुख्यात इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के प्रमुख का काबुल में आगमन ऐसे समय में हुआ जब तालिबान, एक कार्यवाहक अफगान सरकार बनाने की कोशिश कर रहा था, जो इस समूह के साथ इस्लामाबाद के सम्बंध का प्रमाण माना जा सकता है। पाकिस्तान ने अमेरिका के इस मोर्चे पर जवाब देते हुए हाल ही में ISI चीफ को हटा दिया है।

पाकिस्तान और चीन की जुगलबंदी तो कारण नहीं?

हाल के वर्षों में पाकिस्तान चीन के करीब बढ़ रहा है क्योंकि बीजिंग इस्लामाबाद की आर्थिक योजनाओं के लिए एक शक्तिशाली भागीदार के रूप में उभर रहा है और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ पाकिस्तान के सम्बंध चाकू की नोक पर हैं।

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चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर के निर्माण से लेकर अबतक कई परियोजनाओं में दोनों राष्ट्र आगे बढ़ रहे थे लेकिन चीन में आये आर्थिक संकट के बाद यह आर्थिक सम्बन्ध (जिसमें पाकिस्तान को ज्यादा लाभ होता था) खतरे में आ गए हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से लेकर अमेरिका में अपने देश के राजदूत असद मजीद खान तक, सब चाहते हैं कि अमेरिका से भीख मिलना दुबारा से शुरू किया जाए। इसके लिए पाकिस्तान हर मंच से अमेरिका को मनाने के प्रयास कर रहा है, कभी फोन कभी सोशल मीडिया, कभी अंतर्राष्ट्रीय मंच से परंतु अमेरिका उसे भाव नहीं दे रहा।

पाकिस्तान भारत से मुकाबले की बात करता है। उसे पहले यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान ने आतंक को पनाह देकर और भारत से तनाव रख अपने लिए गढ्ढा खोद लिया है। आज प्रो पाकिस्तानी होने के बावजूद बाइडन को पाकिस्तान को इग्नोर करना पड़ रहा।

इस समय जैसी स्थिति बनी हुई है, बाइडन के लिए यह कठिन है कि वह पाकिस्तान के साथ जाएं। एक तरफ चीन है, जो बड़ी चुनौती है, उसका सहयोगी पाकिस्तान है, दूसरी तरफ भारतीय हित भी है। हाल ही में हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्नेहा दुबे ने जैसे पाकिस्तान और आतंकवाद के सम्बन्धों को उजागर किया था उसके बाद कोई भी ग्राउंड नहीं बचता है कि अमेरिका की उदारवादी लॉबी पाकिस्तान के सहयोग की बात कर सके।

ऐसे परिस्थितियों में यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान ने अपने आप को इस स्थिति में ला दिया है कि वह फोन कॉल की भीख मांगने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकता है।

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