कोचिंग अब पूर्ण विकसित उद्योग में बदल गया है, अब सरकार इनकी आय चोरी पर लगाम लगाने जा रही

भारत में कोचिंग इंस्टीट्यूट एक बड़ा बिजनस सेक्टर बनकर सामने आया है। वर्तमान में सभी छोटे बड़े शहरों में सैकड़ों छोटे बड़े कोचिंग संस्थान कार्य कर रहे हैं। पटना, वाराणसी, लखनऊ, इलाहाबाद, दिल्ली, कोटा आदि बड़े कोचिंग हब बन चुके हैं। हालांकि, एक समय ऐसा था कि कोचिंग-ट्यूशन करने को सामाजिक अपमान समझा जाता था क्योंकि ऐसा करने वाले बच्चों को कमजोर समझा जाता था, लेकिन समय के साथ दौर बदल गया है। आज कोचिंग विद्यालयी शिक्षा की तरह ही एक आवश्यकता बन गया है। कोचिंग क्लास विद्यार्थियों की जरूरत के साथी एक फ़ैशन बन चुका है।

ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या शिक्षा क्षेत्र पर टैक्स लगाया जाना चाहिए या छूट दी जानी चाहिए? सरकार ने जब कोचिंग की आय पर टैक्स लगाने का निर्णय लिया तो इसका विरोध भी देखने को मिला, किन्तु क्या कारण हैं कि सरकार ने कोचिंग सेंटर को इनकम टैक्स के दायरे में रखने का निर्णय लिया? इसका जवाब महाराष्ट्र अथॉरिटी फॉर एडवांस रुलिंग्स (AAR) के एक निर्णय से मिला जिसमें उसने कहा कोई भी संस्थान जो बच्चों को शिक्षा दे रहे हों, उन्हें GST में छूट है, लेकिन उसकी परिभाषा स्पष्ट है और इसके दायरे में कोचिंग सेंटर नहीं हैं। हालांकि, पहले ऐसा नहीं था।

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कोचिंग संस्थान GST के दायरे में क्यों आते हैं

2020 में महाराष्ट्र की Maharashtra Authority for Advance Rulings (AAR) ने एक सुनवाई के दौरान यह निर्णय दिया कि कोचिंग संस्थान GST के दायरे में आते हैं। मुम्बई के बोरीवली स्थित शुक्ला क्लासेज के मालिक राजेन्द्र शुक्ला ने अपील दायर की थी कि क्योंकि कोचिंग संस्थान शिक्षा से जुड़े संस्थान हैं इसलिए उन्हें GST के दायरे के बाहर होना चाहिए। किन्तु AAR ने अपने निर्णय में पुनः स्पष्ट किया कि कौन से शिक्षण संस्थानों को GST के बाहर रखा जा सकता है। इनमें केवल वही संस्थान आते हैं जो किसी ऐसे कोर्स की पढ़ाई करवा रहे हों जो सरकार द्वारा निर्धारित हैं और जिसकी परीक्षा किसी कानून के अनुसार आयोजित की जाती है। जैसे कोई शिक्षण संस्थान यदि सरकारी विभाग द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार दसवीं तक या 12वीं तक कि पढ़ाई करवा रहा है, तो उसे GST से छूट मिल जाएगी, लेकिन कोचिंग सेंटर पूरी विद्यालयी शिक्षा नहीं देते, बल्कि केवल 10वीं अथवा 12वीं की परीक्षा की तैयारी करवाते हैं। इसलिए उन्हें GST के दायरे में रखा गया और उनपर 18% GST लगाई गई।

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कोचिंग इंडस्ट्री में इनकम टैक्स की आवश्यकता

एक अनुमान के अनुसार 2016 तक भारत में कोचिंग इंडस्ट्री का व्यापार 40 बिलियन डॉलर्स का था। यह बाजार 35% की वार्षिक दर से बढ़ रहा है। कोचिंग संस्थाओं को जब GST के दायरे में लाया गया तो जीएसटी भुगतान को बोझ अभिभावकों पर पड़ गया। ऐसे में सरकार ने कोचिंग संस्थानों की आय को इनकम टैक्स के अंतर्गत रखने का निर्णय किया। Economic times की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान नियमों के अनुसार प्रत्येक कोचिंग संस्थान को विद्यार्थियों की जानकारी के संबंध में एक रजिस्टर रखना अनिवार्य है। इसके साथ ही कोचिंग संस्थान के लिए जरूरी है कि वह अपनी पूरी आय एक ही बैंक अकाउंट में जमा करवाएं, इसी बैंक अकाउंट से कोचिंग से संबंधित सभी भुगतान किए जाएं। सरकार ने 2,50,000 मासिक अथवा 25 लाख वार्षिक आय वाले संस्थाओं के लिए रजिस्टर रखना अनिवार्य कर दिया है।

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कैसे बढ़ा कोचिंग का व्यापार

1970 के दशक के अंत तक भारत में कोचिंग संस्थाओं का चलन नहीं था, किंतु इंदिरा गांधी की सरकार में भारत ने समाजवाद का मार्ग पूरी तरह से अपना लिया। नेहरू शासन के दौरान भी भारत पर समाजवाद का प्रभाव था, किंतु इंदिरा गांधी के दौर में इसे फिल्मों, साहित्य, राजनीति, शिक्षा सभी माध्यमों से पूरे देश पर थोप दिया गया। समाजवादी विचारधारा के प्रभाव में सरकारी नौकरियों के प्रति लोगों की आसक्ति बढ़ गई। 1980 के दशक में जब महत्वाकांक्षी दलित एवं OBC नेताओं का उदय हुआ, तो इन बिरादरी में भी सरकारी नौकरी को लेकर चाह बढ़ने लगी।

1990 के समय जब मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया और ओबीसी समुदाय को आरक्षण मिला उसके बाद तो सिविल सर्विसेज की तैयारी करवाने वाले कोचिंग संस्थाओं की बाढ़ आ गई।

2000 के आस पास देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के नेतृत्व में भारत का तेजी से कायाकल्प हो रहा था। इसी समय भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ ही नई टेलीकॉम नीति लागू की गई थी। इस समय भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नति पर विशेष जोर दिया जा रहा था, साथ ही विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया जा रहा था। इन सब के कारण इंजीनियरिंग करने के इच्छुक विद्यार्थियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी और उसी तेजी से इंजीनियरिंग के कोचिंग संस्थाओं की संख्या भी बढ़ती गई।

कोचिंग-ई लर्निंग भारत के सबसे बड़े सेक्टर हैं

कोचिंग संस्थाओं के व्यापार को टैक्स के दायरे में लाना बहुत ही आवश्यक था और अब उन्हें अपना सारा हिसाब एक ही बैंक तक सीमित रखनी होगी। आज लगभग हर अभिभावक यह महसूस करता है कि कोचिंग संस्थाओं की फीस उनके द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही शिक्षा के अनुपात में बहुत अधिक होती है। भारत जैसे देश में शिक्षा को व्यापार समझा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है किंतु सब जबकि शिक्षा वास्तव में व्यापार बन हो चुका है, ऐसे में सरकार के पास कमर्शियल शैक्षणिक संस्थाओं पर टैक्स लगाने का ना केवल पूरा अधिकार है, बल्कि यह समय की आवश्यकता भी है।

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