असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए PhD अब अनिवार्य नहीं

शैक्षणिक क्षेत्र में पहले से मौजूद फेवरेटिज्म, परिवारवाद, वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण विद्यार्थियों के साथ होने वाले भेदभाव पर लगेगा लगाम!

असिस्टेंट प्रोफेसर phd

मोदी सरकार ने PhD माफिया के ऊपर बड़ी कार्यवाही करते हुए PhD को असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए अनिवार्य शर्त पर रोक लगाने का निर्णय किया है। 2018 में मोदी सरकार ने निर्णय किया था कि विश्वविद्यालय डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए अभ्यर्थियों के पास PhD की डिग्री होनी आवश्यक थी। जब तक एक अभ्यर्थी अपनी थीसिस जमा करके अपनी PhD समाप्त नहीं कर लेता तब तक वह असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के लिए योग्य नहीं माना जाता था।

यह निर्णय UGC की संतुति पर लिया था जो उच्च शिक्षा से जुड़ी सबसे बड़ी नियामक संस्था है। UGC ने 2021-22 से इसे लागू करने का आदेश दिया था। यूजीसी ने यह निर्णय उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के स्तर को ऊंचा उठाने के उद्देश्य से लिया था किंतु इसके कारण शैक्षणिक क्षेत्र में पहले से मौजूद फेवरेटिज्म, परिवारवाद, वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण विद्यार्थियों के साथ होने वाले भेदभाव आदि के बढ़ने की संभावना बढ़ गई थी। इस कारण अब मोदी सरकार ने निर्णय लिया है कि वह अपने इस फैसले पर 1 वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा देगी। ऐसे में सरकार को निर्णय पर पुनर्विचार के लिए पर्याप्त समय भी मिल जाएगा।

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शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस संदर्भ में जानकारी देते हुए बताया कि अगले 1 वर्ष तक वे लोग भी असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए योग्य माने जाएंगे जिन्होंने अपनी PhD पूरी नहीं की हो किंतु UGC द्वारा आयोजित होने वाले NET एग्जाम को उत्तीर्ण किया हो।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि भारत में उच्च शिक्षा में किस प्रकार का भ्रष्टाचार मौजूद है। जब कोई व्यक्ति शिक्षक बन जाता है तो उसका पहला प्रयास यही होता है कि वह अपने प्रिय लोगों को उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में नियुक्त करवाए भले ही वह उन पदों के योग्य हो अथवा नहीं। इसमें सबसे बड़े पैमाने पर धांधली PhD को लेकर ही करवाई जाती है।

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भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों और सम्मानित विश्वविद्यालयों में ऐसे प्रोफेसर मौजूद हैं, जो विद्यार्थियों को PhD करवाने का सपना दिखाकर उनका मानसिक और शारीरिक शोषण तक कर लेते हैं। यह दुखद सत्य है कि शैक्षणिक क्षेत्र में विशेष रूप से उच्च शिक्षा संस्थाओं के अंदर महिलाओं को अपना स्थान बनाने के लिए अपने सम्मान से भी समझौता करना पड़ जाता है।

वहीं दूसरी ओर प्रोफेसर PhD के लिए योग्यता के ऊपर वैचारिक प्रतिबद्धताओं को तरजीह देते हैं। यदि आप किसी प्रोफेसर की विचारधारा से सहमत हैं, तो आप योग्य होने के बाद भी शोधार्थी के रूप में चयनित नहीं हो सकेंगे। JNU, DU, AMU, BHU सभी जगहों पर PhD के लिए होने वाले चयन में धांधली होती रहती है, लेकिन विद्यार्थियों द्वारा इसका विरोध नहीं किया जाता क्योंकि उन्हें अपने भविष्य की चिंता होती है।

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यही कारण है कि उच्च शिक्षण संस्थाओं में PhD माफिया तंत्र इतना मजबूत है, जिसकी तुलना बॉलीवुड के माफिया तंत्र से की जा सकती है। अंतर बस इतना है कि यह मुद्दा सामाजिक विमर्श का हिस्सा नहीं बन सका है। जब मोदी सरकार ने उच्च शिक्षण संस्थाओं में शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए PhD को अनिवार्य शर्त बनाया था तो लाखों ऐसे अभ्यार्थियों का भविष्य दांव पर लग गया था जो इस PhD माफिया तंत्र का शिकार हैं तथा जिनके लिए यह सम्भव नहीं कि वह परिवारवाद और फेवरेटिज्म के दलदल में अपनी जगह बना सकें।

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ऐसे में मोदी सरकार ने ऐसे लाखों लोगों की चिंताओं का ध्यान देते हुए अपने निर्णय पर रोक लगा दी है, जिससे उन्हें कोई मध्य मार्ग निकालने के लिए पर्याप्त समय मिल जाए। यह बात सही है कि उच्च शिक्षण संस्थाओं में गुणवत्ता का स्तर ऊंचा उठाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए किंतु सरकार को इसकी भी चिंता है कि ऐसा करने में वह किसी के साथ अन्याय ना होने दें।

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