त्रिपुरा में कट्टरपंथियों की हेकड़ी को धूल में मिलाने हेतु तैयार हैं बिप्लब कुमार देब

2002 की भांति पूरे देश को दंगों की आग में झोंकने की व्यवस्था कर चुकी है ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’, और त्रिपुरा में जो हिंसा हुई, ये उसी का प्रत्यक्ष प्रमाण है। मस्जिद जलाए जाने की झूठी अफवाहों के पीछे कट्टरपंथी मुसलमानों ने त्रिपुरा में जो उत्पात मचाया, और इसे जिस प्रकार से लिबरल ब्रिगेड ने इसे सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया, उसके विरुद्ध अब बिप्लब कुमार देब के नेतृत्व में त्रिपुरा प्रशासन ने एकजुट होकर जबरदस्त एक्शन लेने का निर्णय किया है, और किसी भी उग्रवादी को नहीं छोड़ने की बात कही है।

असल में त्रिपुरा के पानीसागर नामक एक क्षेत्र में विश्व हिन्दू परिषद ने एक शांतिपूर्ण रैली निकाली। इसका प्रमुख उद्देश्य था बांग्लादेश में हिंदुओं पर हाल ही में हुए अत्याचारों का विरोध करना। लेकिन ऐसी रैली हो और अराजक तत्व अपना काम न करे, ऐसा हो सकता है क्या? अफवाह फैला दी गई कि त्रिपुरा में मस्जिदें जलाई जा रही हैं, जिसके पीछे कट्टरपंथी मुसलमानों ने त्रिपुरा में जमकर उत्पात मचाया, लेकिन जब प्रत्युत्तर में त्रिपुरा की जनता ने उन्हेx सबक सिखाया, तो सोशल मीडिया पर #SaveTripuraMuslims जैसे हास्यास्पद ट्रेंड होने लगे।

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देशद्रोहियों के विरुद्ध होगी कड़ी से कड़ी कार्रवाई

इस बीच त्रिपुरा पुलिस ने भी अपने रुख से स्पष्ट कर दिया कि यह गुंडागर्दी और कहीं भी चले, त्रिपुरा में नहीं चलने वलु। उन्होंने मस्जिद के जलाए जलाने का पुरजोर खंडन किया और यह भी कहा कि ऐसी अफवाह फैलाने वाले देशद्रोहियों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। त्रिपुरा के कानून व्यवस्था को संभालने वाले IG सौरभ त्रिपाठी ने दो टूक बयान में कहा, “पानीसागर में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान कोई मस्जिद नहीं जली थी। ट्विटर और फ़ेसबुक पर देशद्रोही और शरारती तत्व जानबूझकर झूठी अफवाहें फैला रहे हैं। जो वीडियो और फोटो सर्कुलेट की जा रही हैं, उसका मूल घटना से कोई वास्ता ही नहीं है”।

त्रिपुरा में ‘खेला न होबे’ 

इससे पहले भी त्रिपुरा में अराजकता फैलाने के अनेकों प्रयास हो चुके हैं, और यह पहला प्रयास नहीं है। इससे पहले भी कई बार राजनीतिक स्तर पर ही सही परंतु त्रिपुरा का राजनीतिक माहौल बिगाड़ने का प्रयास विपक्षी सीपीआई [एम] एवं तृणमूल काँग्रेस कर चुकी है। अभी हाल ही में सुष्मिता देव के ऊपर कथित तौर पर हमला हुआ था, जिसके पीछे उन्होंने खूब हो हल्ला मचाया था।

इसी पर TFI ने अपने विश्लेषणात्मक पोस्ट में भी बताया था,

“लेकिन वो कहते हैं न, ताली एक हाथ से नहीं बजती।” यदि सुष्मिता देव पर हमला हुआ था, तो उन्हें इतना स्पष्ट विश्वास कैसे था कि वे भाजपा के ही कार्यकर्ता थे, और किसी पार्टी के नहीं? क्या तृणमूल काँग्रेस ने बंगाल के साथ-साथ पूरे देश की जनता को बेवकूफ समझ रखा है? क्या देश को आभास नहीं है कि तृणमूल कांग्रेस अपने राज्य में किस प्रकार से तानाशाही और आतंकवाद को खुलकर बढ़ावा देती आई है?

इससे पहले भी तृणमूल काँग्रेस त्रिपुरा में ‘जनाधार’ बढ़ाने के नाम पर तुष्टीकरण की राजनीति को बढ़ावा देती आई है। डायरेक्ट एक्शन डे की वर्षगांठ यानि 16 अगस्त के अवसर पर इनके गुंडों ने ‘खेला होबे दिवस’ भी मनाया। जब स्थानीय जनता और भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध किया, तो तृणमूल कार्यकर्ताओं ने स्वभाव अनुसार गुंडई का परिचय दिया। परंतु जब त्रिपुरा की जनता ने एकजुटता का परिचय देते हुए इन्हें जमकर कूटा, तो ये शिष्टाचार और आचरण की दुहाई देने लगे l

ऐसे में इतना तो स्पष्ट है कि कट्टरपंथी मुसलमानों को तगड़ा सबक सिखाने के लिए बिप्लब कुमार देब ने कमर कस ली है, और उन्होंने कहीं न कहीं हिमन्ता बिस्वा सरमा और योगी आदित्यनाथ के तौर तरीकों, दोनों से ही सीख ली है। अब ऐसे में तो कट्टरपंथी मुसलमानों की खैर नहीं।

 

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